Tuesday, December 25, 2012

रक्षा सौदे घोटाले - रक्षा खरीदारी का अंधकार

बात अगस्त 2009 की है. दिल्ली में एक ऐसा शख्स उतरा जिससे आम तौर पर कभी किसी खुलासे की बात नहीं सुनी गई. कर्नाटक से कांग्रेस के पूर्व सांसद 79 वर्षीय एच. हनुमंतप्पा राजधानी में एक चिट्ठी लेकर आए थे जिसमें रक्षा मंत्रालय द्वारा चेक गणराज्‍य में बनी टाट्रा ट्रकों की खरीद के तरीके में कथित गड़बड़ी के आरोप लगाए गए थे. उनके पास एक गोपनीय रिपोर्ट भी थी जिसे भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (बीईएमएल) के एक कर्मचारी ने तैयार किया था.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि बंगलुरू स्थित रक्षा क्षेत्र की इस सार्वजनिक इकाई ने ट्रकों की खरीद में रक्षा खरीद नियमों का उल्लंघन करते हुए इसे मूल निर्माता से खरीदने की बजाए ब्रिटेन के एक एजेंट रविंदर कुमार ऋषि से खरीदा. उनके मुताबिक, ट्रकों की कीमत को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया था. इन्हें 40 से 80 लाख रु. प्रत्येक की कीमत पर मंगवाया गया, लेकिन बीईएमएल ने इसे दोगुने दाम पर रक्षा मंत्रालय को बेचा. यानी 100 फीसदी से ज्‍यादा का फायदा.



इस सौदे पर बजी खतरे की यह पहली घंटी नहीं थी. पहले भी आशंकाएं जाहिर की गई थीं कि रक्षा मंत्रालय मूल उपकरण निर्माता के साथ सौदा करने की बजाए ट्रेडिंग कंपनी के साथ सौदा कर रहा है. गौर तलब है कि 2006 से रक्षा मंत्रालय की खरीद प्रक्रिया में मूल उपकरण निर्माताओं से सौदा करने को अनिवार्य बना दिया गया है.

2005 में ब्रिगेडियर आइ.एम. सिंह ने टाट्रा ट्रकों की खरीद में कथित अनियमितताओं का आरोप लगाया था. वे मास्टर जनरल ऑफ ऑर्डनेंस (एमजीओ) में तैनात थे. एमजीओ विभाग सेना के लिए वाहन और शस्त्र खरीदने के लिए जिम्मेदार होता है. यह आरोप लगाने के बाद बिग्रेडियर आइ.एम. सिंह को एमजीओ से हटा दिया गया. उसी साल एक टीवी चैनल ने इस सौदे पर खबर भी दी थी और सवाल उठाया था कि कोई सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई किसी सब्सिडियरी के साथ सीधे सौदा कैसे कर सकती है.

साल भर बाद 2006 में निजी क्षेत्र की दो रक्षा कंपनियों लार्सन ऐंड टूब्रो और टाटा पावर को डीआरडीओ की एक संयुक्त परियोजना में काम करने के दौरान बीईएमएल से 28 टाट्रा ट्रकों की जरूरत पड़ी जिन पर स्वदेश निर्मित पिनाका रॉकेट तैनात किए जाने थे. बीईएमएल ने दोनों कंपनियों से आरंभिक 80 लाख रु की राशि पर अतिरिक्‍त 40 लाख रु. प्रति ट्रक की मांग की, जिसे उन्होंने देने से मना कर दिया.


मार्च, 2010 में रक्षा मंत्रालय ने ऋषि की कंपनी ग्लोबल वेक्ट्रा से अतिरिक्त 788 ट्रक 40 फीसदी अधिक दाम पर खरीदे. पिछले 25 साल के दौरान ऐसे 7,000 टाट्रा ट्रकों की खरीद पर 5,000 करोड़ रु. से ज्‍यादा खर्च किए जा चुके हैं. इन सबके बावजूद 30 मार्च को जाकर सीबीआइ पहली बार एफआइआर दर्ज कर सकी, जिसमें देश को धोखा देने के मामले में ऋषि को प्रमुख आरोपी बनाया गया है.

रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी यदि दो महीने में रिटायर होने वाले सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह के दबाव में नहीं आते, तो शायद यह कार्रवाई नहीं होती. जनरल वी.के. सिंह सैन्य बलों में फैल चुके भ्रष्टाचार से तंग आ चुके थे.

पिछली 26 मार्च को एक अखबार में उन्होंने इंटरव्यू में कहा था कि 600 घटिया वाहनों की खरीद को मंजूरी देने के बदले उन्हें 14 करोड़ रु. की रिश्वत की पेशकश की गई थी.


सेना प्रमुख के मुताबिक, सितंबर, 2010 में अवकाशप्राप्त लेफ्टिनेंट जनरल तेजिंदर सिंह ने उन्हें यह पेशकश की थी. अप्रैल में सीबीआइ से की गई औपचारिक शिकायत में जनरल वी.के. सिंह ने ऋषि को जिम्मेदार ठहराया है जिसकी ओर से तेजिंदर रिश्वत की पेशकश करने आए थे. सीबीआइ ने अब इस आरोप में प्राथमिक जांच शुरू कर दी है.


टाट्रा सौदा रक्षा खरीद में दलाली की बस एक झलक भर है, जहां हिथयारों के महत्वाकांक्षी एजेंट, भ्रष्ट अफ सर और आसानी से पटाए जा सकने वाले नेताओं में गहरी साठगांठ है. सरकारी कागजों में वैसे तो अगस्त, 2006 से ही हथियारों के एजेंट गायब हो चुके हैं. उस वक्त रक्षा कंपनियों को एक सत्यनिष्ठा समझौते पर दस्तखत करने थे जहां उनसे हलफनामा लिया गया था कि वे रिश्वत नहीं देंगी और एजेंट नहीं रखेंगी.

निर्माताओं के लिए प्रावधान था कि यदि उन्होंने एजेंट का इस्तेमाल किया, तो उन्हें ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा. इस सबके बावजूद दलाल अब भी फल-फूल रहे हैं जिन्हें 'कामयाबी की रकम' के तौर पर 10 फीसदी कमीशन दिया जा रहा है. दलाली के पैसे को वकीलों की फीस, अवकाश प्राप्त सैन्य अधिकारियों के परामर्श शुल्क और इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों के शुल्क जैसे आवरणों से ढंक दिया जाता है. रक्षा विश्लेषक सी. उदय भास्कर कहते हैं, ''रक्षा उपकरण खरीदने से जुड़ी हमारी अफसरशाही और गोपनीय प्रक्रिया भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है.''


बहरहाल, देश में अब यह एक बड़ा कारोबार बन चुका है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक है. इसने 2007 और 2011 के बीच 60,000 करोड़ रु. (12 अरब डॉलर) के हथियार आयात किए हैं. अगले दशक में यह आंकड़ा 5 लाख करोड़ रु. (100 अरब डॉलर) को पार कर जाएगा. जो सौदे पाइपलाइन में हैं उनमें 126 रफेल लड़ाकू विमानों की 90,000 करोड़ रु. में खरीद, 50,000 करोड़ रु. में छह पनडुब्बियों और अनुमानतः 20,000 करोड़ रु. में की जाने वाली 2,700 हॉवित्जर की खरीद शामिल है. इन्हें बेचने वालों में अमेरिका, फ्रांस, रूस, इज्राएल और ब्रिटेन के सैन्य-औद्योगिक प्रतिष्ठान शामिल हैं.

आखिरकार सिलसिलेवार ढंग से हुए रक्षा घोटालों का साया एंटनी पर पड़ ही गया जिनके अधिकार क्षेत्र में आठ सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा इकाइयों और 40 आयुध कारखानों की खरीद प्रक्रिया आती है. वे पारंपरिक वामपंथी रुझान वाले कांग्रेसी हैं, जो हमेशा से सार्वजनिक क्षेत्र के पैरोकार रहे हैं और उनका राजनैतिक करियर काफी साफ-सुथरा रहा है. अब ऐसा लग रहा है कि उन्होंने कुछ संदिग्ध हथियार सौदों की ओर से अपनी आंखें मूंद रखी थीं.

2009 में सीबीआइ ने आयुध फैक्टरी बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक सुदीप्तो घोष को गिरफ्तार किया था. आयुध फैक्टरी बोर्ड रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाली 40 फैक्टरियों पर नियंत्रण रखने वाली शीर्ष इकाई है. घोष ने कथित तौर पर दो भारतीय और चार विदेशी कंपनियों से रिश्वत ली थी जिन्हें 5 मार्च को एंटनी ने ब्लैकलिस्ट कर दिया था.



एंटनी के मुताबिक, यह प्रतिबंध सीबीआइ की सलाह पर लगा था, जिसने इन कंपनियों के खिलाफ सुबूत जुटा लिए थे.

हालांकि यह प्रतिबंध भारत में विशाल रक्षा सौदों के बाजार में मोटा हिस्सा हड़पने के लिए जबरदस्त लॉबीइंग को नहीं रोक पाया. सरकार भारतीय वायु सेना के लिए कई अरब डॉलर में 126 नई पीढ़ी के लड़ाकू जेट खरीदने का सौदा करने ही वाली थी कि उसके एक पखवाड़े पहले 31 जनवरी को एक फ्रांसीसी हथियार कंसल्टेंट बर्नाड बैएको दिल्ली पहुंचा. उसे रक्षा अधिकारियों के साथ बातचीत में हिस्सा लेना था. लंदन से छपने वाले अखबार संडे टाइम्स ने इस दौरान एक खबर छापी जिसका शीर्षक था 'इनसाइड अ 18 बिलियन डॉग फाइट.'

खबर में बताया गया था कि बैएको थैलेज नाम की एक रक्षा फ र्म का पूर्व कर्मचारी था जो रफव्ल को रडार और इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली मुहैया कराती है. खबर में बताया गया था कि बैएको जीआइई रफेल यानी लड़ाकू  जेट बनाने वाली 500 कंपनियों के एक कंसोर्शियम की गठित टीम का हिस्सा था.

2जी घोटाले में अपनी पड़ताल से देश को हिला कर रख देने वाले जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी के मुताबिक बैएको की भूमिका काफी प्रभावशाली थी. स्वामी ने इंडिया टुडे को बताया, ''वह दिल्ली में करीब एक हफ्ते रहा और कई अहम लोगों से मिला. मुझे बताया गया था कि 126 मध्यम लड़ाकू विमानों की आपूर्ति के लिए 90,000 करोड़ रु. का ठेका यूरो फाइटर को (जो इटली, जर्मनी और ब्रिटेन के कंसोर्शियम ईएडीएस का उत्पाद है) तकरीबन मिल ही गया था कि अचानक सब कुछ पलट गया और सौदा डेसॉल्ट के हाथ लगा.''

कहानी यहीं खत्म नहीं होती. सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने वायु सेना के लिए 75 प्रशिक्षक विमानों की खरीद के 1,850 करोड़ रु. के सौदे को लटका दिया था. सीसीएस ने इस मामले में रक्षा मंत्रालय से सफ ाई मांगी थी. दरअसल, हुआ यह था कि दक्षिण कोरियाई सरकार की ओर से आधिकारिक शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय को मिली थी, जिसमें कंपनियों की चयन प्रक्रिया पर उंगली उठाई गई थी. दावेदारों में दक्षिण कोरिया की कोरियन एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (केएआइ) भी शामिल थी. उसकी टक्कर स्विट्जरलैंड की हवाई क्षेत्र की विशाल कंपनी पाइलेटस एयरक्राफ्ट लि. से थी.

हुआ यूं कि पाइलेटस बोली में जीत गई और कोरियाई कंपनी दूसरे स्थान पर रही, जिसके बाद उसने बोली प्रक्रिया में गड़बड़ी का आरोप लगा दिया. उसका आरोप था कि स्विस कंपनी ने जिस कीमत पर बोली लगाई थी उसमें प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण और रख-रखाव की लागत को जोड़ा नहीं गया था, जिससे उसकी बोली कम रही. आंध्र प्रदेश के एक सांसद अनंत वेंकटरामी रेड्डी ने दिसंबर, 2011 में प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी में लिखा था, ''इसके चलते हमें (भारतीय वायु सेना) विमान के मालिकाना हक की कहीं ज्‍यादा लागत चुकानी पड़ेगी.''

रेड्डी ने पत्र में लिखा, ''इसके बावजूद रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने तय किया कि वे रक्षा खरीद की तमाम प्रक्रियाओं को नजरअंदाज कर पाइलेटस का पक्ष लेंगे. वजह वे ही बेहतर जानते हैं. मुझे इतनी जानकारी है कि रक्षा मंत्रालय को बोली खुलने से पहले ही पाइलेटस की ओर से कई तरह के तकनीकी और वित्तीय आंकड़े प्राप्त हुए थे ताकि उनकी फाइलें दुरुस्त की जा सकें. यह पूरी तरह से रक्षा मंत्रालय के घोषित कायदों का उल्लंघन है.''


लगभग एक दशक में सीबीआइ ने हथियार के सौदागरों, रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों और सैन्य अधिकारियों के खिलाफ 18 मामलों में चार्जशीट दाखिल की, लेकिन उसके हिस्से में कामयाबी बेहद मामूली रही. 2005 में लंदन स्थित एक बिचौलिए विपिन खन्ना और दिल्ली के हथियार दलाल मोहिंदर सिंह साहनी के खिलाफ  दक्षिण अफ्रीकी कंपनी डेनल से 1,200 एंटी मटीरियल राइफलें खरीदने में कमीशन खाने के मामले में चार्जशीट दाखिल की गई.

इसके साल भर बाद 2006 में बराक ऐंटी मिसाइल सिस्टम सौदे में रिश्वतखोरी के मामले में सुरेश नंदा के खिलाफ  चार्जशीट दाखिल की गई. यह सौदा इज्राएल एयरक्राफ्ट इंडस्ट्रीज और भारतीय सेना के बीच हुआ था. नंदा पर ही स्लोवाकिया से बख्तरबंद वाहनों के आयात में भी कथित रिश्वतखोरी का आरोप था.

इस मामले में सीबीआइ जांच अटकी पड़ी है क्योंकि इज्राएल और ब्रिटेन की ओर से न्यायिक जांच में सहयोग संबंधी आधिकारिक मंजूरी (लेटर रोगेटरी) हासिल नहीं हो सकी है. एजेंसी ने 2000 में हथियारों के दलाल सुधीर चौधरी के खिलाफ भी मामला दर्ज किया था, जिसने भारतीय युद्धपोतों पर सात बराक मिसाइलें तैनात करने के सौदे में कथित तौर पर दलाली खाई थी. बाद में सीबीआइ यह साबित नहीं कर सकी कि चौधरी के बैंक खातों में दुनिया के विभिन्न कोनों से आई राशि वास्तव में दलाली की कमीशन थी. हाल ही में उसके खिलाफ  फाइल बंद कर दी गई. हालांकि, प्रवर्तन निदेशालय अपने स्तर पर ऐसी ही एक जांच जारी रखेगा.

ठीक उसी साल सीबीआइ ने हथियारों के एक अन्य दलाल अभिषेक वर्मा के खिलाफ  मामला दर्ज किया गया था. वर्मा ने फ्रांसीसी कंपनी थैलेज की ओर से भारतीय नौ सेना को स्कॉर्पीन पनडुब्बी बिकवाने के मामले में बिचौलिए की भूमिका निभाकर भारी कमीशन ली थी. फिलहाल वर्मा जमानत पर हैं, लेकिन उनके खिलाफ मुकदमा जारी है. इस मामले में सीबीआइ के सामर्थ्य पर काफी कुछ निर्भर करता है कि वह वर्मा के सहयोगी रवि शंकरन का प्रत्यर्पण करवा पाती है या नहीं. शंकरन नौसेना वॉर रूम लीक मामले में प्रमुख संदिग्ध हैं.


2007 में हथियारों के सौदागर रवि ऋ षि की कंपनी ग्लोबल वेक्ट्रा हेलीकॉर्प एक घपले में फंस गई थी जिसके चलते भारतीय सेना के लिए यूरोकॉप्टर के 197 हेलीकॉप्टरों का अरबों रु. का सौदा रद्द हो गया था. रिटायर्ड ले. जनरल एस.जे.एस. सहगल ग्लोबल वेक्ट्रा हेलीकॉर्प के प्रमुख थे. सहगल वेक्ट्रा एविएशन के भी निदेशक थे जो यूरोकॉप्टर हेलीकॉप्टर की इकलौती वितरक है. रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों के इस तरह के रूप में दिखने का इससे बेहतरीन उदाहरण नहीं मिलता.

सहगल के छोटे भाई ले. जनरल एच.एस. सहगल (उस समय सेवा में थे) उस वक्त बेल और यूरोकॉप्टर के बीच चयन की परीक्षण प्रक्रिया का हिस्सा थे. 3,000 करोड़ रु. का यह सौदा उस समय रद्द हो गया जब बेल ने रक्षा मंत्रालय को शिकायत कर दी कि सहगल बंधु मिलकर यह सौदा यूरोकॉप्टर को दिलवाने के पक्ष में माहौल बना रहे हैं.

एक बार फिर 30 मार्च को सीबीआइ ने ऋषि के खिलाफ टाट्रा ट्रक सौदे में एफआइआर दर्ज की है और उससे पूछताछ की जा रही है. टाट्रा की उपयोगिता को कोई चुनौती नहीं दे सकता. यूरोप की एक पर्वत श्रृंखला से इसका नाम प्रेरित है और इसका उपयोग टैंक, हॉवित्जर, रॉकव्ट और यहां तक कि अग्नि और पृथ्वी मिसाइलों को ले जाने में होता है. बोफोर्स की हॉवित्जर की तरह यहां गुणवत्ता का कोई सवाल पैदा नहीं होता है. इसकी एक प्रतिस्पर्द्धी कंपनी ने खुद अवरोधों पर इसकी मक्खन-सी चाल पर रश्क जाहिर किया था. जाहिर है सवाल गुणवत्ता का नहीं, भ्रष्टाचार और दाम बढ़ाकर बेचे जाने का है.

सीबीआइ ने बीईएमएल के'बेनाम' कर्मचारियों के खिलाफ  भी देश को चूना लगाने के मामले में आपराधिक साजिश का मामला दर्ज किया है. इस मामले में इस सार्वजनिक इकाई के चेयरमैन और प्रबंधन निदेशक वी.आर.एस. नटराजन से भी जवाब तलब किया गया है. बीईएमएल ने ऋषि की कंपनी ग्लोबल वेक्ट्रा के साथ सीधे सौदा करके नियमों का उल्लंघन किया है.

लेकिन नटराजन काफी सयाने हैं. उन्होंने केरल के पलक्काड में 260 करोड़ रु. के निवेश से एक फैक्टरी लगाई है जहां 500 से ज्‍यादा लोगों को रोजगार मिलेगा. केरल के पूर्व मुख्यमंत्री होने केनाते एंटनी का कर्तव्य बनता था कि वे अपने घर को सुरक्षित रखते. ऐसे विचारों से पूर्व रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी को कोई फर्क नहीं पड़ता था, जिन्होंने अपने दो साल के कार्यकाल में अपने गृह राज्‍य पश्चिम बंगाल में रक्षा क्षेत्र की कोई सार्वजनिक इकाई नहीं लगाई.

सीबीआइ के अधिकारियों का कहना है कि जब ग्लोबल वेक्ट्रा ने मार्च 2003 में बीईएमएल के साथ सौदे पर दस्तखत किए थे तो उसने खुद को मूल उपकरण निर्माता बताया था, हालांकि वह चेक गणराज्‍य की ट्रक बनाने वाली एक फ र्म की एजेंट थी.

वेक्ट्रा समूह के वाइस प्रेसीडेंट (कम्युनिकव्शंस) दिलीप सिंह कहते हैं, ''रक्षा खरीद नियमों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है क्योंकि टाट्रा सिपॉक्स (ब्रिटेन) आधिकारिक वेंडर है जिसने रक्षा मंत्रालय को सीधे नहीं, बल्कि बीईएमएल को बिक्री की है.'' उन्होंने बताया, ''टाट्रा सिपॉक्स (ब्रिटेन) तकनीकी सहयोग और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए बीईएमएल की एकल खिड़की जैसा काम करती है तथा चेक गणराज्‍य और स्लोवाकिया स्थित दोनों फैक्टरियों के लिए नए उत्पाद बनाती है. जाहिर है यह सिर्फ  'ट्रेडिंग कंपनी' नहीं है.''

माना जा रहा है कि ऋषि ने सीबीआइ की पूछताछ में कई ऐसे खुलासे किए हैं जिससे जांच का दायरा बढ़ सकता है और उसकी चपेट में उन अफसरशाहों और सैन्य अधिकारियों का एक जटिल नेटवर्क आ सकता है जिसे ऋषि ने 'पाला-पोसा.' विशेष तौर पर उसने एक अफसरशाह दंपती का जिक्र किया है जिससे अकूत संपत्ति बटोरने के मामले में पूछताछ चल रही है. ऐसा भी माना जा रहा है कि ऋषि की गिरफ्तारी हो सकती है. उसका पासपोर्ट पहले ही जब्त कर लिया गया है. प्रवर्तन निदेशालय और खुफिया राजस्व निदेशालय जैसी एजेंसियां उसकी एक से ज्‍यादा कंपनियों में पैसे के लेन-देन की जांच करेंगी.

तृणमूल कांग्रेस के सांसद अंबिका बनर्जी कहते हैं, ''लंबे समय से ऐसे दलाल भारत में फलते-फूलते रहे हैं और इन्होंने सैन्य बलों की गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ किया है. रक्षा प्रतिष्ठान के करीब दुकानों से लेकर बड़े हथियार सौदों तक, दलाल हर जगह फैले हुए हैं.''


उन्होंने हाल ही में प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री पर आरोप लगाया था कि उन्होंने रक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार पर लिखी उनकी तमाम चिट्ठियों की उपेक्षा की. ऐसी आखिरी चिट्ठी 11 मई, 2011 को लिखी गई थी. बनर्जी ने इन चिट्ठियों में सेना के लिए खोले जाने वाली दुकानों से लेकर हार्डवेयर की खरीद तक कई तरह के सौदों में रिश्वतखोरी की बात पर जोर दिया था.

एंटनी को रक्षा मंत्रालय की सफाई के लिए यूपीए सरकार में लाया गया था. आखिर, इस सरकार पर जिस कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार का नियंत्रण है, उसे पहले ही हथियार सौदों से काफी चोट पहुंच चुकी है. परिवार को भविष्य के लिए एक ऐसी विरासत की दरकार है जो बेदाग हो, न कि जिस पर बोफोर्स तोप सौदे जैसे छीटें हों. लेकिन अब तो टाट्रा के रूप में नई आफत आ गई है.
सौजन्‍य:
संदीप उन्नीथन और शांतनु गुहा रे | सौजन्‍य: इंडिया टुडे | नई दिल्‍ली, 1 मई 2012 | अपडेटेड: 19:06 IST
http://aajtak.intoday.in/story/darkness-of-defence-purchases-1-696765.html

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