Friday, December 21, 2012

सहारा ग्रुप को बड़ा झटका - सैट ने खारिज की समय सीमा बढ़ाने की याचिका

मुंबई।। सिक्योरिटीज अपीलिय ट्राइब्यूनल (सैट) ने सिक्योरिटी कानून के उल्लंघन के मामले में सहारा ग्रुप को निवेशकों का 24,000 करोड़ रुपए लौटाने के सेबी के फैसले को सही माना है। पिछले वित्त वर्ष में देश के दूसरे सबसे बड़े बैंक आईसीआईसीआई की कुल डिपॉजिट ग्रोथ इतनी रही थी।

आदेश में कहा गया है कि सहारा ग्रुप की 2 कंपनियां- सहारा इंडिया रियल एस्टेट और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉर्प यह रकम करीब 3 करोड़ निवेशकों को छह हफ्ते में 15 फीसदी ब्याज सहित चुकाए। सहारा ग्रुप का कहना है कि वह इस मामले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगा।

सैट के आदेश में कहा गया है, 'अगर 50 या इससे से ज्यादा लोगों को शेयर या डिबेंचर सब्सक्राइब करने का ऑफर दिया जाता है तो उसे पब्लिक इश्यू माना जाना चाहिए। ऐसे में उस पर पब्लिक इश्यू से जुड़े कानून लागू होने चाहिए।' आदेश में यह भी कहा गया है, 'पब्लिक इश्यू में जो जानकारियां सार्वजनिक की जानी चाहिए थी, कंपनी ने उसे निवेशकों/पब्लिक से छिपाया। यह बड़ी बात है और इस विवाद की जड़ से जुड़ी है।'

लखनऊ के सहारा ग्रुप ने जून में दिए गए सेबी के फैसले के खिलाफ सैट में अपील की थी। उस फैसले में सेबी ने सहारा इंडिया रियल एस्टेट (अब सहारा कमोडिटी सर्विसेज) और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉर्प. को पब्लिक इश्यू दिशानिर्देशों का पालन नहीं करने के चलते सब्सक्राइबरों का पैसा लौटाने का निर्देश दिया था। इन कंपनियों ने निवेशकों को ऑप्शनली फुली कनवर्टिबल डिबेंचर (ओएफसीडी) बेचे थे। सहारा इंडिया रियल पर 2.21 करोड़ निवेशकों की 17,656 करोड़ रुपए की देनदारी बनती है। वहीं सहारा हाउसिंग पर 75 लाख निवेशकों की 6,373 करोड़ रुपए की देनदारी है। सहारा ग्रुप के हलफनामे से यह जानकारी मिली है।

सहारा ग्रुप के बयान में कहा गया है, 'यह चौंकाने वाली बात है कि ठीक इसी तरह के मामले में मुंबई की एक कंपनी सिटीकॉर्प फाइनैंस इंडिया लिमिटेड ने प्राइवेट प्लेसमेंट के तहत हजारों निवेशकों को डिबेंचर जारी किए थे। वह कंपनी शेयर बाजार में लिस्ट नहीं थी। सहारा के साथ भी ऐसा ही है। एक जिम्मेदार नियामक की ओर से ऐसा विरोधाभासी कदम सिर्फ हमारे सिस्टम में ही उठाया जा सकता है।'सेबी का कहना था कि सहारा ग्रुप की कंपनियों ने बगैर पर्याप्त डिस्क्लोजर के निवेशकों से बड़ी रकम जुटाई थी। इन कंपनियों ने पब्लिक इश्यू से जुड़े नियमों का पालन नहीं किया है। इसलिए जब तक कंपनी निवेशकों का पैसा नहीं लौटाती, उसके आगे फंड जुटाने पर पाबंदी लगाई जाती है।जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सैट के पास भेज दिया था।

सैट को यह जांच करनी थी कि ऑप्शनली फुली कनवर्टिबल डिबेंचर, पब्लिक इश्यू होते हैं या नहीं, जिन्हें स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट होना जरूरी होता है। और क्या ये सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट्स रेगुलेशन ऐक्ट, 1956 के मुताबिक सिक्योरिटी हैं या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने सैट को यह भी देखने के लिए कहा था कि क्या सेबी को इन्हें रेगुलेट करने का अधिकार है?जस्टिस एन के सोढ़ी ने अपने फैसले में कहा, 'अगर कोई कंपनी ओएफसीडी जारी करती है और वह पब्लिक इश्यू है तो उसे लिस्ट कराया जाना चाहिए। सेबी को सेबी कानून के तहत सभी सिक्योरिटी और कंपनियों को रेगुलेट करने का अधिकार है, भले वे लिस्ट हों या नहीं।'

सहारा के वकील फली नरीमन का कहना था कि कंपनियों ने जो ओएफसीडी जारी कीं, वे पब्लिक इश्यू नहीं हैं। उनके मुताबिक, यह प्राइवेट प्लेसमेंट था क्योंकि इसे सिर्फ सहारा ग्रुप से असोसिएटेड या कनेक्टेड लोगों को बेचा गया। सैट के आदेश में कहा गया है, 'इसमें (सहारा ग्रुप की कंपनियों ने) यह नहीं बताया था कि इंफॉर्मेशन मेमोरेंडम 3 करोड़ से ज्यादा लोगों को जारी किए गए और उन्हें ओएफसीडी सब्सक्राइब करने का ऑफर दिया गया और यही गलती थी।'
साभार
इकनॉमिक टाइम्स | Oct 18, 2011, 09.28PM IST
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/10404873.cms

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