कोलकाता।। पश्चिम बंगाल में शारदा चिटफंड घोटाले में लाखों निवेशकों के करोड़ों रुपये हड़पने वाले कंपनी के चेयरमैन सुदीप्तो सेन के बारे में एक चौंकाने वाला सच सामने आया है। सुदीप्तो चिटफंड के धंधे में आने से पहले नक्सली था। बेहद महत्वकांक्षी सुदीप्तो का नाम तब शंकरादित्य सेन हुआ करता था।
1970 में पश्चिम बंगाल में जब नक्सल मूवमेंट पूरे जोर पर था, तब सभी सुदीप्तो को शंकर के नाम से जानते थे। अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए वह रातोंरात गायब हो गया और फिर सुदीप्तो सेन की नई पहचान के साथ सामने आया। शारदा ग्रुप के लाखों गरीब निवेशकों को सड़क पर लाने वाला सुदीप्तो तब गरीबों का हमदर्द बना फिरता था। वह जाने-माने नक्सल नेता चारू मजूमदार से कई मौकों पर मिला था। यही नहीं 1971-72 के दौरान सरकार विरोधी हरकतों के लिए वह जेल भी गया।
30 मार्च 1959 (उसके पासपोर्ट के मुताबिक) जन्मे सुदीप्तो चार भाई-बहन हैं। उसके माता-पिता देश के विभाजन के दौरान ढाका से कोलकाता आ गए थे। एक समय शंकर के पड़ोसी रहे ओंकार सिंह उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं, 'शंकर एक बहुत प्रभावशाली वक्ता हुआ करता था। वह अपने भाषण से लोगों को बांध देता था। जब एक बार चारू मजूमदार उनके इलाके में आए, तो वह उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके थे।' सिंह के मुताबिक शंकर नक्सल मूवमेंट में शामिल एक बंगाली अखबार के पत्रकार के काफी करीब था।
शंकर के जीवन में यू-टर्न उसके जेल जाने के बाद आया। वह जेल में दूसरे नक्सल नेताओं और अपराधियों व कुछ छुटभैये नेताओं के संपर्क में आया। जेल से बाहर आने के बाद शंकर पूरी तरह बदल चुका था। वह नक्सल विचारधारा की बजाय पूंजीवाद का समर्थन करने लगा था। जेल में बने अपने नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए वह जमीन खरीदने-बेचने का धंधा करने लगा। उसके एक करीबी के मुताबिक सुदीप्तो शुरुआत से ही बहुत महत्वकांक्षी था और कुछ बड़ा करना चाहता था।
शंकर ने अपने नक्सल और क्रिमिनल कनेक्शन का इस्तेमाल अपने बिजनेस को बढ़ाने में किया। उसने जल्द ही संतोषपुर में सर्वे पार्क और लैंड फिल प्रॉजेक्ट हाथ में लिया। इसके बाद उसने साउथ कोलकाता में जमीन का अपना करोबार बढ़ाया। उसने कई बड़े सौदे किए। 1980 के मध्य तक उसने अपना एक नेटवर्क बनाया और बड़े ग्रुप से समझौता किया। शंकर के पूर्व सहयोगी के मुताबिक, 'उसके नेटवर्क में कई पावरफुल लोग थे। एक समय उसे गिरफ्तार करने वाले पुलिसवाले समेत कई बड़े अफसर उसके साथ थे।'
साभार
टाइम्स न्यूज नेटवर्क | Apr 25, 2013, 09.33AM IST
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/19720308.cms
1970 में पश्चिम बंगाल में जब नक्सल मूवमेंट पूरे जोर पर था, तब सभी सुदीप्तो को शंकर के नाम से जानते थे। अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए वह रातोंरात गायब हो गया और फिर सुदीप्तो सेन की नई पहचान के साथ सामने आया। शारदा ग्रुप के लाखों गरीब निवेशकों को सड़क पर लाने वाला सुदीप्तो तब गरीबों का हमदर्द बना फिरता था। वह जाने-माने नक्सल नेता चारू मजूमदार से कई मौकों पर मिला था। यही नहीं 1971-72 के दौरान सरकार विरोधी हरकतों के लिए वह जेल भी गया।
30 मार्च 1959 (उसके पासपोर्ट के मुताबिक) जन्मे सुदीप्तो चार भाई-बहन हैं। उसके माता-पिता देश के विभाजन के दौरान ढाका से कोलकाता आ गए थे। एक समय शंकर के पड़ोसी रहे ओंकार सिंह उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं, 'शंकर एक बहुत प्रभावशाली वक्ता हुआ करता था। वह अपने भाषण से लोगों को बांध देता था। जब एक बार चारू मजूमदार उनके इलाके में आए, तो वह उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके थे।' सिंह के मुताबिक शंकर नक्सल मूवमेंट में शामिल एक बंगाली अखबार के पत्रकार के काफी करीब था।
शंकर के जीवन में यू-टर्न उसके जेल जाने के बाद आया। वह जेल में दूसरे नक्सल नेताओं और अपराधियों व कुछ छुटभैये नेताओं के संपर्क में आया। जेल से बाहर आने के बाद शंकर पूरी तरह बदल चुका था। वह नक्सल विचारधारा की बजाय पूंजीवाद का समर्थन करने लगा था। जेल में बने अपने नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए वह जमीन खरीदने-बेचने का धंधा करने लगा। उसके एक करीबी के मुताबिक सुदीप्तो शुरुआत से ही बहुत महत्वकांक्षी था और कुछ बड़ा करना चाहता था।
शंकर ने अपने नक्सल और क्रिमिनल कनेक्शन का इस्तेमाल अपने बिजनेस को बढ़ाने में किया। उसने जल्द ही संतोषपुर में सर्वे पार्क और लैंड फिल प्रॉजेक्ट हाथ में लिया। इसके बाद उसने साउथ कोलकाता में जमीन का अपना करोबार बढ़ाया। उसने कई बड़े सौदे किए। 1980 के मध्य तक उसने अपना एक नेटवर्क बनाया और बड़े ग्रुप से समझौता किया। शंकर के पूर्व सहयोगी के मुताबिक, 'उसके नेटवर्क में कई पावरफुल लोग थे। एक समय उसे गिरफ्तार करने वाले पुलिसवाले समेत कई बड़े अफसर उसके साथ थे।'
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टाइम्स न्यूज नेटवर्क | Apr 25, 2013, 09.33AM IST
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