आईएएस को सजा – नेताओं को मजा
1994 में घोटाला तब हुआ था, जब नीरा यादव नोएडा की मुख्य कार्यकारी अधिकारी थीं। इस मामले में नोएडा एंटरप्रेन्योर्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने नीरा पर भूखंड आवंटन में अनियमितताएं बरतने के आरोप की जांच कर रपट दर्ज की थी। सीबीआई ने कोर्ट में दो अलग-अलग आरोप पत्र दाखिल किए थे। दूसरे आरोप पत्र में नीरा पर आरोप लगे कि उन्होंने अपनी दो बेटियों सुरुचि और संस्कृति के नाम व्यावसायिक भूखंड आवंटित करवाए थे। दोनों बेटियों का कारोबार दिखाया जबकि जांच में पता चला कि तब सुरुचि दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में और संस्कृति किसी ब्रितानी कॉलेज में पढ़ रही थीं।
नोएडा भूखंड घोटाले का खुलासा होने पर सुप्रीम कोर्ट
के आदेश पर 26 फरवरी 1998 को सीबीआई ने मामला दर्ज किया। मामला नोएडा अथॉरिटी की तत्कालीन सीईओ नीरा
यादव और अन्य के खिलाफ दर्ज हुआ। 16 अक्तूबर 2002 को सीबीआई ने आरोप पत्र अदालत में दाखिल किए। नीरा के साथ तत्कालीन डिप्टी
सीईओ आईएएस राजीव कुमार भी आरोपी बने। मामला गाजियाबाद में सीबीआई के विशेष जज एस.
लाल की अदालत में चला।
जांच में यह भी पता चला था कि नीरा ने खुद के नाम भी
प्लॉट आवंटित कराया था, जिसे बाद में दूसरे सेक्टर में बदला भी था। नीरा तब नोएडा
अथॉरिटी की अध्यक्ष थीं। 7 दिसंबर 2010 को विशेष सीबीआई
अदालत ने नीरा और फ्लेक्स ग्रुप इंडस्ट्रीज के मालिक अशोक चतुर्वेदी को 1994 के नोएडा जमीन घोटाले में दोनों को चार-चार साल कैद की सजा दी थी। नीरा पर
अवैध रूप से नोएडा में फ्लैक्स इंडस्ट्री को 20 हजार और आठ हजार मीटर जमीन दी थी।
आईएएस राजीव कुमार पर आरोप था कि पहले उन्हें भूखंड संख्या
बी-86/51 दिया था। इसे उन्होंने ए-36/44 में तब्दील करवाया। इसे भी 27/14ए में तब्दील किया। 300 मीटर के इस भूखंड के पास 105 मीटर की अतिरिक्त जमीन भी अपने नाम दर्ज करवा ली। नियमों को ताक पर रख कर
फ्लेक्स ग्रुप को सेक्टर 51 में ए 99 नंबर का ग्रुप हाउसिंग भूखंड
दे किया। छह कंपनियों ने आवदेन किए थे लेकिन फ्लेक्स को लेटरपैड पर आवंटन कर दिया
था। नियमों की धज्जियां उड़ा कर गलत सूचनाएं देने और अनुमति देने का काम नीरा ने
किया था।
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