Tuesday, September 23, 2014

ज्वाइंट वेंचर के नाम पर एक और कोयला घोटाला

मान लीजिए, आप दावत देना चाहते हैं, उसके लिए राशन एवं अन्य आवश्यक सामान खरीद कर लाते हैं, बावर्ची को बुलाते हैं और उससे भोजन तैयार करने को कहते है. इस काम के बदले बावर्ची आपसे एक तयशुदा रकम लेता है. यह तो हुई एक आम कहानी. अब एक खास कहानी. मान लीजिए, बावर्ची आपसे कहे कि वह भोजन तैयार करने का मेहनताना तो लेगा ही, साथ ही तैयार भोजन का पचास फ़ीसद या उससे भी ज़्यादा हिस्सा अपने साथ ले जाएगा, तो जाहिर है कि आप ऐसी शर्त कभी नहीं मानेंगे, क्योंकि कोई भी समझदार आदमी बावर्ची को भोजन तैयार करने का मेहनताना तो दे सकता है, पर उसके साथ 50 फ़ीसद भोजन नहीं बांट सकता.

लेकिन, एक लाख छियासी हज़ार करोड़ रुपये के कोयला घोटाले के बाद भी चल रहे एक और कोयला घोटाले में यही शर्तें लागू हैं. नतीजतन, कई राज्य सरकारें हज़ारों करोड़ रुपये का नुक़सान जानबूझ कर उठा रही हैं. वे ज्वाइंट वेंचर बनाकर निजी कंपनियों को फ़ायदा पहुंचा रही हैं.

यह पूरी कहानी समझने के लिए दो उदाहरण लेते हैं, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ का. समझते हैं कि राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में अडानी और ज्वाइंट वेंचर के जरिये हज़ारों करोड़ रुपये के कोयले की लूट कैसे हो रही है.

सबसे पहले बात करते हैं छत्तीसगढ़ सरकार की.
केंद्र सरकार ने कई राज्य सरकारों को कोल ब्लॉक आवंटित किए थे. उक्त आवंटन इसलिए किए गए थे, ताकि राज्य सरकारें लगभग मुफ्त में मिले कोयले से सस्ती बिजली का उत्पादन करें और उससे आम आदमी को फ़ायदा मिल सके. लेकिन, इसके बिल्कुल उलट हो रहा है. राज्य सरकार यहां भी निजी कंपनियों के चंगुल से बाहर नहीं निकल सकीं.

छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड (सीएसपीजीसीएल) को 2006 में भारत सरकार के कोयला मंत्रालय द्वारा मारवा थर्मल पावर प्रोजेक्ट के लिए परसा कोल ब्लॉक आवंटित किया गया.

2012 तक 1549.06 करोड़ रुपये का ऩुकसान
पारसा कोल ब्लॉक में 172.30 मीट्रिक टन कोयला है. एसईसीएल ने एफ ग्रेड की क़ीमत 570 रुपये/टन, ई ग्रेड की क़ीमत 730 रुपये/टन और डी ग्रेड की क़ीमत 880 रुपये/टन निर्धारित की थी. यानी एफ ग्रेड की क़ीमत आधार बनती, तो डी ग्रेड के कोयले पर 310 रुपये/टन, ई ग्रेड के कोयले पर 160 रुपये/टन की बचत सरकार को होती, लेकिन कोल प्राइसिंग की शर्तें बदलने से सरकार को नुक़सान हुआ. दरअसल, टेंडर के प्राइस खोले जाने से पहले सीएसपीजीसीएल ने टेंडर के लिए आवेदन करने वाली कंपनियों की बैठक बुलाई थी, जिसमें एईएल ने कहा कि निकाले जाने वाले कोयले की वास्तविक श्रेणी के आधार पर कोयला देने की क़ीमत तय हो.

इससे हुआ यह कि एफ ग्रेड वाली शर्त बदल गई. चूंकि इस इलाके में डी और ई ग्रेड का कोयला ज़्यादा है और उसकी क़ीमत एफ ग्रेड से ज़्यादा होती है. अडानी को वास्तविक श्रेणी के कोयले का मूल्य मिला, न कि पहले की शर्त के मुताबिक सभी श्रेणी के कोयले के लिए एफ ग्रेड का मूल्य. सीएसपीजीसीएल ने अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड के कहे अनुसार कोल माइनिंग शुल्क के भुगतान संबंधी शर्त में संशोधन कर दिया.

इसके अनुसार जिस श्रेणी का कोयला निकाला जाएगा, उसी श्रेणी के कोयले की एसईसीएल द्वारा तय क़ीमत के आधार पर माइनिंग शुल्क दिया जाएगा. नतीजतन सीएजी के मुताबिक, राज्य सरकार को 1549.06 करोड़ रुपये का नुक़सान उठाना पड़ा. हालांकि सीएजी की यह रिपोर्ट 2012 की है और जेवी के तहत यह खेल अभी तक चल रहा है. इस हिसाब से यह नुक़सान अब तक क़रीब पांच हज़ार करोड़ रुपये के आंकड़े को छू चुका होगा.

सीएसपीजीसीएल ने अपने बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की बैठक, जो जून 2008 में हुई थी, में एक फैसला लिया. यह फैसला था ज्वाइंट वेंचर (जेवी) बनाने का, ताकि आवंटित ब्लॉक से कोयले का खनन किया जा सके. फरवरी 2009 में कंपनी ने जेवी पार्टनर के लिए टेंडर निकाला. टेंडर की शर्तों के मुताबिक, जेवी पार्टनर वही हो सकता था, जो कोल इंडिया लिमिटेड या साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड के कोयले की क़ीमत से कम क़ीमत पर कोयला दे. एसईसीएल (साउथ ईस्टर्न कोलफिल्ड लिमिटेड), एमएमटीसी (मेटल्स एंड मिनरल्स ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) और एईएल (अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड) ने जेवी के लिए आवेदन किया.

ग़ौरतलब है कि एसईसीएल एवं एमएमटीसी भारत सरकार की कंपनियां हैं और अडानी इंटरप्राइजेज एक निजी कंपनी है, जिसके मालिक गौतम अडानी हैं. अंत में 19 अक्टूबर, 2009 को अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईल) को जेवी पार्टनर चुन लिया गया. अडानी ने सीआईएल एवं एसईसीएल के कोयले की क़ीमत से तीन प्रतिशत कम क़ीमत पर कोयला देने की बात कही थी.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका संख्या 120/2012 पर सुनवाई करते हुए बीते 25 अगस्त को अपना फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने 1993 से 2010 के बीच हुए सारे कोल ब्लॉक आवंटन रद्द कर दिए. अपने 163 पेज के ़फैसले में अदालत ने कहा है कि यह कोल माइंस नेशनलाइजेशन एक्ट के ख़िलाफ़ है कि केंद्र सरकार राज्य को कमर्शियल माइनिंग की अनुमति दे. चौथी दुनिया से बात करते हुए एनर्जी एक्सपर्ट एवं सामाजिक कार्यकर्ता सुदीप श्रीवास्तव कहते हैं कि जब सुप्रीम कोर्ट ने सारे कोल ब्लॉक आवंटन अवैध ठहरा दिए हैं, तो ऐसे में राज्य सरकार द्वारा किए गए सारे ज्वाइंट वेंचर और एमडीओ कांट्रैक्ट भी अपने आप अवैध माने जाएंगे.

इस हिसाब से देखें, तो राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्य सरकारों द्वारा निजी कंपनियों के साथ बनाए गए ज्वाइंट वेंचर्स को तत्काल प्रभाव से काम बंद कर देना चाहिए. साथ ही सीएजी को यह पूरा मामला इकट्ठा करके बताना चाहिए कि ज्वाइंट वेंचर के नाम पर इन निजी कंपनियों ने कितने हज़ार या कितने लाख करोड़ रुपये का चूना इस देश को लगाया है. यह इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि अकेले छत्तीसगढ़ के लिए सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2012 तक छत्तीसगढ़ सरकार को क़रीब 1550 करोड़ रुपये का ऩुकसान हो चुका है.

ऐसे में अगर अन्य राज्यों में ज्वाइंट वेंचर के जरिये हुए ऩुकसान को, वह भी आज की तारीख तक, जोड़ दिया जाए, तो नुक़सान का यह आंकड़ा बहुत बड़ा हो सकता है.

अब असल कहानी इसके बाद शुरू होती है.
जुलाई 2010 में छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड (सीएसपीजीसीएल) और अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) के बीच एक ज्वाइंट वेंचर बना, जिसका नाम है, सीएसपीजीसीएल एईएल पारसा कोलियरीज लिमिटेड. इस जेवी में सीएसपीजीसीएल के पास 51 फ़ीसद शेयर थे और एईएल के पास 40 फ़ीसद.

आश्‍चर्य की बात यह है कि सीएसपीजीसीएल को कोल ब्लॉक मुफ्त में मिला था, उसे केवल खनन करके कोयला बाहर निकालना था. जाहिर है, यह काम कोई भी खनन कंपनी खनन की क़ीमत लेकर कर सकती थी, लेकिन सीएसपीजीसीएल ने कोयले के बाज़ार भाव पर अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड से समझौता करके ज्वाइंट वेंचर बनाया, साथ ही उसे 40 फ़ीसद शेयर भी दे दिए और अपना ही कोयला उसने अडानी से बाज़ार भाव से स़िर्फ तीन फ़ीसद कम क़ीमत पर खरीदा. यानी अडानी को इस पूरे मामले में बिना कोल ब्लॉक मिले, स़िर्फ खनन करने के काम से वह फ़ायदा मिला, जो राज्य सरकार मुफ्त में मिले कोल ब्लॉक से नहीं उठा सकी. जाहिर है,

इस हिसाब से अगर सीएजी नुक़सान का अंदाजा लगाए, तो यह नुक़सान हज़ारों करोड़ का हो सकता है. ऐसे में सवाल उठता है कि इस तरह के ज्वाइंट वेंचर के पीछे राज्य सरकार की भूमिका क्या थी? सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एक बार जब टेंडर की शर्त में एफ ग्रेड कोयले की क़ीमत को आधार बना दिया गया, तब अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड के कहने पर संशोधन क्यों किया गया?

सीएजी ने बताया है कि सीएसपीजीसीएल को यह जानकारी थी कि उसके पास डी और ई ग्रेड कोयले की मात्रा अधिक है. इसका मतलब यह हुआ कि सरकार ने जानबूझ कर, टेंडर में पहले बनाए गए एफ ग्रेड कोयले की क़ीमत (जो कम होती है) के आधार को अडानी के कहने पर बदल दिया. जाहिर है, इससे रमन सिंह सरकार की मंशा पर भी सवाल उठता है कि आख़िर किसके दबाव में रमन सिंह सरकार ने टेंडर के नियमों में फेरबदल किया?

ज्वाइंट वेंचर के नुक़सान
  • अगर जेवी की ज़रूरत थी, तो यह कोयला निकालने वाली कंपनी के साथ होना चाहिए.
  • समझौता खनन लागत पर होना चाहिए था, न कि बाज़ार भाव पर.
  • कोल ब्लॉक मुफ्त मिला, फिर भी सरकार ने बाज़ार भाव से स़िर्फ तीन प्रतिशत कम क़ीमत पर अपना ही कोयला अडानी से खरीदा.
  • जो मुनाफ़ा सरकार को होना चाहिए था, वह अडानी के खाते में चला गया.
  • प नतीजतन, सरकार को नुक़सान उठाना पड़ा और जनता को सस्ती बिजली भी नहीं मिली.

अब जरा एक नज़र राजस्थान विद्युत ऊर्जा निगम लिमिटेड (आरवीयूएनएल, राज्य सरकार का एक उपक्रम) पर भी डालते हैं.

छत्तीसगढ़ जैसा ही एक ज्वाइंट वेंचर राजस्थान विद्युत ऊर्जा निगम लिमिटेड ने भी अडानी इंटरप्राइजेज के साथ किया है. इसकी भी कहानी बहुत हद तक छत्तीसगढ़ जैसी है.

सर्वविदित है कि कोयला मंत्रालय राज्यों को सस्ती बिजली के उत्पादन के लिए कोल ब्लॉक देता है. 2007 में कोयला मंत्रालय ने राजस्थान विद्युत ऊर्जा निगम लिमिटेड को भी दो कोल ब्लॉक दिए थे, ये कोल ब्लॉक भी छत्तीसगढ़ में स्थित हैं. छत्तीसगढ़ के हसदेव में दो कोल ब्लॉक-पारसा ईस्ट और केंटे बेसिन आरवीयूएनएल को आवंटित किए गए थे. आरवीयूएनएल ने भी बजाय स़िर्फ खनन का काम कराने (खनन की क़ीमत देकर) के अडानी के साथ ज्वाइंट वेंचर किया. अच्छा तो यह होता कि राजस्थान विद्युत ऊर्जा निगम लिमिटेड (आरवीयूएनएल) खुद या किसी सरकारी एजेंसी से कोल माइनिंग का काम कराता. मान लीजिए, यह भी संभव नहीं था, तो राजस्थान विद्युत ऊर्जा निगम लिमिटेड यह काम किसी ऐसी निजी कंपनी से कराता, जिसे केवल खनन क़ीमत यानी माइनिंग चार्ज देना पड़ता.

जानकारी के मुताबिक, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. इसके उलट, आरवीयूएनएल ने 2008 में अडानी इंटरप्राइजेज से समझौता किया और दोनों ने मिलकर एक ज्वाइंट वेंचर बनाया, जिसका नाम था, पारसा केंटे बेसिन कोलियरीज लिमिटेड. इसके बाद अडानी इंटरप्राइजेज की सहायक कंपनी अडानी माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड ने पारसा केंटे बेसिन कोलियरीज लिमिटेड (पीकेसीएल) के साथ माइनिंग के लिए एक समझौता किया. प्राप्त जानकारी के मुताबिक, इस ज्वाइंट वेंचर में 74 फ़ीसद हिस्सेदारी अडानी को मिली और 26 फ़ीसद हिस्सेदारी आरवीयूएनएल को. आप खुद अंदाजा लगाइए कि जब कोल ब्लॉक आरवीयूएनएल को सस्ती बिजली बनाने के लिए लगभग मुफ्त मिले थे, तब ऐसे में 74 फ़ीसद शेयर अडानी को क्यों दे दिए गए?

इस ज्वाइंट वेंचर के मुताबिक अडानी के हिस्से में भूमि अधिग्रहण, माइनिंग, कोल वाशरी प्लांट की स्थापना, ट्रांसपोर्टेशन के लिए रेल लाइन (सरगुजा रेल कॉरीडोर) बिछाने और कोल वाशरी रिजेक्ट्स का (निम्नस्तरीय कोयला) खुद के पावर प्लांट के लिए इस्तेमाल करने की बात थी. इन दोनों कोल ब्लॉक की क्षमता 450 मिलियन टन है.

अब आप यह समझिए कि आख़िर कोयले की लूट का यह खेल कैसे खेला गया? जानकारी के मुताबिक, अडानी माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड को कोयला खनन का खर्च 250 रुपये प्रति टन आता है. अडानी माइनिंग इसे ज्वाइंट वेंचर पीकेसीएल को बेचती है 675 रुपये प्रति टन के हिसाब से. इसके बाद जेवी यही कोयला आरवीयूएनएल को प्रति टन 736 रुपये के हिसाब से बेचता है. यह बाज़ार मूल्य (कोल इंडिया के रेट) से 64 रुपये यानी 8 फ़ीसद कम है. यही 64 रुपया मुनाफ़ा है इस जेवी का.

इस मुना़फे में से 74 फ़ीसद अडानी और 26 फ़ीसद आरवीयूएनएल का है. यानी आरवीयूएनएल के हिस्से में मुनाफ़ा आता है प्रति टन 16 रुप. दूसरी तरफ़ अगर आरवीयूएनएल खनन लागत के आधार पर कोयला लेती, तो उसे किसी भी खनन कंपनी को प्रति टन कोयले के लिए स़िर्फ 250 रुपये प्रति टन देना पड़ता. यानी अभी खरीदे जा रहे कोयले की क़ीमत के मुकाबले 500 रुपये प्रति टन से अधिक का फ़ायदा होता. लेकिन, ज्वाइंट वेंचर की यही महिमा है कि आरवीयूएनएल अपना ही कोयला किसी और से 500 रुपये प्रति टन अधिक देकर खरीद रहा है.

जाहिर है, सरकार या सीएजी इस मसले पर अभी भी गंभीरता से नहीं सोच रही है, लेकिन ज्वाइंट वेंचर के इस खेल को लेकर सवाल तो उठते ही हैं. एक सबसे बड़ा सवाल है कि अडानी को किस आधार पर छत्तीसगढ़ और राजस्थान सरकार ने क्रमश: 49 एवं 74 फ़ीसद शेयर दे दिए. लगभग मुफ्त में मिले कोल ब्लॉक के खनन के लिए (अगर यह तर्क मान लिया जाए कि राज्य सरकार खनन का काम करने में असमर्थ थी) अगर ज्वाइंट वेंचर की ज़रूरत थी, तो यह खनन लागत के आधार पर क्यों नहीं बनाया गया?

जो मुनाफ़ा इन राज्य सरकारों को हो सकता था, वह किसी निजी कंपनी को क्यों दे दिया गया? ऐसे में यह ज़रूरी है कि सीएजी सभी राज्य सरकारों (जहां भी ऐसे ज्वाइंट वेंचर बने हैं) का पूरा ऑडिट करके वास्तविक नुक़सान की गणना करे और यह बताए कि अब तक कोयला लूट के इस नए तरीके से देश को कितने रुपये का नुक़सान हुआ है.

सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या केंद्र सरकार लूट के इस नए और अनोखे तरीके की जांच अपनी ओर से पहल करके कराएगी या वह एक और सीएजी रिपोर्ट का इंतज़ार करेगी?

साभार:
September 22nd, 2014
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Chit Fund Scam: Odisha ex-AG held

Mohanty was arrested from his Cuttack residence in connection with a land deal

The CBI today arrested former Advocate General Ashok Mohanty in connection with the chit fund scam case  and took him on two day remand after producing him in the special chief judicial magistrate court here.

The  CBI counsel had sought a three-day remand while Mohanty’s counsel had moved a bail petition.

Earlier during the day, Mohanty was arrested from his Cuttack residence in connection with a land deal he had done with AT group chief Pradip Sethy. He was brought to the CBI office and questioned before being taken for medical examination and later to the court.

Mohanty  was  questioned on his purchase of a house in Cuttack from Sethy for Rs 1.01 crore in 2013. The payment made and the bank account etc.

Reliable sources said the bank transaction did not reflect the entire amount. Further, the charge is that the former AG had misused his official position in entering in to the transaction with Sethy when he was already facing a police case in the ponzi scam.

Mohanty , known to be a upright person who did not even have a house at Cuttack till he purchased one from Sethy, however said his conscience is clear. “I have complete faith in God and my ‘guru’. Truth shall prevail, I have acted in good faith and I hope people will retain the trust and confidence in me that they have had all these years”.

It may be recalled that Mohanty had been interrogated by the CBI on 13 September. He had insisted that he paid Rs 1.01 crore for the house in CDA and that it was no favor of gift.

True to his character Mohanty had resigned from the AG post after the general elections.

The CM Naveen Patnaik had not accepted his resignation till 12 September, when Mohanty received summons from the CBI.

Significantly, Mohanty’s arrest evoke sharp dissent from lawyers as well as administrative circles here.

Members of the Bar Council decried the arrest. If the CBI claims to have prima facie evidence based on documents, it cannot be tampered with, secondly no witness can be intimidated or gained over nor can a person of Mohanty’s stature abscond , so where is the need for arresting him, said lawyers of the High Court Bar.

The arrest s totally unwarranted, the CBI could have named him in the charge sheet and the court summoned him, they said.

A large section of the people from all walks of life in Cuttack and Bhubaneswar expressed dismay over the arrest.

BJD MP Bhartruhari Mahatab who represents Cuttack LS constituency said the CBI seems to be in the habit of trying to be in the new always by conducting such arrests. It is unwarranted, I know Mohanty since decades, said Mahatab. His party , however, tried to distance itself from Mohanty saying it was a ‘personal party’ not involving the party or the government.

The Opposition Congress and BJP said the government cannot shirk its responsibility. The particular purchase of house by Mohanty had been raised in the Assembly by the Opposition but at that point in time the government ignored it and the police never took any action, charged BJP state president K V Singh Deo.

What was the police doing for the whole of last year when it was investigating the chit fund scam, he asked, implying that the BJD had tired its best to cover up involvement of party leaders and other funcationaries.Speculations are that the CBI will interrogate a few senior police officers and bureaucrats.
Courtesy:
The Statesman
23 Sep 2014
Statesman news Service
Bhubaneswar, 22 September
http://www.thestatesman.net/news/78447-Chit-fund--Odisha-ex-AG-held.html