Saturday, November 7, 2015

इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक घोटाला - आज भी दबे हैं कई गहरे राज़, स्पष्ट जांच से कई सफेदपोशों पर गिरेगी गाज

राजधानी के इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक में करीब दस वर्ष पहले राज्य के सबसे बड़े बैंक घोटाले का पर्दाफाश हुआ था। घोटाले के बाद सभी आरोपी गायब हो गए थे, जमकर हो हल्ला हुआ, जांच टीम गठित करके जांच रिपोर्ट तैयार करने के आदेश दिए गए। मगर जांच टीम ने कई वर्ष लगा दिए जांच कर रिपोर्ट तैयार करने में। जैसे तैसे रिपोर्ट के बाद कुछ खुलासे हुए मगर कोई खास प्रगति नहीं दिखाई दी।

बैंक घोटाले ने हजारों निवेशकों की जिंदगी भर की जमापूंजी पर हाथ साफ कर दिया गया था। पर्दाफाश होते हैं पूरे प्रदेश में आग सी लग गई थी। चारों ओर हरेक व्यक्ति के होंठों पर इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक घोटाला ही था। इसमें साल 2006 में 54 करोड़ रुपए का घोटाले का खुलासा हुआ था। इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक घोटाले में सबसे बड़ा खुलासा वर्ष 2013 में कांग्रेस के द्वारा किया गया हालांकि यह खुलासा विवादों में ही घिरा रहा।

बैंक गबन के मामले में राज्य के मुख्यमंत्री व चार कैबिनेट मंत्री पर करोड़ों रुपये लेने का आरोप कांग्रेस ने लगाया, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने वर्ष 2013 में बैंक के तत्कालीन मैनेजर के नार्को टेस्ट की सीडी को सार्वजनिक किया था। सीडी में मैनेजर ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, तत्कालीन वित्त मंत्री अमर अग्रवाल, लोक निर्माण मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, आवास एवं पर्यावरण मंत्री राजेश मूणत और सहकारिता मंत्री रामविचार नेताम को एक-एक करोड़ रुपये बांटने का दावा किया था।

इस खुलासे के बाद बघेल ने मुख्यमंत्री सहित पूरे मंत्री परिषद को नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देने की मांग की थी हालांकि हुआ ऐसा कुछ भी नहीं था। दूसरी ओर उस समय सरकार के प्रवक्ता बृजमोहन अग्रवाल ने कहा था कि इस सीडी को न्यायालय में सबूत के तौर पर पेश ही नहीं किया गया है, क्योंकि जांच के दौरान बयानों में विरोधाभास मिला था। जबकि कांग्रेस नेता ने पत्रवार्ता में बताया था कि बैंक मैनेजर उमेश सिन्हा की सीडी देखने पर साफ था कि उसने बैंक के चेयरमैन रीता तिवारी के आदेश पर मुख्यमंत्री सहित चार कैबिनेट मंत्रियों को एक-एक करोड़ रुपये बांटे गए थे। यही नहीं, दिवंगत डीजीपी ओपी राठौर को भी एक करोड़ रुपये दिए गए थे। मैनेजर ने खुद एक रुपया भी नहीं लिया था। मामला खुलने के बाद चेयरमैन रीता तिवारी आनन फानन में विदेश निकल गई थी।

इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक -

सदर बाजार स्थित इस सहकारी बैंक में आम और खास लोगों की दिलचस्पी सिर्फ इसलिए थी कि यहां अन्य बैंकों के मुकाबले ब्याज की दर अधिक थी। लिहाजा लोग यहां अपनी गाढ़ी कमाई की रकम जमा करवाते थे। रायपुर शहर के इंदिरा प्रियदर्शिनी महिला नागरिक सहकारी बैंक को महिलाओं के लिए ख़ास तौर पर बनाए गए इस बैंक के संचालक मंडल में केवल महिलाएं थीं। बैंक में केवल महिलाओं को ही ऋण देने की व्यवस्था भी थी। समाज के कमज़ोर वर्ग की महिलाओं को बेहद कम ब्याज़ दर पर क़र्ज़ देकर उन्हें आर्थिक तौर पर स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 'महिला बैंक' शुरू करने की पहल की है। पहले ही गुवाहाटी, कोलकाता, चेन्नई, मुंबई, अहमदाबाद, बैंगलौर और लखनऊ में महिला बैंक की शाखाएं खोली गई हैं।

इस बैंक का मक़सद काम और सेवा में महिलाओं को प्राथमिकता देना है, लेकिन रायपुर के लोग इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक के अनुभव की वजह से कड़वाहट से भरे हैं। रायपुर शहर के सबसे व्यस्त सदर बाज़ार के इलाके में वर्ष 1995 में जब महिलाओं के लिए ख़ास तौर पर इंदिरा प्रियदर्शिनी महिला नागरिक सहकारी बैंक खोला गया तो महिलाओं में गज़ब का उत्साह था। सब कुछ ठीक-ठीक चल रहा था। बाद में बैंक के कुछ अधिकारियों और संचालक मंडल के घोटाले सामने आए और 2 अगस्त 2006 को बैंक बंद हो गया। शहर में मौजूद बैंक की दो शाखाएं भी बंद हो गईं।

इस बैंक की पूंजी में सेंध लगाने का काम "संचालक मंडल के सदस्यों और बैंक प्रबंधन ने 54 करोड़ रुपए से अधिक की रक़म का घालमेल किया। फिर उन्होंने एक दिन अचानक बैंक बंद करने की घोषणा कर दी।" बैंक में गड़बड़ी की जानकारी सबसे पहले 3 अक्टूबर 2007 को उस समय सामने आई जब ऑडिट किया गया।

2007 में दर्ज हुई रिपोर्ट -
मामले की रिपोर्ट सिटी कोतवाली थाने में 9 जनवरी 2007 को दर्ज कराई गई। धारा 409, 420, 467, 468, 201 एवं 120 बी के तहत जुर्म पंजीबद्ध किया गया। लेकिन गबन की राशि बरामद नहीं हो पाई थी। जिसके कारण खातेदारों के जमा रुपये वापस करने की विवशता बैंक के सामने है। डिपाजिट इंश्योरेंस एण्ड क्रेडिट गारंटी कारपोरेशन मुबंई से 13 करोड़ रुपये प्राप्त कर एक लाख की सीमा तक के छोटे खातेदारों को रकम वापस की भी गई थी किंतु डीआईसीजीसी से प्राप्त रकम उसे वापस करना भी एक अनिवार्य शर्त थी तथा खातेदारों की शेष राशि भी वापस करना था जो अभियुक्तों से वसूली हुए बिना संभव नहीं था। इस मामले में सीबीआई जांच की मांग भी की गई थी।

2003 से 2006 तक हुआ गबन -
बघेल बताया था कि गबन वर्ष 2003 से 01.08.2006 तक लगातार किया गया था। इस दौरान बैंक के 25716 खातेदारों की जमा राशि 54 करोड़ 38 लाख 45 हजार 333.27 रुपये का गबन किया गया, फलस्वरूप 02.08.2006 को बैंक का बैंकिंग कारोबार बंद हो गया और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बैंक का बैंकिंग लाइसेंस निरस्त कर दिया। यह गबन बैंक के निदेशक मंडल एवं कर्मचारियों ने षड्यंत्र रचकर किया। इसके तहत फाल्स एफडीआर, डीडी और पे-आर्डर जारी किए गए थे और अलग-अलग बैंकों में जमा राशि भी निकाली गई थी, जिसे बैंक की लेखा पुस्तकों में दर्ज नहीं किया गया। इस दौरान फर्जी दस्तावेजों के आधार पर एक ही व्यक्ति को कई लोन भी बांटे गए थे।

इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक छत्तीसगढ़ का सहकारी क्षेत्र का सबसे बड़ा और भरोसेमंद बैंक था। राज्य भर में इसके तीस हजार से जायदा ग्राहक थे। खास बात यह थी की इस बैंक के संचालक मंडल में कांग्रेस के नेताओं की पत्नियां और महिला नेता शामिल थीं। ये तमाम महिलाएं ही बैंक का संचालन करती थीं। 2007 में 40 करोड़ का घोटाला उजागर होने पर यह बैंक डूब गया।

प्रारभिक जांच पर पता चला की बैंक के मैनेजर समेत संचालक मंडल ने करोड़ों रुपये का गबन किया है और फर्जी ऋण बांट कर आम ग्राहकों की रकम डकार ली। पुलिस ने धोखाधड़ी और अमानत में खयानत का मामला दर्ज कर इस घोटाले के लिये सभी आरोपियों के खिलाफ अदालत में चालान पेश किया था।

घोटाले में लिप्त महिला पदाधिकारी की गिरफ्तारी -
प्रकरण दर्ज होने और शासन पर एक साथ 40 हजार के करीब खातेदारों के बढ़ते दबाव के बाद सितंबर 2008 में श्रीमती पाठक, श्रीमती पगारिया सहित कुल 19 लोगों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था। जिसमें से संचालक मंडल की सदस्या सविता शुक्ला जो पिछले ढाई साल से फरारी काट रही थीं, उनके छोटापारा स्थित निवास से गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया। इसके अलावा इस प्रकरण में सरोजनी शर्मा, कुसुम चौके और अरूणा निगम की गिरफ्तारी शेष रही थी। पुलिस ने बताया कि इन सभी के खिलाफ धारा 420, 468, 120बी के तहत अपराध कायम किया गया है। बताया जा रहा है कि इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक घोटाले में संचालक मंडल की मुख्य पदाधिकारी रीता तिवारी की गिरफ्तारी बीते साल की गई थी और कुछ समय तक जेल में रहने के बाद उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था।

कांग्रेस ने कहा - झीरम घाटी हमले का कारण नार्को सीडी -
कांग्रेस ने राज्य की भाजपा सरकार पर आरोप लगाया था कि नार्को टेस्ट की सीडी की वजह से नंदकुमार और उनके बेटे दिनेश पटेल की हत्या करवा दी गई थी। कांग्रेस मीडिया विभाग के मुताबिक,नक्सली हमले में मारे कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नंद कुमार पटेल के पुत्र स्व. दिनेश पटेल की ओर से 23 मई को उन्हें एक एसएमएस भेजा था कि 15 जून को बड़ा खुलासा होगा, लेकिन 25 मई को जीरम घाटी में नक्सली हमले में उनकी मौत हो गई। वर्ष 2003 से पहली अगस्त 2006 तक इंदिरा सहकारी बैंक के 25716 खातेदारों की 54,38,45,333.27 रुपए की जमा राशि का गबन किया गया। इसके फलस्वरूप 2 अगस्त को बैंक का बैंकिंग कारोबार बंद हो गया।

बृजमोहन ने कहा कांग्रेस का आरोप निराधार -
इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक घोटाले से संबंधित नार्को टेस्ट की सीडी को झीरम घाटी में शहीद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से जोड़ना दुर्भाग्यजनक है, यह बातें जुलाई 2013 में राज्य सरकार के तत्कालीन प्रवक्ता बृजमोहन अग्रवाल ने कही थी। उन्होंने कहा था कि झीरम घाटी में इतनी बड़ी घटना हुई, उसमें शहीद लोगों को श्रद्धांजलि देने के बजाय सीडी को दिवंगत नेता नंदकुमार पटेल के बेटे दिनेश पटेल के एसएमएस से जोड़ना उचित नहीं है। सीडी की सच्चाई पर सवाल खड़ा कर दिया और कहा कि यह कांग्रेस की पुरानी आदत है कि वह असत्य बातों को सीडी के माध्यम से लाकर सत्य बताने का प्रयास करती है। जो बरसों पुरानी सीडी को सनसनीखेज खुलासे की तरह पेश किया गया। नार्को टेस्ट के नाम पर पेश की गई सीडी फर्जी है, यह बात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जानते हैं। यही वजह है कि उनकी पत्रवार्ता में कोई बड़ा लीडर नहीं था। सीडी 2007 में बनी है। सीडी में सच्चाई है तो कांग्रेस ने पिछले चुनाव में इसे मुद्दा क्यों नहीं बनाया?

अग्रवाल ने कहा कि हमारी पुलिस ने पूरे मामले की जांच तत्परता से की। दोषी लोगों को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया। अब आगे का काम अदालत का है, इसलिए इसमें सीबीआई जांच की जरूरत ही नहीं है। सीबीआई पिंजरे में बंद तोता है। यह सर्वोच्च न्याय संस्था सुप्रीमकोर्ट कह चुकी है। फिलहाल इस सीडी को लेकर मचे घमासान से राज्य का राजनीतिक गलियारा गरमा गया था।

मीडिया के सामने आने से बचते रहे उमेश सिन्हा -
इस मामले में उमेश सिन्हा से बातचीत करने की कोशिश की गई और घर पहुंचे मीडिया कर्मियों से भी उन्होंने मिलने और बात करने से इंकार कर दिया था। सिन्हा के वकील एसके फरहान ने यह कहते हुए कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया कि कांग्रेस द्वारा जारी इस सीडी का न्यायालयीन प्रक्रिया से कोई संबंध नहीं है।

- उमेश सिन्हा के नार्को टेस्ट की सीडी में ही कई विरोधाभास हैं। यहां तक कि उमेश सिन्हा ने जो बात एक बार कही, दूसरी बार उसी बात से पलट गया थे। उमेश सिन्हा और इस मामले में गिरफ्तार बैंक के डॉयरेक्टरों के बयानों में भी विरोधाभास थे। इसलिए पुलिस ने इसे साक्ष्य के रुपये में कोर्ट में प्रस्तुत नहीं किया था। यह सीडी आरटीआई के तहत 2009 में उपलब्ध कराई जा चुकी है। - तत्कालीन आई.जी, रायपुर रेंज

-छत्तीसगढ़ विधानसभा में राज्य के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेेस ने इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक द्वारा ॠण वसूली को लेकर सवाल किया और इस मामले में सीबीआई जांच की मांग को लेकर सदन से बहिर्गमन कर दिया था।

- विधानसभा में 22 जुलाई 2015 को प्रश्नकाल के दौरान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक से एक करोड़ रूपए से अधिक राशि का ॠण जिन संस्थाओं या व्यक्तियों को दिया गया है उनसे वसूली को लेकर सवाल किया।

* जवाब में सहकारिता मंत्री दयालदास बघेल ने बताया कि सात ॠण प्राप्तकर्ताओं से अभी तक राशि वसूल नहीं की गई है। सभी सातों प्रकरणों में सक्षम न्यायालय में वाद दायर किया गया है और वसूली की डिग्री प्राप्त किया गया है।।बघेल ने बताया कि जिन संस्थाओं और व्यक्तियों के खिलाफ वाद दायर किया गया है वह फर्जी है। इस मामले में फर्म का पता लगाया गया जो फर्जी निकला। मामला न्यायालय में है।

- कांग्रेस नेता भूपेश बघेल ने कहा कि इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक में करोड़ों रूपए का घपला किया गया है। इस मामले में जो आरोपी है उसका जब नार्को टेस्ट किया गया तब उसने कई लोगों का नाम लिया है। इस नार्को टेस्ट की सीडी को अभी तक न्यायालय में पेश क्यों नहीं किया गया है।

* मंत्री ने कहा कि मामला न्यायालय में लंबित है। अब इस मामले में न्यायालय ही फैसला करेगा।

- अग्रवाल ने कहा था कि कांग्रेस मुद्दाविहीन पार्टी है। उनके पास कोई मुद्दा नहीं था इसीलिए तीन दिनों तक विधानसभा में भी शोर-शराबा करते रहे। किसी मुद्दे पर तर्क या बहस नहीं की। अब पुरानी और फर्जी सीडी जारी कर केवल माहौल बनाना चाहते हैं।

गरीबों के हक के लिए अगर जरूरत पड़ी तो कोर्ट में जाएंगे - भूपेश बघेल
सीडी उजागर करने वाले कांग्रेस नेता भूपेश बघेल का कहना है कि इस बैंक घोटाले में उमेश सिन्हा के नार्को टेस्ट की सीडी अदालत में देने की जिम्मेदारी पुलिस और सरकार थी। जब यह काम नहीं हुआ तो हम जनता की अदालत में सीडी लेकर गए। अब इस संबंध में विधि के जानकारों से सलाह ली जाएगी और जरूरत पड़ने पर हम सीडी लेकर अदालत में जाएंगे। जहां तक सीडी हासिल करने का सवाल है, यह सीडी दिनेश पटेल के करीबियों ने हमें दी है। हम सुरक्षा कारणों से उनके नाम का खुलासा नहीं कर सकते हैं। जिन लोगों ने सीडी दी है वे नंदकुमार पटेल और दिनेश पटेल के संपर्क में थे। सीडी को लेकर पटेल पिता पुत्र में चर्चा चल रही थी। हम लोगों की जानकारी में यह पूरा मामला था।
साभार -
रायपुर 31 अक्टूबर 2015 (जावेद अख्तर).
http://www.khulasatv.com/2015/11/11.html#.Vj2Q416FCSp

रिजेक्ट कोयले का खेल : एसईसीएल हुआ बदहाल, प्राइवेट कंपनी हुई लाल, संचालक हुये मालामाल

छत्तीसगढ़ की ऊर्जा नगरी कोरबा में चारों ओर काले सोने का असीमित भंडार भरा हुआ है जिसके चलते काला सोने यानि कोयले पर कोल व्यापारियों और कोल माफियाओं की भी नज़र गड़ी ही रहती है। कोरबा जिले में भारत सरकार ने कोयले पर भारतीय हक के दावेदारी के चलते ही एसईसीएल का निर्माण किया ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था को कोयले के द्वारा क्रय विक्रय से राजस्व की प्राप्ति होती रहे। भारतीय सरकार को यह अंदेशा भी नहीं रहा होगा कि एसईसीएल के उच्चाधिकारी देश के राजस्व में ही चपत लगाने लगेंगे और प्रतिदिन कई करोड़ का नुकसान पहुंचाने लगेंगे।

बताते चलें कि एसईसीएल कोरबा जिले में कोयला खान की बड़ी यूनिट है। हजारों लाखों लोगों की रोजी रोटी चलने का माध्यम भी। शासकीय उच्चाधिकारियों ने ही एक प्राइवेट कंपनी से हाथ मिला कर भारतीय सरकार को जबरदस्त तरीके से लूटना शुरू कर दिया है। यह लूट खसोट दस-बारह वर्षों से भी अधिक समय से लगातार और प्रतिदिन चल रही है। उच्चाधिकारियों की मिलीभगत से ही आज तक कोई, इस कंपनी की ओर आंख उठा कर भी नहीं देख पाया है।

कई बार जांच हुई जिसमें यह सत्य उजागर हुआ मगर राज्य सरकार और जांच एजेंसियां दोनों ही बौने साबित हो गए एसईसीएल के भ्रष्ट उच्चाधिकारियों और इन प्राइवेट कंपनियों के सामने। इसलिए राज्य सरकार से उम्मीद करना बेकार ही है। प्राइवेट कंपनियों पर एसईसीएल के उच्चाधिकारी की अधिक मेहरबानियां है। वैसे भी एसईसीएल जब खुद लुटने को तैयार बैठी है तो इसमें प्राइवेट कंपनी वाले की क्या गलती। क्योंकि प्राइवेट कंपनी को मौका दिया गया होगा तब ही तो उसने चौका मारा होगा।

एक हिसाब से देखा जाए तो असली गुनहगार तो एसईसीएल के बिकाऊ उच्चाधिकारी हैं। गौर करने वाली बात ये है कि अगर भारतीय सरकार अपने पर आ जाए तो एसईसीएल के उच्चाधिकारियों को और प्राइवेट कंपनियों को 24 घंटे में लाइन पर ला सकती है, मगर अफसोस यही है कि सभी ढिंढोरा पीटते हैं भ्रष्टाचार को समाप्त करने का मगर कोई भ्रष्टाचार से मुक्त होना नहीं चाहता है। ऊपर से लेकर नीचे तक सब भ्रष्टाचार की एक माला के ही मोती है और सभी एक ही धागे में गुधे हुए हैं भले सबकी बनावट व रंग अलग अलग है।

वर्ष 2003 में कांग्रेस पार्टी से तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी द्वारा एक आर्यन के द्वारा हिन्डालको को बेचे गए 4 लाख टन कोयले की जांच सीबीआई द्वारा कराने का आग्रह किया गया था। इसके लिए बकायदा पत्र लिखकर उन्होंने अपनी बात रखी थी, मगर जल्द ही कांग्रेस की उनकी सरकार चली गई। इस पर आज भी भूतपूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी अपनी बात रखते हैं और कार्यवाही न करने का पूरा जिम्मेदार रमन सरकार को बताते हैं।

कोरबा जिले में एसईसीएल और आर्यन के साथ मिलकर कोयले का ऐसा रोचक खेल खेला जाता है जो कि यकीनन कौतूहल का विषय है। वैसे काले सोने के खेल में करोड़ों रुपयों के वारे न्यारे होतें हैं, दरअसल इस खेल की पोलपट्टी तब खुली जब खनिज विभाग के अधिकारियों ने राजधानी रायपुर में चार ट्रकें पकड़ी थी। पकड़े जाने पर ट्रक चालकों ने खनिज विभाग के अधिकारी को बताया था कि इन ट्रकों में रिजेक्ट कोयला है मगर जब जांच की गई तब पता चला कि कोयला अच्छी गुणवत्ता वाला स्टीम कोयला है। खनिज विभाग के अधिकारियों ने ट्रकों को जब्त कर दिया था परंतु राजनीतिक दबाव के चलते मामले को रफा दफा कर दिया गया था।
   
इन सभी कंपनियों को जान लेते हैं -

साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) का परिचय :
 
साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड देश की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी है। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के कोयला भंडार दो राज्यों में फैले हुए हैं, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश। कोयला प्लांट के अलावा छत्तीसगढ़ राज्य में मध्य प्रदेश राज्य में कंपनी के 35 माइंस और 54 खानों के साथ कुल 89 खानों में कोयले का काम कर रही है। कोल इंडिया लिमिटेड से पट्टे के आधार पर पश्चिम बंगाल में दनकुनी कोयला परिसर (डीसीसी)। प्रभावी प्रशासनिक नियंत्रण और संचालन के लिए खानों को तीन कोलफील्ड्स में वर्गीकृत किया गया है।

13 ऑपरेटिंग क्षेत्रों के साथ

मध्य भारत कोलफील्ड्स (सीआईसी),
कोरबा कोलफील्ड्स और
मंड-रायगढ़ कोलफील्ड्स।
      
ए - मध्य भारत कोलफील्ड्स
चिरमिरी क्षेत्र
बैकुण्ठपुर क्षेत्र
बिश्रामपुर क्षेत्र
हसदेव एरिया
भटगांव क्षेत्र
जमुना और कोटमा क्षेत्र
सोहागपुर क्षेत्र
जोहिल्ला जोहिल्ला क्षेत्र
    
बी - कोरबा कोलफील्ड्स
कोरबा क्षेत्र
कुसमुण्डा क्षेत्र
दीपिका क्षेत्र
गेवरा क्षेत्र
   
सी - मंड-रायगढ़ कोलफील्ड्स
रायगढ़
जलकर कोयला संयंत्र परिसर
धनकुनी कोयला संयत्र, पश्चिम बंगाल।

आर्यन कोल बेनिफिकेशन (एसीबी) परिचय :
मेसर्स आर्यन के सन् 1998-99 में 12 एकड़ में वाशरी स्थापित करने हेतु दी गई थी। यह भूमि सीएमपीडीआई के अप्रूव्ड प्लान उपरोक्त भूमि ओवर बर्डन के लिए आरक्षित थी, इसके अलावा एसईसीएल की प्रगति नगर कालोनी इस वाशरी से सिर्फ 100 मीटर दूरी पर स्थित थी, जिसमें 700 परिवार रहते हैं। अतएव उपरोक्त कारणों से यह भूमि उपयुर्क्त नहीं थी किन्तु गेवरा-दीपिका खदान के बीच में स्थित होने से कोयले की हेराफेरी की दृष्टि से अत्यधिक उपयुर्क्त थी। अतएव सभी नियमों को ताक पर रखकर भूमि आवंटित कर दी गई।

एसटीसीएलआई से परिचय :
सर्वेस कोल इंडिया लिमिटेड (एसटीसीएलआई) कोल वाशरी का संचालन हैदराबाद के डॉक्टर मोहन राव द्वारा किया जाता है जो कि अप्रवासी भारतीय बताए जाते हैं।

रिजेक्ट कोयले की घटना पर नज़र डालते हैं :

दरअसल खनिज विभाग को सूचना प्राप्त हुई थी कि कोल वाशरी से 25 ट्रक कोयला लदाकर निकले हैं जिनमें रिजेक्ट कोयले के नाम पर उच्च गुणवत्ता वाला स्टीमकोयला लादा गया है। जिससे जिला खनिज अधिकारी महिपाल सिंह कंवर के नेतृत्व में सुबह तड़के पाली मुख्य मार्ग पर खनिज जांच नाके पर ट्रकों को रोका गया था, जिसमें 4 ट्रकें संदिग्ध पाई गई थी। ट्रक क्रमांक सीजी 10 ए 6211 (चालक फूलचंद), सीजी 10 ए 6212 (चालक महेश पाल), सीजी 10 ए 5551 (चालक दशरथ सिंह) और सीजी 10 ए 5559 (चालक शिवदास) पकड़ी गई थी। ट्रकों के चालकों ने बताया था कि रतिजा स्थित एसईसीएल कोल वाशरी से कोयला लादा गया था। सभी ट्रक दीपिका के निकट झाबर से संचालित वर्धमान रोड लाइसं की थी। सभी ट्रक मुनगाडीह स्थित खनिज विभाग के जांच नाके ले गए तथा सुरक्षा में खड़ा किया। चारों ट्रक चालकों का बयान भी लिया।

जांच के लिए रोके गए चारों ट्रकों और उसमें लदे कोयले की जब्ती के लिए पंचनामा तक बनाया गया था और चारों ट्रकों से सेम्पल लेकर बिलासपुर स्थित अधिकारिक प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा गया था, जिसकी पुष्टि खनिज अधिकारी ने की थी। जिन दोनों कोल वाशरियों से कोयले का परिवहन किया गया था उनको कारण बताओ नोटिस जारी कर जवाबतलब किया और जांच रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई करने की योजना थी।

विभाग ने जब्त किए कोयले का मूल्य अनुमानित 59 हज़ार से अधिक बताया था। प्रत्येक ट्रक में 25-25 टन कोयला लदा हुआ पाया गया था। इसमें यह भी ज्ञात हुआ था कि कोयला, एसईसीएल की कतिपय दीपिका खदानों से रिजेक्ट श्रेणी के नाम पर लिया गया था, इसलिए  एसईसीएल की भूमिका इसमें संदिग्ध मानी गई थी।

ट्रक चालकों ने कहा था कि कुछ ट्रक बिलासपुर के परसदा में पहुंचाना था तथा कुछ ट्रकें महावीर कोल ट्रेडर्स, धरसींवा, रायपुर में पहुंचाना था। तथा नाके पर खनिज विभाग के पहुंचने से पहले ही 21 ट्रकें निकल चुकी थी और इसीलिए मात्र 4 ट्रकें ही पकड़ में आई थी। यह पहला मौका था जब कोल वाशरी से रिजेक्ट कोयले की आड़ में होने वाली अफरा तफरी पर खनिज विभाग ने कार्रवाई की थी जबकि ऐसी शिकायतें खनिज विभाग के पास बराबर मिलती थी और आज भी मिल रही है मगर कार्यवाही एक बार के बाद दोबारा कभी भी नहीं की गई।

काबिलेगौर है कि एसटीसीएलआई कोल वाशरी से रवाना हुई ट्रकों में 3 ट्रकों के चालक के पास मिले कागजातों में खनिज विभाग द्वारा कोल वाशरी को रिजेक्ट कोल के परिवहन हेतु जारी किए गए ट्रांजिट पास क्रमांक 426/54, 426/62, 426/72 व सभी 8 फरवरी 2007 और एसीबी कोल वाशरी से निकली ट्रक के चालक से मिले थे।

-नियमों के अनुसार शिकायत सही पाई जाती तो इस राशि के अलावा दंड भी अधिभारित किया जाता। मगर राजनीतिक दबाव व भ्रष्टाचार के चलते सेटिंग करके मामले को रफादफा कर दिया गया था। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि रिजेक्ट कोल के नाम पर खदानों से निकला कोयला रूपये 80/- प्रतिटन बेचा जाता है और वहीं धुला अथवा नंबर-1 के कोयले की कीमत 4 हजार रुपये प्रतिटन से भी अधिक है।

-रिजेक्ट कोयले के खेल में एमओयू का खुला उल्लंघन किया गया था। क्योंकि जानकारी के मुताबिक, एसीबी वाशरी के संचालन हेतु एसईसीएल तथा वाशरी प्रबंधन के मध्य जो एमओयू साइन हुआ था, उसकी शर्तों में यह साफतौर पर लिखा हुआ है कि "वाशरी वाश कोल तथा रिजेक्ट कोल को उसी पार्टी को आपूर्ति करेगी। वाशरी न तो वाश कोल और न ही रिजेक्ट कोल को किसी अन्य पार्टी को बेच सकती है। इस तरह से यह जो प्रकरण सामने आया, वह साफतौर पर यह बताता है कि एमओयू का वाशरी प्रबंधन द्वारा खुला उल्लंघन किया गया था। मगर इस उल्लंघन पर एसीबी और एसटीसीएलआई वाशरी के प्रबंधन ने इस पर कभी कुछ भी नहीं बोलते हैं।

एक नज़र महिपाल सिंह कंवर, जिला खनिज अधिकारी, कोरबा के बयान पर डालते हैं जिनमें उन्होंने बताया था कि वाशरी से भेजे जा रहे कोयले में रिजेक्ट कोयले की आड़ में अफरा तफरी की शिकायत मिली थी, जिस पर कार्रवाई की गई थी। जांच में प्रथम दृष्टया शिकायत तथ्यपूर्ण प्रतीत हुई थी। जांच हेतु सेम्पल की रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। वर्तमान में खान एवं खनिज अधिनियम की धारा 21 के तहत अवैध परिवहन का प्रकरण दर्ज किया गया था। कोयले से भरे ट्रक जब्त किए गए थे। एसीबी तथा एसटीबीएसईएस कोल वाशरी को शो काज नोटिस भी जारी किया गया था। मगर कार्यवाही इसके आगे नहीं बढ़ पाई। क्यों नहीं बढ़ पाई? इसका जवाब वो नहीं दे पाए। पर आप इतने समझदार तो होंगे ही कि जवाब खुद समझ जायेंगे।
साभार -
रायपुर
कोरबा 24 अक्टूबर 2015 (जावेद अख्तर).
http://www.khulasatv.com/2015/10/26_25.html#