Thursday, June 20, 2013

ब्लैक से वाइट मनी बनाने के खेल से I-T डिपार्टमेंट हुआ घनचक्कर

मुंबई।। मुंबई में इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन विंग को ऐसे कुछ बैंक अकाउंट्स मिले, जिनमें एंट्री की संख्या काफी ज्यादा थी। पहले उन्हें मनी लाउंडरिंग से जुड़ी डील का शक हुआ। लेकिन, गहराई से जांच करने पर उन्हें इसके पीछे जबरदस्त नेटवर्क और इसमें शामिल लोगों का पता चला। इसमें डायमंड हाउसेज, कंस्ट्रक्शन फर्में, लोकल ट्रेडर्स और कुछ ऐसे लोग शामिल हैं, जो सिर्फ थोड़े पैसे के लिए अपने नाम का इस्तेमाल होने देते हैं। ब्लैक मनी को वाइट मनी बनाने का यह खेल काफी समय से चल रहा है।

इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के एक सीनियर अफसर ने कहा, 'पूरी तस्वीर समझने में हमें थोड़ा वक्त लगा। कुछ लोगों पर हमारी नजर है। जांच चल रही है।' कुछ डायमंड फर्में 3 से 6 महीने के क्रेडिट पर रफ डायमंड इंपोर्ट करती हैं। पेपर पर इंपोर्ट पांच कंसाइनमेंट में इंडिया पहुंचता है। इसमें से सिर्फ एक कंसाइनमेंट डायमंड हाउस से जुड़ा होता है। बाकी 4 डायमंड फर्म के 4 असिस्टेंट रिसीव करते हैं। ये असिस्टेंट डायमंड फर्म के लिए मुखौटे का काम करते हैं।

कस्टम फॉर्मैलिटीज पूरी होने के बाद डायमंड की डिलिवरी लेकर असिस्टेंट्स उसे डायमंड हाउस को दे देते हैं। इसके बदले में उन्हें थोड़ी फीस मिलती है। चार असिस्टेंट्स के पजेशन में फिजिकल डायमंड नहीं होता, लेकिन उनकी एंटिटीज के बुक्स में यह डायमंड होता है। उनकी एंटिटीज ने डायमंड हाउस की ओर से इंपोर्टर का काम किया है। इस तरह से डायमंड हाउस अपना टर्नओवर कम रखने और फ्यूचर में टैक्स की चोरी करने में कामयाब हो जाते हैं।

ट्रांजैक्शन के दूसरे फेज से लोकल ट्रेडर्स और जूलर्स जुड़े होते हैं, जो आम तौर पर डायमंड खरीदने के लिए कैश का इस्तेमाल करते हैं। इन्हें बाद में होने वाली सेल को औपचारिक रूप देने और बुक्स को रेग्युलराइज करने के लिए परचेज बिल्स की जरूरत होती है। असिस्टेंट्स उनका यह काम आसान कर देते हैं। डायमंड कंपनी को डायमंड देने से पहले उसकी डिलिवरी लेने वाले असिस्टेंट्स लोकल ट्रेडर्स को बिल्स प्रवाइड करते हैं, क्योंकि वे ऑफिशल इंपोर्टर हैं। लोकल ट्रेडर्स असिस्टेंट्स के नाम से चेक देते हैं और उनसे परचेज बिल ले लेते हैं। लेकिन, यह असली ट्रेड नहीं होता और सही चेक के बदले में असिस्टेंट्स द्वारा कोई डायमंड नहीं बेचा जाता है।

अंतिम फेज में रीयल एस्टेट कंपनियां, कंस्ट्रक्शन फर्में और बड़े प्रॉजेक्ट्स वाली कुछ इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां शामिल हो जाती हैं, जिनके पास काफी ज्यादा अन-अकाउंटेड कैश होता है। वे ऐसे मौके की तलाश में रहती हैं, जिससे उन्हें ऑफिशल बुक्स में कैश रूट करने का मौका मिले। कैश बुक्स से बाहर होने पर वे अपनी कंपनियों का कैपिटल नहीं बढ़ा पाती हैं। इस मल्टि-लेयर्ड ट्रांजैक्शन में असिस्टेंट्स (डायमंड फर्मों के), लोकल ट्रेडर्स और कंस्ट्रक्शन/इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां शामिल होती हैं।

कंस्ट्रक्शन कंपनी असिस्टेंट को कैश देती हैं, जो इसे लोकल ट्रेडर्स को देते हैं। लोकल ट्रेडर्स को वह पैसा मिल जाता है, जिसके लिए उसने असिस्टेंट को चेक में पेमेंट किया था। लोकल ट्रेडर्स को काफी संख्या में चेक लेने में दिक्कत नहीं होती, क्योंकि उन्हें कैश में डील करने की आदत होती है। यहां से जटिल फेज शुरू होता है। असिस्टेंट्स कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा इश्यू किए गए शेयर को सब्सक्राइब करने के लिए चेक से पेमेंट करता है। चूंकि, लोकल ट्रेडर्स से चेक से मिला पैसा उनके अकाउंट में होता है, जिससे उन्हें शेयर ऐप्लिकेशन मनी चुकाने में दिक्कत नहीं होती। कुछ महीने के बाद कंस्ट्रक्शन कंपनी का प्रमोटर असिस्टेंट्स से मामूली कीमत पर शेयर बायबैक कर लेता है। इस तरह से ये कंपनियां असिस्टेंट्स से चेक लेकर अपना कैपिटल बढ़ाती हैं। वे असिस्टेंट्स को मामूली पेमेंट कर देती हैं।
साभार:
सुगाता घोष/एम पद्माक्षण, इकनॉमिक टाइम्स | Apr 12, 2013, 11.18AM IST
http://navbharattimes.indiatimes.com/business/tax/tax-news/game-of-black-money-converted-to-white-money/articleshow/19499799.cms

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