Monday, March 7, 2016

डीओडी और आईसीएआई ने सीए एचआर कंचन पर लगाया प्रतिबंध, 50 हजार का जुर्माना



·   सीए ने चार दशक पुरानी कंपनी ही लूट ली
·   एक निदेशक से मिल कर की कंपनी की चोरी
·   दस्तावेजों में फर्जी दस्तखत करके हथियाई कंपनी
·   सीए और निदेशक ने करोड़ों की कंपनी कर ली हड़प
·   प्रबंध निदेशक की सालों की मेहनत मिल गई मिट्टी में
·   1998 से चल रहा था कंपनी हथियाने का यह काला खेल
·   मुंबई पुलिस की अपराध शाखा में चल रही है कंपनी चोरी की जांच
·   सीएमडी ओके ऑगस्टी को हुआ एक हजार करोड़ से अधिक का नुकसान

मुंबई। ओएफएस इंडस्ट्रीज प्रा. लिमिटेड नामक कंपनी के साथ जालसाजी और उसके कारोबारी हितों के खिलाफ काम करने के आरोप में सीए की सूची से चार्टर्ड अकाऊंटेंट हरीश रामप्पा कंचन की सदस्यता रद्द करने की सजा डायरेक्टरेट ऑफ डिसिप्लीन (डीओडी) / द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाऊंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) ने सुनाई है। आईसीएआई के इतिहास में यह पहला मौका है, जब ऐसा कठोर दंड किसी सीए को डीओडी जैसे शीर्ष संस्थान के चार वरिष्ठ पैनलिस्ट ने मिल कर सुनाया है।

चार्टर्ड अकाऊंटेंट हरीश रामप्पा कंचन को कंपनी हड़पने के लिए निदेशक ओके वर्गीज के साथ मिल कर साजिश रचने और व्यावसायिक दुराचरण का दोषी पाते हुए द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाऊंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) और अनुशासन निदेशालय (डीओडी) ने छह माह के लिए सीए की सूची से चार्टर्ड अकाऊंटेंट हरीश रामप्पा कंचन की सदस्यता (क्रमांक 036608) व नाम रद्द करने और 50 हजार रुपए का जुर्माना अदा करने की सजा सुनाई थी।

आदेश के साथ आरोपी सीए हरीश रामप्पा कंचन को भेजे पत्र (क्र. पीआर/02/08/डीडी/29/2008/डीसी/53/09) पर डीओडी के सहायक सचिव शशी महाजन के हस्ताक्षर हैं।

डीओडी के आदेश (क्र. डीडी/29/2008/डीसी/53/09) में कहा है, आरोपी के काम से यह जाहिर होता है कि उसने चार्टर्ड अकाऊंटेंट्स के लिए तय मानकों के विपरित कार्य किया है और इससे चार्टर्ड अकाऊंटेंट्स के प्रति आस्था तोड़ी है। यह भी कहा जा सकता है कि चार्टर्ड अकाऊंटेंट्स व्यवसाय के लिए बदनामीकारक कार्य किया है। इस आदेश पर प्रिसाईडिंग ऑफीसर जी. रामास्वामी, सरकारी नामिनी एसके घोष, कमेटी सदस्य नीलेश एस. विकमसे और सुमंत्र घोष के हस्ताक्षर हैं। इसमें कहा गया है, डीओडी की राय में एचआर कंचन को चार्टर्ड अकाऊंटेंट्स एक्ट, 1949 की धारा 2 के भाग चार की पहले अनुदेश, धारा 7 व 8 के भाग एक के दूसरे अनुदेश के तहत व्यावसायिक दुराचरण का दोषी पाया जाता है।

आईसीएआई ने सजा के आदेश में कहा है, इस मामले में मौखिक और दस्तावेजी सबूत देखने के बाद यह सामने आया है कि आरोपी ने हद गंभीर व्यावसायिक गड़बड़ियां की हैं। कमेटी को लगता है कि आरोपी को इस मामले में कठोर सजा दी जानी चाहिए।

आईसीआईए के आदेश में साफ तौर पर लिखा है, चार्टर्ड अकाऊंटेंट्स एक्ट (अमेंडमेंडेट), 1949 की धारा 21(बी)(3) के तहत अनुशासन समिती ने 50 हजार रुपए का नकद जुर्माना 30 दिनों के अंदर जमा करने और छह माह तक सीए की सूची से नाम निकाल देने की सजा सुनाई है। इस आदेश पर प्रिसाईडिंग ऑफीसर मनोज फडनीस, सरकारी नामिनी एसपीएस नागर और जोगिंदर सिंह के हस्ताक्षर हैं।

इस मामले में शिकायतकर्ता श्री ऑगस्टी के मुताबिक उनकी 45 सालों की मेहनत पर कुछ लोगों के लालच ने पानी फेर दिया। इस हरकत के कारण वे इस कदर टूट गए कि अब तक कोई कारोबार करने की स्थिति में नहीं रह गए हैं। बरसों तक चले कानूनी मुकदमेबाजी और पुलिस व डीओडी के चक्कर डाटने के कारण वे न केवल आर्थिक रूप से खस्ताहाल हो गए बल्कि आर्थिक रूप से भी बुरी तरह टूट गए हैं। श्री ऑगस्टी कहते हैं कि इस धोखाधड़ी के कारण कंपनी को 200 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्तियों व कारोबार का सीधे नुकसान हुआ है। कंचन और वर्गीज द्वारा कंपनी हड़पने के कारण कारोबार न कर पाने की स्थिति में उन्हें एक हजार करोड़ रुपए से भी अधिक का नुकसान पिछले कुछ सालों में हुआ है।

श्री ऑगस्टी ने सीए कंचन और कंपनी के निदेशक ओके वर्गी पर आरोप लगाया कि इन्होंने मिल कर उनके साथ न केवल धोखाधड़ी की बल्कि जाली हस्ताक्षर किए, नकली दस्तावेज बनाए, शेयर हड़पे, कंपनी की 200 करोड़ रुपए से अधिक की रकम हजम की थी। इसके कारण न केवल हमें आर्थिक नुकसान हुआ बल्कि सामाजिक एवं पारिवारिक रूप से भी भारी नुकसान हुआ।

श्री ऑगस्टी ने यह भी बताया इस मामले की जांच मुंबई पुलिस की अपराध शाखा द्वारा की जा रही है। इस बारे में एक शिकायत पहले ही पुलिस के पास दर्ज की जा चुकी है।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क:
ओके ऑगस्टी,
सीएमडी, ओएफएस इंडस्ट्रीज प्रा. लि., मुंबई
+91 9870 55 66 99

दस्तावेज की डिजीटल प्रतियां हासिल करने के लिए देखें - www.mininewswire.com

DOD & ICAI Suspends and Fines CA For Cheating, Fraud And Forgery

CA conspired with the director of his client’s company and attempted to take illegal possession of the same

Mumbai: In probably first such order, the Directorate of Discipline (DOD) / Institute of Chartered Accountants of India (ICAI) has ordered the removal of the registration of a chartered accountant (CA) on charges of alleged fraud and for working against the interest of a company.

Four senior panelists of DOD passed the order against CA Harish Ramappa Kanchan for allegedly working against OFS Industries Private Ltd., owned by OK Augusty. Kanchan was accused of conspiring with a director of the company OK Varghese to take illegal possession of the company. DOD and ICAI suspended Kanchan’s membership (no 036608) for six months from the list of CAs. He was also directed to pay a fine of Rs 50,000 in cash.

DOD Order number DD/29/2008/DC/53/2009 also says, “The conduct of the Respondent in this matter is unbecoming of a Chartered Accountant as he failed to bestow the faith reposed by the Society in the Chartered Accountants. Further, the said conduct of the Respondent has brought disrepute to the profession of Chartered Accountancy.”

Punishment Order from ICAI reads, “Keeping in view the facts and circumstances of the case as aforesaid, the material on record and also the oral / written representations of the Respondents and the very serious nature of professional misconduct, the Committee is of the view that the interest of justice would be met if only a severe punishment is awarded to the Respondent.”

The punishment order of ICAI says, “Fined for Rs 50,000 in cash  to be paid in 30 days and name to be suspended from CA’s list for six months under section 21(B)(3) of the Chartered Accountants Act (Amended) 1949.” The letter (no. PR/02/08/DD/29/2008/DC/53/09), sent to Kanchan with the order, bore signature of assistant secretary, DOD, Shashi Mahajan.

The order of the DOD has signature of Presiding Officer G. Ramaswamy, Government Nominee Sk Ghosh, members Nilesh S. Vikamsey and Sumantra Guha. The order found Kanchan guilty under many sections of the Chartered Accountants Act 1949 & the Chartered Accountants (Amendment) Act 2006.

The punishment order has signature of Presiding Officer Manoj Phadnis, Government Nominee SPS Nagar and Joginder Singh. The order found Kanchan guilty under section 2 of the Chartered Accountants Act 1949 & the Chartered Accountants (Amendment) Act 2006.

According to Augusty, the fraud, conspiracy of which started way back in 1998, has brought him to shambles as he lost crores worth property and business due to the long legal battle when he was also forced to made several rounds of the police department and DOD. The fraud also caused a loss of over Rs 1,000 crores to him in last few years, he said.

Augusty alleged that Kanchan and Varghese not only cheated him by using forged signatures, fabricated documents but also usurped his shares and over Rs 200 crores of the company. Due to this shocking misadventure by Kanchan and Varghese, we had not only loss in monetary term but irreparable loss and damage to the legacy of the family.

Augusty also informed that this case is being investigated by the Mumbai police crime branch, as we lodged a complaint against all accused.

For more details contact:
OK Augusty,
CMD, OFS Industries Pvt. Ltd., Mumbai
+91 9870 55 66 99

Digital Copy of the documents available at www.mininewswire.com

Saturday, November 7, 2015

इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक घोटाला - आज भी दबे हैं कई गहरे राज़, स्पष्ट जांच से कई सफेदपोशों पर गिरेगी गाज

राजधानी के इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक में करीब दस वर्ष पहले राज्य के सबसे बड़े बैंक घोटाले का पर्दाफाश हुआ था। घोटाले के बाद सभी आरोपी गायब हो गए थे, जमकर हो हल्ला हुआ, जांच टीम गठित करके जांच रिपोर्ट तैयार करने के आदेश दिए गए। मगर जांच टीम ने कई वर्ष लगा दिए जांच कर रिपोर्ट तैयार करने में। जैसे तैसे रिपोर्ट के बाद कुछ खुलासे हुए मगर कोई खास प्रगति नहीं दिखाई दी।

बैंक घोटाले ने हजारों निवेशकों की जिंदगी भर की जमापूंजी पर हाथ साफ कर दिया गया था। पर्दाफाश होते हैं पूरे प्रदेश में आग सी लग गई थी। चारों ओर हरेक व्यक्ति के होंठों पर इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक घोटाला ही था। इसमें साल 2006 में 54 करोड़ रुपए का घोटाले का खुलासा हुआ था। इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक घोटाले में सबसे बड़ा खुलासा वर्ष 2013 में कांग्रेस के द्वारा किया गया हालांकि यह खुलासा विवादों में ही घिरा रहा।

बैंक गबन के मामले में राज्य के मुख्यमंत्री व चार कैबिनेट मंत्री पर करोड़ों रुपये लेने का आरोप कांग्रेस ने लगाया, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने वर्ष 2013 में बैंक के तत्कालीन मैनेजर के नार्को टेस्ट की सीडी को सार्वजनिक किया था। सीडी में मैनेजर ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, तत्कालीन वित्त मंत्री अमर अग्रवाल, लोक निर्माण मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, आवास एवं पर्यावरण मंत्री राजेश मूणत और सहकारिता मंत्री रामविचार नेताम को एक-एक करोड़ रुपये बांटने का दावा किया था।

इस खुलासे के बाद बघेल ने मुख्यमंत्री सहित पूरे मंत्री परिषद को नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देने की मांग की थी हालांकि हुआ ऐसा कुछ भी नहीं था। दूसरी ओर उस समय सरकार के प्रवक्ता बृजमोहन अग्रवाल ने कहा था कि इस सीडी को न्यायालय में सबूत के तौर पर पेश ही नहीं किया गया है, क्योंकि जांच के दौरान बयानों में विरोधाभास मिला था। जबकि कांग्रेस नेता ने पत्रवार्ता में बताया था कि बैंक मैनेजर उमेश सिन्हा की सीडी देखने पर साफ था कि उसने बैंक के चेयरमैन रीता तिवारी के आदेश पर मुख्यमंत्री सहित चार कैबिनेट मंत्रियों को एक-एक करोड़ रुपये बांटे गए थे। यही नहीं, दिवंगत डीजीपी ओपी राठौर को भी एक करोड़ रुपये दिए गए थे। मैनेजर ने खुद एक रुपया भी नहीं लिया था। मामला खुलने के बाद चेयरमैन रीता तिवारी आनन फानन में विदेश निकल गई थी।

इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक -

सदर बाजार स्थित इस सहकारी बैंक में आम और खास लोगों की दिलचस्पी सिर्फ इसलिए थी कि यहां अन्य बैंकों के मुकाबले ब्याज की दर अधिक थी। लिहाजा लोग यहां अपनी गाढ़ी कमाई की रकम जमा करवाते थे। रायपुर शहर के इंदिरा प्रियदर्शिनी महिला नागरिक सहकारी बैंक को महिलाओं के लिए ख़ास तौर पर बनाए गए इस बैंक के संचालक मंडल में केवल महिलाएं थीं। बैंक में केवल महिलाओं को ही ऋण देने की व्यवस्था भी थी। समाज के कमज़ोर वर्ग की महिलाओं को बेहद कम ब्याज़ दर पर क़र्ज़ देकर उन्हें आर्थिक तौर पर स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 'महिला बैंक' शुरू करने की पहल की है। पहले ही गुवाहाटी, कोलकाता, चेन्नई, मुंबई, अहमदाबाद, बैंगलौर और लखनऊ में महिला बैंक की शाखाएं खोली गई हैं।

इस बैंक का मक़सद काम और सेवा में महिलाओं को प्राथमिकता देना है, लेकिन रायपुर के लोग इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक के अनुभव की वजह से कड़वाहट से भरे हैं। रायपुर शहर के सबसे व्यस्त सदर बाज़ार के इलाके में वर्ष 1995 में जब महिलाओं के लिए ख़ास तौर पर इंदिरा प्रियदर्शिनी महिला नागरिक सहकारी बैंक खोला गया तो महिलाओं में गज़ब का उत्साह था। सब कुछ ठीक-ठीक चल रहा था। बाद में बैंक के कुछ अधिकारियों और संचालक मंडल के घोटाले सामने आए और 2 अगस्त 2006 को बैंक बंद हो गया। शहर में मौजूद बैंक की दो शाखाएं भी बंद हो गईं।

इस बैंक की पूंजी में सेंध लगाने का काम "संचालक मंडल के सदस्यों और बैंक प्रबंधन ने 54 करोड़ रुपए से अधिक की रक़म का घालमेल किया। फिर उन्होंने एक दिन अचानक बैंक बंद करने की घोषणा कर दी।" बैंक में गड़बड़ी की जानकारी सबसे पहले 3 अक्टूबर 2007 को उस समय सामने आई जब ऑडिट किया गया।

2007 में दर्ज हुई रिपोर्ट -
मामले की रिपोर्ट सिटी कोतवाली थाने में 9 जनवरी 2007 को दर्ज कराई गई। धारा 409, 420, 467, 468, 201 एवं 120 बी के तहत जुर्म पंजीबद्ध किया गया। लेकिन गबन की राशि बरामद नहीं हो पाई थी। जिसके कारण खातेदारों के जमा रुपये वापस करने की विवशता बैंक के सामने है। डिपाजिट इंश्योरेंस एण्ड क्रेडिट गारंटी कारपोरेशन मुबंई से 13 करोड़ रुपये प्राप्त कर एक लाख की सीमा तक के छोटे खातेदारों को रकम वापस की भी गई थी किंतु डीआईसीजीसी से प्राप्त रकम उसे वापस करना भी एक अनिवार्य शर्त थी तथा खातेदारों की शेष राशि भी वापस करना था जो अभियुक्तों से वसूली हुए बिना संभव नहीं था। इस मामले में सीबीआई जांच की मांग भी की गई थी।

2003 से 2006 तक हुआ गबन -
बघेल बताया था कि गबन वर्ष 2003 से 01.08.2006 तक लगातार किया गया था। इस दौरान बैंक के 25716 खातेदारों की जमा राशि 54 करोड़ 38 लाख 45 हजार 333.27 रुपये का गबन किया गया, फलस्वरूप 02.08.2006 को बैंक का बैंकिंग कारोबार बंद हो गया और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बैंक का बैंकिंग लाइसेंस निरस्त कर दिया। यह गबन बैंक के निदेशक मंडल एवं कर्मचारियों ने षड्यंत्र रचकर किया। इसके तहत फाल्स एफडीआर, डीडी और पे-आर्डर जारी किए गए थे और अलग-अलग बैंकों में जमा राशि भी निकाली गई थी, जिसे बैंक की लेखा पुस्तकों में दर्ज नहीं किया गया। इस दौरान फर्जी दस्तावेजों के आधार पर एक ही व्यक्ति को कई लोन भी बांटे गए थे।

इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक छत्तीसगढ़ का सहकारी क्षेत्र का सबसे बड़ा और भरोसेमंद बैंक था। राज्य भर में इसके तीस हजार से जायदा ग्राहक थे। खास बात यह थी की इस बैंक के संचालक मंडल में कांग्रेस के नेताओं की पत्नियां और महिला नेता शामिल थीं। ये तमाम महिलाएं ही बैंक का संचालन करती थीं। 2007 में 40 करोड़ का घोटाला उजागर होने पर यह बैंक डूब गया।

प्रारभिक जांच पर पता चला की बैंक के मैनेजर समेत संचालक मंडल ने करोड़ों रुपये का गबन किया है और फर्जी ऋण बांट कर आम ग्राहकों की रकम डकार ली। पुलिस ने धोखाधड़ी और अमानत में खयानत का मामला दर्ज कर इस घोटाले के लिये सभी आरोपियों के खिलाफ अदालत में चालान पेश किया था।

घोटाले में लिप्त महिला पदाधिकारी की गिरफ्तारी -
प्रकरण दर्ज होने और शासन पर एक साथ 40 हजार के करीब खातेदारों के बढ़ते दबाव के बाद सितंबर 2008 में श्रीमती पाठक, श्रीमती पगारिया सहित कुल 19 लोगों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था। जिसमें से संचालक मंडल की सदस्या सविता शुक्ला जो पिछले ढाई साल से फरारी काट रही थीं, उनके छोटापारा स्थित निवास से गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया। इसके अलावा इस प्रकरण में सरोजनी शर्मा, कुसुम चौके और अरूणा निगम की गिरफ्तारी शेष रही थी। पुलिस ने बताया कि इन सभी के खिलाफ धारा 420, 468, 120बी के तहत अपराध कायम किया गया है। बताया जा रहा है कि इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक घोटाले में संचालक मंडल की मुख्य पदाधिकारी रीता तिवारी की गिरफ्तारी बीते साल की गई थी और कुछ समय तक जेल में रहने के बाद उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था।

कांग्रेस ने कहा - झीरम घाटी हमले का कारण नार्को सीडी -
कांग्रेस ने राज्य की भाजपा सरकार पर आरोप लगाया था कि नार्को टेस्ट की सीडी की वजह से नंदकुमार और उनके बेटे दिनेश पटेल की हत्या करवा दी गई थी। कांग्रेस मीडिया विभाग के मुताबिक,नक्सली हमले में मारे कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नंद कुमार पटेल के पुत्र स्व. दिनेश पटेल की ओर से 23 मई को उन्हें एक एसएमएस भेजा था कि 15 जून को बड़ा खुलासा होगा, लेकिन 25 मई को जीरम घाटी में नक्सली हमले में उनकी मौत हो गई। वर्ष 2003 से पहली अगस्त 2006 तक इंदिरा सहकारी बैंक के 25716 खातेदारों की 54,38,45,333.27 रुपए की जमा राशि का गबन किया गया। इसके फलस्वरूप 2 अगस्त को बैंक का बैंकिंग कारोबार बंद हो गया।

बृजमोहन ने कहा कांग्रेस का आरोप निराधार -
इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक घोटाले से संबंधित नार्को टेस्ट की सीडी को झीरम घाटी में शहीद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से जोड़ना दुर्भाग्यजनक है, यह बातें जुलाई 2013 में राज्य सरकार के तत्कालीन प्रवक्ता बृजमोहन अग्रवाल ने कही थी। उन्होंने कहा था कि झीरम घाटी में इतनी बड़ी घटना हुई, उसमें शहीद लोगों को श्रद्धांजलि देने के बजाय सीडी को दिवंगत नेता नंदकुमार पटेल के बेटे दिनेश पटेल के एसएमएस से जोड़ना उचित नहीं है। सीडी की सच्चाई पर सवाल खड़ा कर दिया और कहा कि यह कांग्रेस की पुरानी आदत है कि वह असत्य बातों को सीडी के माध्यम से लाकर सत्य बताने का प्रयास करती है। जो बरसों पुरानी सीडी को सनसनीखेज खुलासे की तरह पेश किया गया। नार्को टेस्ट के नाम पर पेश की गई सीडी फर्जी है, यह बात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जानते हैं। यही वजह है कि उनकी पत्रवार्ता में कोई बड़ा लीडर नहीं था। सीडी 2007 में बनी है। सीडी में सच्चाई है तो कांग्रेस ने पिछले चुनाव में इसे मुद्दा क्यों नहीं बनाया?

अग्रवाल ने कहा कि हमारी पुलिस ने पूरे मामले की जांच तत्परता से की। दोषी लोगों को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया। अब आगे का काम अदालत का है, इसलिए इसमें सीबीआई जांच की जरूरत ही नहीं है। सीबीआई पिंजरे में बंद तोता है। यह सर्वोच्च न्याय संस्था सुप्रीमकोर्ट कह चुकी है। फिलहाल इस सीडी को लेकर मचे घमासान से राज्य का राजनीतिक गलियारा गरमा गया था।

मीडिया के सामने आने से बचते रहे उमेश सिन्हा -
इस मामले में उमेश सिन्हा से बातचीत करने की कोशिश की गई और घर पहुंचे मीडिया कर्मियों से भी उन्होंने मिलने और बात करने से इंकार कर दिया था। सिन्हा के वकील एसके फरहान ने यह कहते हुए कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया कि कांग्रेस द्वारा जारी इस सीडी का न्यायालयीन प्रक्रिया से कोई संबंध नहीं है।

- उमेश सिन्हा के नार्को टेस्ट की सीडी में ही कई विरोधाभास हैं। यहां तक कि उमेश सिन्हा ने जो बात एक बार कही, दूसरी बार उसी बात से पलट गया थे। उमेश सिन्हा और इस मामले में गिरफ्तार बैंक के डॉयरेक्टरों के बयानों में भी विरोधाभास थे। इसलिए पुलिस ने इसे साक्ष्य के रुपये में कोर्ट में प्रस्तुत नहीं किया था। यह सीडी आरटीआई के तहत 2009 में उपलब्ध कराई जा चुकी है। - तत्कालीन आई.जी, रायपुर रेंज

-छत्तीसगढ़ विधानसभा में राज्य के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेेस ने इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक द्वारा ॠण वसूली को लेकर सवाल किया और इस मामले में सीबीआई जांच की मांग को लेकर सदन से बहिर्गमन कर दिया था।

- विधानसभा में 22 जुलाई 2015 को प्रश्नकाल के दौरान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक से एक करोड़ रूपए से अधिक राशि का ॠण जिन संस्थाओं या व्यक्तियों को दिया गया है उनसे वसूली को लेकर सवाल किया।

* जवाब में सहकारिता मंत्री दयालदास बघेल ने बताया कि सात ॠण प्राप्तकर्ताओं से अभी तक राशि वसूल नहीं की गई है। सभी सातों प्रकरणों में सक्षम न्यायालय में वाद दायर किया गया है और वसूली की डिग्री प्राप्त किया गया है।।बघेल ने बताया कि जिन संस्थाओं और व्यक्तियों के खिलाफ वाद दायर किया गया है वह फर्जी है। इस मामले में फर्म का पता लगाया गया जो फर्जी निकला। मामला न्यायालय में है।

- कांग्रेस नेता भूपेश बघेल ने कहा कि इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक में करोड़ों रूपए का घपला किया गया है। इस मामले में जो आरोपी है उसका जब नार्को टेस्ट किया गया तब उसने कई लोगों का नाम लिया है। इस नार्को टेस्ट की सीडी को अभी तक न्यायालय में पेश क्यों नहीं किया गया है।

* मंत्री ने कहा कि मामला न्यायालय में लंबित है। अब इस मामले में न्यायालय ही फैसला करेगा।

- अग्रवाल ने कहा था कि कांग्रेस मुद्दाविहीन पार्टी है। उनके पास कोई मुद्दा नहीं था इसीलिए तीन दिनों तक विधानसभा में भी शोर-शराबा करते रहे। किसी मुद्दे पर तर्क या बहस नहीं की। अब पुरानी और फर्जी सीडी जारी कर केवल माहौल बनाना चाहते हैं।

गरीबों के हक के लिए अगर जरूरत पड़ी तो कोर्ट में जाएंगे - भूपेश बघेल
सीडी उजागर करने वाले कांग्रेस नेता भूपेश बघेल का कहना है कि इस बैंक घोटाले में उमेश सिन्हा के नार्को टेस्ट की सीडी अदालत में देने की जिम्मेदारी पुलिस और सरकार थी। जब यह काम नहीं हुआ तो हम जनता की अदालत में सीडी लेकर गए। अब इस संबंध में विधि के जानकारों से सलाह ली जाएगी और जरूरत पड़ने पर हम सीडी लेकर अदालत में जाएंगे। जहां तक सीडी हासिल करने का सवाल है, यह सीडी दिनेश पटेल के करीबियों ने हमें दी है। हम सुरक्षा कारणों से उनके नाम का खुलासा नहीं कर सकते हैं। जिन लोगों ने सीडी दी है वे नंदकुमार पटेल और दिनेश पटेल के संपर्क में थे। सीडी को लेकर पटेल पिता पुत्र में चर्चा चल रही थी। हम लोगों की जानकारी में यह पूरा मामला था।
साभार -
रायपुर 31 अक्टूबर 2015 (जावेद अख्तर).
http://www.khulasatv.com/2015/11/11.html#.Vj2Q416FCSp

रिजेक्ट कोयले का खेल : एसईसीएल हुआ बदहाल, प्राइवेट कंपनी हुई लाल, संचालक हुये मालामाल

छत्तीसगढ़ की ऊर्जा नगरी कोरबा में चारों ओर काले सोने का असीमित भंडार भरा हुआ है जिसके चलते काला सोने यानि कोयले पर कोल व्यापारियों और कोल माफियाओं की भी नज़र गड़ी ही रहती है। कोरबा जिले में भारत सरकार ने कोयले पर भारतीय हक के दावेदारी के चलते ही एसईसीएल का निर्माण किया ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था को कोयले के द्वारा क्रय विक्रय से राजस्व की प्राप्ति होती रहे। भारतीय सरकार को यह अंदेशा भी नहीं रहा होगा कि एसईसीएल के उच्चाधिकारी देश के राजस्व में ही चपत लगाने लगेंगे और प्रतिदिन कई करोड़ का नुकसान पहुंचाने लगेंगे।

बताते चलें कि एसईसीएल कोरबा जिले में कोयला खान की बड़ी यूनिट है। हजारों लाखों लोगों की रोजी रोटी चलने का माध्यम भी। शासकीय उच्चाधिकारियों ने ही एक प्राइवेट कंपनी से हाथ मिला कर भारतीय सरकार को जबरदस्त तरीके से लूटना शुरू कर दिया है। यह लूट खसोट दस-बारह वर्षों से भी अधिक समय से लगातार और प्रतिदिन चल रही है। उच्चाधिकारियों की मिलीभगत से ही आज तक कोई, इस कंपनी की ओर आंख उठा कर भी नहीं देख पाया है।

कई बार जांच हुई जिसमें यह सत्य उजागर हुआ मगर राज्य सरकार और जांच एजेंसियां दोनों ही बौने साबित हो गए एसईसीएल के भ्रष्ट उच्चाधिकारियों और इन प्राइवेट कंपनियों के सामने। इसलिए राज्य सरकार से उम्मीद करना बेकार ही है। प्राइवेट कंपनियों पर एसईसीएल के उच्चाधिकारी की अधिक मेहरबानियां है। वैसे भी एसईसीएल जब खुद लुटने को तैयार बैठी है तो इसमें प्राइवेट कंपनी वाले की क्या गलती। क्योंकि प्राइवेट कंपनी को मौका दिया गया होगा तब ही तो उसने चौका मारा होगा।

एक हिसाब से देखा जाए तो असली गुनहगार तो एसईसीएल के बिकाऊ उच्चाधिकारी हैं। गौर करने वाली बात ये है कि अगर भारतीय सरकार अपने पर आ जाए तो एसईसीएल के उच्चाधिकारियों को और प्राइवेट कंपनियों को 24 घंटे में लाइन पर ला सकती है, मगर अफसोस यही है कि सभी ढिंढोरा पीटते हैं भ्रष्टाचार को समाप्त करने का मगर कोई भ्रष्टाचार से मुक्त होना नहीं चाहता है। ऊपर से लेकर नीचे तक सब भ्रष्टाचार की एक माला के ही मोती है और सभी एक ही धागे में गुधे हुए हैं भले सबकी बनावट व रंग अलग अलग है।

वर्ष 2003 में कांग्रेस पार्टी से तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी द्वारा एक आर्यन के द्वारा हिन्डालको को बेचे गए 4 लाख टन कोयले की जांच सीबीआई द्वारा कराने का आग्रह किया गया था। इसके लिए बकायदा पत्र लिखकर उन्होंने अपनी बात रखी थी, मगर जल्द ही कांग्रेस की उनकी सरकार चली गई। इस पर आज भी भूतपूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी अपनी बात रखते हैं और कार्यवाही न करने का पूरा जिम्मेदार रमन सरकार को बताते हैं।

कोरबा जिले में एसईसीएल और आर्यन के साथ मिलकर कोयले का ऐसा रोचक खेल खेला जाता है जो कि यकीनन कौतूहल का विषय है। वैसे काले सोने के खेल में करोड़ों रुपयों के वारे न्यारे होतें हैं, दरअसल इस खेल की पोलपट्टी तब खुली जब खनिज विभाग के अधिकारियों ने राजधानी रायपुर में चार ट्रकें पकड़ी थी। पकड़े जाने पर ट्रक चालकों ने खनिज विभाग के अधिकारी को बताया था कि इन ट्रकों में रिजेक्ट कोयला है मगर जब जांच की गई तब पता चला कि कोयला अच्छी गुणवत्ता वाला स्टीम कोयला है। खनिज विभाग के अधिकारियों ने ट्रकों को जब्त कर दिया था परंतु राजनीतिक दबाव के चलते मामले को रफा दफा कर दिया गया था।
   
इन सभी कंपनियों को जान लेते हैं -

साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) का परिचय :
 
साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड देश की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी है। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के कोयला भंडार दो राज्यों में फैले हुए हैं, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश। कोयला प्लांट के अलावा छत्तीसगढ़ राज्य में मध्य प्रदेश राज्य में कंपनी के 35 माइंस और 54 खानों के साथ कुल 89 खानों में कोयले का काम कर रही है। कोल इंडिया लिमिटेड से पट्टे के आधार पर पश्चिम बंगाल में दनकुनी कोयला परिसर (डीसीसी)। प्रभावी प्रशासनिक नियंत्रण और संचालन के लिए खानों को तीन कोलफील्ड्स में वर्गीकृत किया गया है।

13 ऑपरेटिंग क्षेत्रों के साथ

मध्य भारत कोलफील्ड्स (सीआईसी),
कोरबा कोलफील्ड्स और
मंड-रायगढ़ कोलफील्ड्स।
      
ए - मध्य भारत कोलफील्ड्स
चिरमिरी क्षेत्र
बैकुण्ठपुर क्षेत्र
बिश्रामपुर क्षेत्र
हसदेव एरिया
भटगांव क्षेत्र
जमुना और कोटमा क्षेत्र
सोहागपुर क्षेत्र
जोहिल्ला जोहिल्ला क्षेत्र
    
बी - कोरबा कोलफील्ड्स
कोरबा क्षेत्र
कुसमुण्डा क्षेत्र
दीपिका क्षेत्र
गेवरा क्षेत्र
   
सी - मंड-रायगढ़ कोलफील्ड्स
रायगढ़
जलकर कोयला संयंत्र परिसर
धनकुनी कोयला संयत्र, पश्चिम बंगाल।

आर्यन कोल बेनिफिकेशन (एसीबी) परिचय :
मेसर्स आर्यन के सन् 1998-99 में 12 एकड़ में वाशरी स्थापित करने हेतु दी गई थी। यह भूमि सीएमपीडीआई के अप्रूव्ड प्लान उपरोक्त भूमि ओवर बर्डन के लिए आरक्षित थी, इसके अलावा एसईसीएल की प्रगति नगर कालोनी इस वाशरी से सिर्फ 100 मीटर दूरी पर स्थित थी, जिसमें 700 परिवार रहते हैं। अतएव उपरोक्त कारणों से यह भूमि उपयुर्क्त नहीं थी किन्तु गेवरा-दीपिका खदान के बीच में स्थित होने से कोयले की हेराफेरी की दृष्टि से अत्यधिक उपयुर्क्त थी। अतएव सभी नियमों को ताक पर रखकर भूमि आवंटित कर दी गई।

एसटीसीएलआई से परिचय :
सर्वेस कोल इंडिया लिमिटेड (एसटीसीएलआई) कोल वाशरी का संचालन हैदराबाद के डॉक्टर मोहन राव द्वारा किया जाता है जो कि अप्रवासी भारतीय बताए जाते हैं।

रिजेक्ट कोयले की घटना पर नज़र डालते हैं :

दरअसल खनिज विभाग को सूचना प्राप्त हुई थी कि कोल वाशरी से 25 ट्रक कोयला लदाकर निकले हैं जिनमें रिजेक्ट कोयले के नाम पर उच्च गुणवत्ता वाला स्टीमकोयला लादा गया है। जिससे जिला खनिज अधिकारी महिपाल सिंह कंवर के नेतृत्व में सुबह तड़के पाली मुख्य मार्ग पर खनिज जांच नाके पर ट्रकों को रोका गया था, जिसमें 4 ट्रकें संदिग्ध पाई गई थी। ट्रक क्रमांक सीजी 10 ए 6211 (चालक फूलचंद), सीजी 10 ए 6212 (चालक महेश पाल), सीजी 10 ए 5551 (चालक दशरथ सिंह) और सीजी 10 ए 5559 (चालक शिवदास) पकड़ी गई थी। ट्रकों के चालकों ने बताया था कि रतिजा स्थित एसईसीएल कोल वाशरी से कोयला लादा गया था। सभी ट्रक दीपिका के निकट झाबर से संचालित वर्धमान रोड लाइसं की थी। सभी ट्रक मुनगाडीह स्थित खनिज विभाग के जांच नाके ले गए तथा सुरक्षा में खड़ा किया। चारों ट्रक चालकों का बयान भी लिया।

जांच के लिए रोके गए चारों ट्रकों और उसमें लदे कोयले की जब्ती के लिए पंचनामा तक बनाया गया था और चारों ट्रकों से सेम्पल लेकर बिलासपुर स्थित अधिकारिक प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा गया था, जिसकी पुष्टि खनिज अधिकारी ने की थी। जिन दोनों कोल वाशरियों से कोयले का परिवहन किया गया था उनको कारण बताओ नोटिस जारी कर जवाबतलब किया और जांच रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई करने की योजना थी।

विभाग ने जब्त किए कोयले का मूल्य अनुमानित 59 हज़ार से अधिक बताया था। प्रत्येक ट्रक में 25-25 टन कोयला लदा हुआ पाया गया था। इसमें यह भी ज्ञात हुआ था कि कोयला, एसईसीएल की कतिपय दीपिका खदानों से रिजेक्ट श्रेणी के नाम पर लिया गया था, इसलिए  एसईसीएल की भूमिका इसमें संदिग्ध मानी गई थी।

ट्रक चालकों ने कहा था कि कुछ ट्रक बिलासपुर के परसदा में पहुंचाना था तथा कुछ ट्रकें महावीर कोल ट्रेडर्स, धरसींवा, रायपुर में पहुंचाना था। तथा नाके पर खनिज विभाग के पहुंचने से पहले ही 21 ट्रकें निकल चुकी थी और इसीलिए मात्र 4 ट्रकें ही पकड़ में आई थी। यह पहला मौका था जब कोल वाशरी से रिजेक्ट कोयले की आड़ में होने वाली अफरा तफरी पर खनिज विभाग ने कार्रवाई की थी जबकि ऐसी शिकायतें खनिज विभाग के पास बराबर मिलती थी और आज भी मिल रही है मगर कार्यवाही एक बार के बाद दोबारा कभी भी नहीं की गई।

काबिलेगौर है कि एसटीसीएलआई कोल वाशरी से रवाना हुई ट्रकों में 3 ट्रकों के चालक के पास मिले कागजातों में खनिज विभाग द्वारा कोल वाशरी को रिजेक्ट कोल के परिवहन हेतु जारी किए गए ट्रांजिट पास क्रमांक 426/54, 426/62, 426/72 व सभी 8 फरवरी 2007 और एसीबी कोल वाशरी से निकली ट्रक के चालक से मिले थे।

-नियमों के अनुसार शिकायत सही पाई जाती तो इस राशि के अलावा दंड भी अधिभारित किया जाता। मगर राजनीतिक दबाव व भ्रष्टाचार के चलते सेटिंग करके मामले को रफादफा कर दिया गया था। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि रिजेक्ट कोल के नाम पर खदानों से निकला कोयला रूपये 80/- प्रतिटन बेचा जाता है और वहीं धुला अथवा नंबर-1 के कोयले की कीमत 4 हजार रुपये प्रतिटन से भी अधिक है।

-रिजेक्ट कोयले के खेल में एमओयू का खुला उल्लंघन किया गया था। क्योंकि जानकारी के मुताबिक, एसीबी वाशरी के संचालन हेतु एसईसीएल तथा वाशरी प्रबंधन के मध्य जो एमओयू साइन हुआ था, उसकी शर्तों में यह साफतौर पर लिखा हुआ है कि "वाशरी वाश कोल तथा रिजेक्ट कोल को उसी पार्टी को आपूर्ति करेगी। वाशरी न तो वाश कोल और न ही रिजेक्ट कोल को किसी अन्य पार्टी को बेच सकती है। इस तरह से यह जो प्रकरण सामने आया, वह साफतौर पर यह बताता है कि एमओयू का वाशरी प्रबंधन द्वारा खुला उल्लंघन किया गया था। मगर इस उल्लंघन पर एसीबी और एसटीसीएलआई वाशरी के प्रबंधन ने इस पर कभी कुछ भी नहीं बोलते हैं।

एक नज़र महिपाल सिंह कंवर, जिला खनिज अधिकारी, कोरबा के बयान पर डालते हैं जिनमें उन्होंने बताया था कि वाशरी से भेजे जा रहे कोयले में रिजेक्ट कोयले की आड़ में अफरा तफरी की शिकायत मिली थी, जिस पर कार्रवाई की गई थी। जांच में प्रथम दृष्टया शिकायत तथ्यपूर्ण प्रतीत हुई थी। जांच हेतु सेम्पल की रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। वर्तमान में खान एवं खनिज अधिनियम की धारा 21 के तहत अवैध परिवहन का प्रकरण दर्ज किया गया था। कोयले से भरे ट्रक जब्त किए गए थे। एसीबी तथा एसटीबीएसईएस कोल वाशरी को शो काज नोटिस भी जारी किया गया था। मगर कार्यवाही इसके आगे नहीं बढ़ पाई। क्यों नहीं बढ़ पाई? इसका जवाब वो नहीं दे पाए। पर आप इतने समझदार तो होंगे ही कि जवाब खुद समझ जायेंगे।
साभार -
रायपुर
कोरबा 24 अक्टूबर 2015 (जावेद अख्तर).
http://www.khulasatv.com/2015/10/26_25.html#

Saturday, August 22, 2015

Chit Fund Means in India : Few Points about Scam of Lakhs of Crores



“Why Government is not nabbing all the directors of errant companies, who fled away with poor people’s hard earn money?  They all should be behind the bars first, same as in the case of Sahara India, then start recovery process.” Virendra Pandey, Chief Promotor, Yuva Shakti Pratishthan

Mr. Virendra Pandey : A Crusader To Stop The Chit Fund Menace  

Mr. Virendra Pandey wrote an article, in which he is questioning to the government for recovery of poor citizen’s money looted by the chit fund companies of India. He emphasis on size of the scam not only in the financial aspects but huge hawala transactions and black money generated and stashed abroad. He also says that government should form an SIT and investigate this scam. Here is the full article:

Illegal CIS Menace
I have come to know that general public and small / medium investors invested their hard earned money in various “quick earn and quick make rich schemes” with higher returns and various incentive promised by companies for promoting products / services wherein a person has to become a member / agent or in other words buy a product to become an agent (interpreted by different names by different companies) and make more members under them and sell the company’s products / services as it was sold to him for which he is offered a hefty commission and incentives thus expanding their tentacles faster and raking in money in hundreds and thousands of crores through MLM / network marketing route and promoting themselves as sale/ purchase or service provider company and circumventing the law of CIS scheme.

After receiving various complaints, I conducted a detailed investigation through our financial and legal experts in the workings and financials claims done by various companies Like PACL, SAIPRASAD GROUP, SAIPRAKASH GROUP, SAMRUDDHA JIVAN Etc. and we have come to the conclusion that there are huge financial irregularities running into thousands of crores and all the claims made by your company through the directors and agents are absolutely false baseless and frivolous.


Do PACL has 60 Lakhs 43 Thousand 388 Sq. Acras Land Bank?
We, gave them an opportunity of being heard by sending notices through our advocates, but there was no reply from them till date we started submitting our finding with law enforcement agencies and now even Security and Appellate Authority has dismissed there claim and ordered PACL TO REFUND Rs. 49,100 CRORES to the 5.85 CRORES CUSTOMERS. Therefore a question arises if the PACL has collected money from 5.85 CRORES CUSTOMERS @ 7500/- per unit then where has the money gone because as per SAT order each customer will get only Rupee 839.31 that to I doubt if the company has sufficient asset to return it. 

As per my calculations, if PACL handed over the 500 Sq. Yards land piece for Rs. 7,500 investment, and if there are 5.85 crores inventors, they must hold a land bank of approximate in the size of 29,25,00,00,000 Sq. Yards land. This is approximate 60 Lakhs 43 Thousand 388 Sq. Acras.

Tons of Questions, No Answers
I had asked how much land with clear marketable title is in possession of your company as on 31st December 2014 along with supported documents state wise.

I had asked how many plot holders do they have as on 31st December 2014 provide list State wise? Which now it is clear by the order of SAT that PACL has 5.85 crores.

PACL has collected more than Rs.40000 crores, I had asked PACL list of people from whom they had collected the amount state wise?


I had asked how many farm houses do PACL possess State wise details.

I had asked whether farm houses are operative?

I had asked why you take Power of Attorney from customer on blank paper.

I had asked why registration Letter, Allotment Letter etc. are issued on letter head of company, instead of any government letter or stamp paper?

I had pointed and demanded PACL company officials about their Auditor of your company has observed that there a discrepancies regarding title and ownership of land, requested give us complete list of such property.

I had requested the company to give us complete list of advances paid for purchase of land along with location of plot and owner/sellers/authorized persons, name to which advances have been paid.

I had asked why has PACL made investments in 100’s of companies like MDLR/ blue coast resorts etc which has no business revelation with the objectives of PACL and is nowhere mentioned in the j/v cum investment agreement of the investors/agent.

I had asked why has directors of PACL and subsidiary companies entered into 100’s of companies in which funds from PACL or its subsidiaries was infused or invested and after some time this directors got retired and went on in some other company doing the same modus-operandi, what is the status of funds which was invested into such companies as this invested funds were collected from lakhs of small and medium investors/agent from across the country in the name of j/v in property development business I shall now right to various law enforcement agencies to enquire the assets and properties of all the directors associated with PACL and its subsidiaries where they have entered and resigned.

I had asked to give us list of complete advances for purchase of land, which are doubtful in the opinion of your company auditor.

I had asked to give us list of loans and advances. Do you receive interest on such advances? Have you taken any permission for granting any such loan from the investors, if yes give us details?

I had asked Why PACL has paid commission and incentive in advance? Give us the complete list of commission and incentive paid in advances and purpose why it is given in advance? Also please provide us the copy of TDS deducted by PACL from the commissions and incentives paid.


Fooling Government and Investors in the Name Of Development of Land
I had further observed that PACL give’s service of development, maintenance, custodian caretaker of the plot which you allot to its investors/agent at a price with a guaranteed high returns thus providing your expertise as service to your clients and do any sale why you should not be termed as service provider and government should not collect service tax from you?

Why Fund Transfer to Australia?
It was further noticed by me that huge amount of funds was transferred to Australia without the permissions of the investors/agents of company thus indulging into illegal trade practice and also may be money laundering.

Where is the Land?
As per the opinion report submitted by my financial expert I doubt that the company does not have sufficient clear marketable land as it shows in the books of account and as shown that they have allotted.

Fake Land Dealing by Company
I have sufficient proof that you have indulged into fabricating of fraud property documents through your front people and office bearers to purchase fraudulently force fully properties and register properties in Raigad district by producing dummy vendor?
I think that by playing the number game of companies and rotating funds from one company to another company and further in some other company you have purpose fully tried to siphoned thousands of crores of hard earned invested funds of the investors/customers/agents and may have transferred it to Australia by illegal means.

I also found that the advances for purchase of land to the tune of Rs1484.63 crores have been paid which seems to be doubtful in nature. Please provide the necessary documents of the parties to whom the advances where paid and for which land??

In the opinion taken their financial experts they have found out that a total amount of 2892.99 crores have been invested in a shady manner my client would like to know the details of investment, name and address of parties to whom the funds were given and purpose of transaction?

Let’s end the Chit Fund menace… Let’s begin the war against financial loot by the crooks in the disguise in the corporate companies.