'नोट फॉर वोट सन् 2008 में संसद की वह एतिहासिक घटना जिसने पूरे विश्व में भारत को शर्मशार कर दिया था। हालांकि इस मामले में मुख्य आरोपी बने सपा से निष्कासित सांसद अमर सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन यह कहना भी गलत नहीं होगा कि अमर सिंह के साथ अन्याय हो रहा है! अमर तो छोटी मछली की तरह मोहरा बने, जबकि बड़े गुनाहगार अभी भी कोसों दूर हैं। ऐसे में अमर के साथ न्याय तभी होगा जब सभी साथ-साथ जेल की सैर करें। जबकि सच तो यह है कि इन बड़े गुनाहगारों खिलाफ कोई चार्जशीज दाखिल करना तो दूर उनका नाम तक नहीं लिया जा रहा है। इसे जांच एंसेजी की लापरवाही कहें या फिर सत्ताधारी पार्टी का दबाव लेकिन जो भी हो अकेले अमर सिंह इस पूरे कांड के कर्ता-धर्ता तो नहीं हो सकते।
'कैश फॉर वोट कांड में अमर सिंह की गिरफ्तारी ने देश की सियासत में भूचाल ला दिया है। विपक्ष ने जहां अमर सिंह को जेल भेजने के कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है, वहीं इस कांड से फायदा उठाने वाली मनमोहन सरकार को क्लीन चिट दिए जाने पर भी सवाल उठाए हैं। कानून की आंखों में लगातार धूल झोक रहे अमर सिंह आखिरकार नंगे हो गए। खुद अपने ही हाथों अपने लिए कब्र खोदी। उनकी गंदी राजनीति का नतीजा उनके राजनैतिक पतन का कारण बना। आपको बताते चलें कि यह वही अमर सिंह हैं जिन्होंने इस मामले में खुद को पाक-साफ बताया था। लगातार जांच के दौरान अपने बयानों में फंसाने की बात करते रहते थे।
क्यों खरीदे जा रहे थे सांसद
अमरीका से परमाणु संधि के अपने फैसले पर कायम रहने के प्रधानमंत्री के बयान के बाद वाम दलों के 61 सदस्यों ने सरकार से समर्थन वापस लेते हुए इसे अल्पमत में ला दिया था। इसके बाद सरकार को विश्वास मत हासिल करना पड़ा जिसमें बाहर से बड़ी संख्या में सांसदों का समर्थन चाहिए था और तभी शुरू हुआ सांसदों की खरीद-फरोख्त का खेल।
अमर सिंह का ड्रामा
अदालती कार्रवाई से बचने के लिए अमर सिंह ने खूब चक्कर चलाया। अमर के वकील ने अदालत में एक याचिका दाखिल उनके अस्वस्थ बताया और अदालत में हाजिर न होने की छूट मांगी। वकील ने दलील देते हुए कहा कि अमर सिंह स्वस्थ नहीं हैं और वह बिस्तर पर हैं। डॉक्टर ने उन्हें घूमने-फिरने से मना किया है। अदालती कार्रवाई के दौरान ही अमर सिंह के गुर्दे में समस्या पैदा हो गई, उन्हें रक्तचाप की भी शिकायत आने लगी।
ना रहा जवाब, तो पहुंचे अदालत
विशेष न्यायाधीश संगीता ढींगरा सहगल ने वकील से अमर के स्वास्थ्य की चिकित्सा रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट में उस तारीख का उल्लेख होना चाहिए कि कब उनके गुर्दे का प्रत्यारोपण हुआ था, और उसके बाद वह कितनी बार चिकित्सक के पास गए। इससे घबराए आखिरकार अमर अदालत पहुंचे। जिसके बाद कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए अमर सिंह 14 दिन की न्यायिक हिरासत यानी 19 सितंबर तक के लिए तिहाड़ जेल भेज दिया गया।
अमर सहित छह आरोपी
मालूम हो कि दिल्ली पुलिस ने मामले में सांसद अमर सिंह, फग्गन सिंह कुलस्ते और महाबीर सिंह भगोरा और सुधींद्र कुलकर्णीं सहित छह लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किए हैं। विशेष अदालत आरोपपत्र पर संज्ञान लेकर चारों आरोपियों को 6 सितंबर को कोर्ट में पेशी के लिए सम्मन जारी किया था। जबकि दो अन्य आरोपी संजीव सक्सेना व सुहेल हिंदुस्तानी पहले से ही हिरासत में हैं। इस मामले में दिल्ली पुलिस की ओर से आरोपपत्र दाखिल किए जाने के बाद अमर व तीन अन्य को मंगलवार को अदालत के सामने उपस्थित होना था। सहगल ने 25 अगस्त को अमर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व सांसदों फग्गन सिंह कुलस्ते, अशोक अर्गल और महावीर भगोरा को समन जारी किया था। कुलस्ते और भगोरा को भी 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है।
एक करोड़ का षडय़ंत्र
22 जुलाई, 2008 को तीन भाजपा सांसदों ने लोकसभा में विश्वास मत के दौरान नोटों की गड्डियां लहराई थीं। इन सांसदों का आरोप था कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के पक्ष में वोट देने के लिए उन्हें यह पैसा दिया गया है। आरोपपत्र में कहा गया है कि जांच के दौरान इस बात के पर्याप्त सबूत मिले हैं कि 22 जुलाई, 2008 की सुबह अमर सिंह ने अपने सचिव संजीव सक्सेना के साथ अवैध रूप से एक करोड़ रुपये देने का आपराधिक षडय़ंत्र रचा था।
फायदा उठाने वाले को क्लीनचिट
अमर सिंह को जेल हो जाने के बाद जहां कई विपक्षी नेता खुश हैं वहीं इस कांड से फायदा उठाने वाली मनमोहन सरकार को क्लीन चिट दिए जाने पर भी उन्होंने सवालिया निशान लगा दिया है। आपको याद दिला दें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री के खिलाफ याचिका दाखिल करने वाले संतोष कुमार सुमन पर एक लाख का जुर्माना ठोंका था। कोर्ट ने इस याचिका को बेवजह करार देते हुए नसीहत दी थी कि किसी के खिलाफ याचिका दाखिल करने से पहले उसे जांच-परख ली जाए। साथ ही कोर्ट ने इसे सस्ती लोकप्रियता का आधार भी बताया था।
याचिका में दलील
याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि चूंकि सांसदों को पैसे कथित रूप से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार को बचाने के लिए दिए गए थे और पैसे की पेशकश में प्रधानमंत्री की मिलीभगत जाहिर होती है इसलिए उनके खिलाफ मामला दायर होना चाहिए।
पैसों का रहस्य बरकरार
जनता बेहाल है लेकिन देश के नेता मालामाल हैं। गरीबों की झोलियां खाली हैं, पर संसद में नोटों की गड्डियां हवा में तैरती हैं। आज भी इस बात का पुख्ता खुलासा नहीं हो सका कि इतना पैसा सांसदों के पास आया कहां से। हालांकि इस मामले में पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से धन के स्रोत का पता लगाने को कहा था। समय गुजरता गया, दिल्ली पुलिस के दावे होते रहे, जांच भी जारी है लेकिन दिल्ली पुलिस के हाथ अभी तक कुछ नहीं आया।
जांच पर उठे थे सवाल
बता दें कि इस मामले में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह ने जांच के प्रति अविश्वास जाहिर कर याचिका भी दायर की थी। याचिकाकर्ता लिंगदोह के वकील ने मामले के निपटारे का विरोध किया। उन्होंने जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि पुलिस ने अभी तक यह पता नहीं लगाया कि इस कांड के वास्तविक लाभार्थी कौन थे। उन्होंने याचिका लंबित रखने की मांग की लेकिन पीठ ने इससे इंकार कर दिया। अदालत ने कहा कि आरोपपत्र दाखिल हो चुका है, आपकी याचिका का मुख्य उद्देश्य पूरा हो गया है अब आगे की कार्यवाही संबंधित सुनवाई अदालत में होगी। इतना कह कर कोर्ट ने मामले का निपटारा कर दिया।
पहली गिरफ्तारी (संजीव सक्सेना)
इस मामले में सबसे पहले संजीव सक्सेना को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। बता दें संजीव सक्सेना की समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमर सिंह का सबसे नजदीकी कलीग था। काफी समय बीतने बात जब कोई गिरफ्तारी न हो सकी तो सुप्रीम कोर्ट ने 15 जुलाई को दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई। जिसके बाद हरकत में आई दिल्ली पुलिस ने संजीव सक्सेना को गिरफ्तार किया था।
दूसरी गिरफ्तारी (सुहैल हिंदुस्तानी)
दूसरी गिरफ्तारी के रूप में दिल्ली पुलिस ने सुहैल हिंदुस्तारी को गिरफ्तार किया। बिचौलिए की भूमिका निभाने वाला सुहैल हिन्दुस्तानी ने खुद को भारतीय जनता युवा मोर्चा का पूर्व सदस्य बताया। गिरफ्तारी के बाद सुहैल हिदुस्तानी ने पूछताछ में क्राइम ब्रांच के सामने ढेरों खुलासे किए थे। सुहैल ने आरोप लगाया था इस मामले में अमर सिंह, रेवती रमन सिंह और अहमद पटेल ने अहम भूमिका निभाई थी। सुहैल के संपर्क में कांगे्रसी नेता = सुहैल का यह भी कहना था कि इस कांड में 12 से 15 कांग्रेसी नेता थे जो उस दौरान संपर्क में थे। उनमें से कुछ प्रधानमंत्री के करीबी भी थे।
कुलस्ते, भगोरा भी तिहाड़ में
''भाजपा के दो पूर्व सांसदों महावीर भगोरा व फग्गन सिंह कुलस्ते को मंगलवार को गिरफ्तार कर 19 सितंबर तक न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। इन सभी पर 2008 के वोट के लिए नोट मामले में कथित रूप से लिप्त होने का आरोप है। इन्हें तिहाड़ जेल नंबर 3 में पहुंचा दिया गया जहां झारखंड के नेता मधु कौडा बंद हैं। इनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आपराधिक साजिश) की धारा-120 (बी) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-12 के तहत कार्रवाई की गई है।
जांच की आंच - निष्पक्ष नहीं दिल्ली पुलिस
जांच एजेंसियां और पुलिस बिना अदालतों की फटकार के बिना अपना काम सही ढंग से नहीं होता। यह इसी बात से साबित हो जाता है कि तीन साल बीतने के बाद भी दिल्ली पुलिस निठल्ली बन तमाशा देखती रही। कारण जो भी रहा हो लेकिन साफ जाहिर होता है कि दिल्ली पुलिस निष्पक्षता से कोसों दूर है। शायद सांप की तरह कुंडली मारे बैठी दिल्ली पुलिस पर सत्ताधारी पार्टी या प्रभावशाली और पैसों वालों का प्रभाव चलता है। रही बात गुनाहगारों पर हाथ डालने की तो इस मामले में ऐसे लोग भी फंसते नजर आ रहे थे जो खुद चिल्ला-चिल्लाकर मामले को तूल देते हुए दिखे। यहां यह सवाल उठता है कि जो काम फटकार खाने के बाद, मात्र 24 से 72 घंटों मे कर दिया गया वह पिछले 3 सालों में क्यों नहीं किया गया था, इस अपराधपूर्ण लापरवाही के लिए कौन-कौन जिम्मेदार है। क्या दिल्ली पुलिस ने सबूतों को छिपाकर रखा था या फिर सिर्फ कोर्ट के डर से उसने गिरफ्तारियां कीं थी।
लापरवाही या साजिशन कार्रवाई
यह तो सभी जानते हैं कि उस वक्त सरकार खतरे में थी और भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी के करीबी माने जाने वाले सुधीन्द्र कुलकर्णी तक जांच की आंच पहुंच सकती थी, इसी के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल भी लपेटे में आ सकते थे, इसलिए दिल्ली पुलिस दबाव में थी और उसने मामले को ठंडे बस्ते मे डाले रखा था। अब इसे दिल्ली पुलिस की लापरवाही कहें या साजिसन कार्रवाई, पर एक बात साफ हो चुकी है कि दिल्ली पुलिस पर सत्ताधारी पार्टी का पूरा दबाव है।
भ्रष्ट दलदल में कांग्रेस
कांग्रेस भ्रष्टाचारी दलदल के कीचड़ में पूरी तरह सनी हुई है। वरना कांग्रेस ने जांच में दिलचस्पी क्यों नहीं दिखाई? कांग्रेस कितनी भ्रष्ट और तानाशाह है इसी बात से दिख जाता है जब भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन पर बैठे बाबा रामदेव और उनके समर्थकों पर हमला करवा दिया। और तो और कांग्रेसी नेता सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को भ्रष्ट कहने से भी बाज नहीं आए।
ऐसी चली थी पुलिस कार्रवाई
संसद में सरकार बचाने के लिए सांसदों को करोड़ों में खरीदने के सनसनीखेज कैश फॉर वोट प्रकरण में आश्चर्यजनक रूप से किसी नेता को शामिल नहीं पाया गया। जबकि इसमें अमर सिंह और अहमद पटेल के नाम आ रहे थे। दिल्ली पुलिस ने दावा किया था कि उसके पास देश के इस सबसे बड़े राजनीतिक घोटाले में जिम्मेदार ठहराने के लिए किसी भी नेता के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है। साथ में ही जांच में पुलिस को कोई सबूत नहीं मिला है कि सुहैल हिंदुस्तानी का किसी राजनेता ने संपर्क हुआ था। गत् 5 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने 'बेमन से जांच पर दिल्ली पुलिस को कस कर फटकार लगाई थी और उससे जांच को तार्किक परिणति तक ले जाने एवं तीन हफ्तों में अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था। न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति आरएम लोढा की खंडपीठ ने इस पर अफसोस जताया था कि 'सबसे घटिया किस्म के एक बिचौलिए को संसदीय कार्यवाही को पटरी से उतारने की इजाजत दी गई। खंडपीठ ने 2008 के इस घोटाले में किसी भी राजनीतिक नेता का हाथ नहीं होने का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस की प्राथमिक रिपोर्ट के अध्ययन के बाद कहा था, 'यह आपका (दिल्ली पुलिस) बेमन का प्रयास है।
चालीस दिन की मोहलत
अदालत की फटकार के बाद नींद से जागी दिल्ली पुलिस ने अदालत से 40 दिन की मोहलत मांगी। इस पर अदालत ने आग्रह ठुकराते हुए कहा था कि वह तीन हफ्तों के अंदर अपनी अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दे।
आखिरकार लंबे अर्से के बाद कार्रवाई हुई और पुलिस ने सुहैल हिंदुस्तानी और संजीव सक्सेना को गिरफ्तार किया। साथ ही सांसद अमर सिंह, अशोक अर्गल और रेवती रमण सिंह से पूछताछ कर अपनी रिपोर्ट एक मुहरबंद लिफाफे में दाखिल की। यही नहीं अमर सिंह और अशोक अर्गल समेत 5 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है।
अमर से पूछे गए थे 12 सवाल
गिरफ्तारी से पहले जांच के दौरान दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की टीम ने कैश फॉर वोट मामले में सांसद अमर सिंह से 12 सवाल किए थे। लेकिन बड़ी ही चालाकी से अमर से उनका जवाब दिया था।
1. अमर सिंह से फोन नंबर के संबंध में की गई पूछताछ?
2. किस बैंक से पैसे निकाले गए?
3. इन खातों में कहां से ये पैसे आए?
4. सक्सेना कौन है?
5. क्या जिस कार को पैसे ले जाने के लिए इस्तेमाल किया गया वो आपका है?
6. ड्राइवर संजय और उसका मोबाइल नंबर क्या है?
7. गुरुजी और मिस्टर गुप्ता का क्या रोल है?
8. उनके इस कांड में संलिप्तता कि आपको कैसे जानकारी है?
9. इन दोनों को आप कैसे जानते हैं?
10. कैश फॉर वोट कांड वाले दिन आप कहां थे?
11. क्या आप उन बीजेपी सांसदों से मिले हैं जिन्हें पैसे का ऑफर दिया गया था?
12. क्या आपने सक्सेना का उनसे परिचय कराया था?
मुलायम का राजनीतिक दांवपेच
जब 'नोट के बदले वोट मामले में अमर सिंह फंसे हुए थे उस वक्त शायद मुलायम सिंह को अपनी दोस्ती याद आई थी। तभी एक झटके में उन्होंने कह डाला था अमर सिंह बेकसूर हैं। दिल्ली पुलिस द्वारा अमर से इस मामले में पूछताछ करना अन्याय है और वह अमर सिंह की इस मामले में मदद करेंगे ताकि वे इस इस संकट से बाहर आ सकें। हालांकि अब उनकी गिरफ्तारी के बाद मुलायम का दिखना तो दूर, उनका कोई बयान भी नहीं आया। क्या अब भी मुलायम, अमर को निर्दोष मानते हैं।
आपकों बता दें जिस समय अमर सिंह पर पुलिस का शिकंजा कस रहा था उस वक्त मुलायम उनके हिमायती बनकर खड़े हुए थे। यह उनकी दरियादिली थी या राजनीतिक दांवपेंच। फिलहाल जानकारों का कहना था कि सपा सुप्रीमो चाहते थे कि अमर सिंह फिर उनकी पार्टी में आ जाएं। लिहाजा उन्होंने अमर का पक्ष लिया था।
सपा सुप्रीमो यह कहते नहीं थक रहे थे कि अमर सिंह के साथ जो कुछ भी किया जा रहा है वह अन्याय है और यह अमर सिंह और रेवती रमण को परेशान करने की साजिश है।
अमर के एहसान याद करे कांग्रेस
कांग्रेस शायद अमर सिंह के अहसानों को भूल चुकी थी, तभी तो मुलायम सिंह ने अमर के उन एहसानों की याद दिलाई थी जब उन्होंने वर्ष 2008 में विश्वास मत के दौरान कांग्रेस की मदद की थी।
सच जानता हूं मैं
मुलायम सिंह ने यह भी कहा था कि मुझे सच पता है ओर वह यह है कि अमर सिंह भाजपा सांसदों को घूस देने में शामिल नहीं हैं। हम लोगों ने कांग्रेस के पक्ष में वोट देकर कांग्रेस की सिर्फ मदद की थी। क्या हम लोग सरकार में शामिल हुए? क्या रेवती सिंह और अमर सिंह मंत्री बन गए? अगर पैसों का लेनदेन होता तो मुझे इस बारे में जरुर पता होता।
अमर सिंह की गिरफ्तारी हो गई लेकिन उन लोगों का क्या जिन्हें इससे फायदा हुआ। इससे फायदा हुआ यूपीए सरकार को, मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की सरकार को। उनकी भूमिका की भी जांच की जानी चाहिए। 'अमर सिंह को जिस जगह होना चाहिए वो वहीं पहुंच गए हैं
सपा प्रवक्ता मोहन सिंह:
असली दोषी जेल से बाहर हैं। ये मामले की लीपापोती हो रही है। पुलिस उन लोगों का पता लगाए जिन्होंने अमर को इस काम के लिए तैयार किया। तीन करोड़ रुपये दिए गए थे लेकिन एक करोड़ ही सामने आए। बाकी के दो करोड़ रुपये कहां गए। जिसने जैसा किया है वो वैसा फल पाएगा। लेकिन ये कौन सा तरीका है कि सरकार चलाने वाले सारे लोग ईमानदार हैं और सरकार के बाहर के सभी लोग बेईमान।
सीपीआई नेता गुरुदास दासगुप्ता:
अमर सिंह अपनी सही जगह पहुंच गए हैं। कैश फोर वोट कांड का फायदा सरकार ने उठाया। प्रधानमंत्री को इस पर सफाई देनी चाहिए। अमर सिंह को आगे करने वाला कौन था। उनको भी जेल भेजना चाहिए।
आरोपी सांसद और बीजेपी नेता अशोक अर्गल:
दिल्ली पुलिस तीन साल से कहां थी? सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद ही ये कार्यवाही हुई। हम कोर्ट और कानून का सम्मान करते हैं। लेकिन कांग्रेस को क्यों छोड़ा जा रहा है? क्या सांसदों की खरीद-फरोख्त नहीं होती? कोई मुफ्त में दल बदलता है क्या? क्या जेएमएम के सांसद नहीं खरीदे गए? जिसने मामले का खुलासा किया उन्हें जेल भेजा जा रहा है और जिन्होंने फायदा उठाया उन्हें क्लीन चिट मिल गई।
सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम:
कैश फोर वोट कांड में अमर सिंह ने मुख्य भूमिका निभाई थी। उम्मीद है कि कानून के हाथ आखिरी दोषी तक पहुंचेंगे। उम्मीद है कि अमर सिंह सच्चाई बयान करेंगे। कोर्ट को इस केस की पूरी जांच पर नजर रखनी होगी वर्ना जांच में कुछ भी सामने नहीं आ पाएगा।
कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी:
कैश फोर वोट कांड की जांच कोर्ट की निगरानी में हो रही है। पुलिस जांच में जो तथ्य सामने आए उसी के आधार पर चार्जशीट दायर की गई है। कांग्रेस के पास कोर्ट की निगरानी में हो रही जांच पर टिप्पणी करने का कोई कारण नहीं है।
संसदीय कार्यमंत्री पवन बंसल:
पीएम हर मसले पर जवाब नहीं देंगे। कोई भी रिकॉर्ड उठाकर देख सकता है कि यूपीए को संसद में मतविभाजन के दौरान वोटों की जरूरत नहीं थी। उसके पास पहले से ही बहुमत था।
साभार
अरुण पटेल विद्रोही, बुधवार, 7 सितम्बर 2011
http://hadtal.blogspot.in/2011/09/blog-post_07.html
'कैश फॉर वोट कांड में अमर सिंह की गिरफ्तारी ने देश की सियासत में भूचाल ला दिया है। विपक्ष ने जहां अमर सिंह को जेल भेजने के कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है, वहीं इस कांड से फायदा उठाने वाली मनमोहन सरकार को क्लीन चिट दिए जाने पर भी सवाल उठाए हैं। कानून की आंखों में लगातार धूल झोक रहे अमर सिंह आखिरकार नंगे हो गए। खुद अपने ही हाथों अपने लिए कब्र खोदी। उनकी गंदी राजनीति का नतीजा उनके राजनैतिक पतन का कारण बना। आपको बताते चलें कि यह वही अमर सिंह हैं जिन्होंने इस मामले में खुद को पाक-साफ बताया था। लगातार जांच के दौरान अपने बयानों में फंसाने की बात करते रहते थे।
क्यों खरीदे जा रहे थे सांसद
अमरीका से परमाणु संधि के अपने फैसले पर कायम रहने के प्रधानमंत्री के बयान के बाद वाम दलों के 61 सदस्यों ने सरकार से समर्थन वापस लेते हुए इसे अल्पमत में ला दिया था। इसके बाद सरकार को विश्वास मत हासिल करना पड़ा जिसमें बाहर से बड़ी संख्या में सांसदों का समर्थन चाहिए था और तभी शुरू हुआ सांसदों की खरीद-फरोख्त का खेल।
अमर सिंह का ड्रामा
अदालती कार्रवाई से बचने के लिए अमर सिंह ने खूब चक्कर चलाया। अमर के वकील ने अदालत में एक याचिका दाखिल उनके अस्वस्थ बताया और अदालत में हाजिर न होने की छूट मांगी। वकील ने दलील देते हुए कहा कि अमर सिंह स्वस्थ नहीं हैं और वह बिस्तर पर हैं। डॉक्टर ने उन्हें घूमने-फिरने से मना किया है। अदालती कार्रवाई के दौरान ही अमर सिंह के गुर्दे में समस्या पैदा हो गई, उन्हें रक्तचाप की भी शिकायत आने लगी।
ना रहा जवाब, तो पहुंचे अदालत
विशेष न्यायाधीश संगीता ढींगरा सहगल ने वकील से अमर के स्वास्थ्य की चिकित्सा रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट में उस तारीख का उल्लेख होना चाहिए कि कब उनके गुर्दे का प्रत्यारोपण हुआ था, और उसके बाद वह कितनी बार चिकित्सक के पास गए। इससे घबराए आखिरकार अमर अदालत पहुंचे। जिसके बाद कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए अमर सिंह 14 दिन की न्यायिक हिरासत यानी 19 सितंबर तक के लिए तिहाड़ जेल भेज दिया गया।
अमर सहित छह आरोपी
मालूम हो कि दिल्ली पुलिस ने मामले में सांसद अमर सिंह, फग्गन सिंह कुलस्ते और महाबीर सिंह भगोरा और सुधींद्र कुलकर्णीं सहित छह लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किए हैं। विशेष अदालत आरोपपत्र पर संज्ञान लेकर चारों आरोपियों को 6 सितंबर को कोर्ट में पेशी के लिए सम्मन जारी किया था। जबकि दो अन्य आरोपी संजीव सक्सेना व सुहेल हिंदुस्तानी पहले से ही हिरासत में हैं। इस मामले में दिल्ली पुलिस की ओर से आरोपपत्र दाखिल किए जाने के बाद अमर व तीन अन्य को मंगलवार को अदालत के सामने उपस्थित होना था। सहगल ने 25 अगस्त को अमर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व सांसदों फग्गन सिंह कुलस्ते, अशोक अर्गल और महावीर भगोरा को समन जारी किया था। कुलस्ते और भगोरा को भी 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है।
एक करोड़ का षडय़ंत्र
22 जुलाई, 2008 को तीन भाजपा सांसदों ने लोकसभा में विश्वास मत के दौरान नोटों की गड्डियां लहराई थीं। इन सांसदों का आरोप था कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के पक्ष में वोट देने के लिए उन्हें यह पैसा दिया गया है। आरोपपत्र में कहा गया है कि जांच के दौरान इस बात के पर्याप्त सबूत मिले हैं कि 22 जुलाई, 2008 की सुबह अमर सिंह ने अपने सचिव संजीव सक्सेना के साथ अवैध रूप से एक करोड़ रुपये देने का आपराधिक षडय़ंत्र रचा था।
फायदा उठाने वाले को क्लीनचिट
अमर सिंह को जेल हो जाने के बाद जहां कई विपक्षी नेता खुश हैं वहीं इस कांड से फायदा उठाने वाली मनमोहन सरकार को क्लीन चिट दिए जाने पर भी उन्होंने सवालिया निशान लगा दिया है। आपको याद दिला दें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री के खिलाफ याचिका दाखिल करने वाले संतोष कुमार सुमन पर एक लाख का जुर्माना ठोंका था। कोर्ट ने इस याचिका को बेवजह करार देते हुए नसीहत दी थी कि किसी के खिलाफ याचिका दाखिल करने से पहले उसे जांच-परख ली जाए। साथ ही कोर्ट ने इसे सस्ती लोकप्रियता का आधार भी बताया था।
याचिका में दलील
याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि चूंकि सांसदों को पैसे कथित रूप से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार को बचाने के लिए दिए गए थे और पैसे की पेशकश में प्रधानमंत्री की मिलीभगत जाहिर होती है इसलिए उनके खिलाफ मामला दायर होना चाहिए।
पैसों का रहस्य बरकरार
जनता बेहाल है लेकिन देश के नेता मालामाल हैं। गरीबों की झोलियां खाली हैं, पर संसद में नोटों की गड्डियां हवा में तैरती हैं। आज भी इस बात का पुख्ता खुलासा नहीं हो सका कि इतना पैसा सांसदों के पास आया कहां से। हालांकि इस मामले में पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से धन के स्रोत का पता लगाने को कहा था। समय गुजरता गया, दिल्ली पुलिस के दावे होते रहे, जांच भी जारी है लेकिन दिल्ली पुलिस के हाथ अभी तक कुछ नहीं आया।
जांच पर उठे थे सवाल
बता दें कि इस मामले में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह ने जांच के प्रति अविश्वास जाहिर कर याचिका भी दायर की थी। याचिकाकर्ता लिंगदोह के वकील ने मामले के निपटारे का विरोध किया। उन्होंने जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि पुलिस ने अभी तक यह पता नहीं लगाया कि इस कांड के वास्तविक लाभार्थी कौन थे। उन्होंने याचिका लंबित रखने की मांग की लेकिन पीठ ने इससे इंकार कर दिया। अदालत ने कहा कि आरोपपत्र दाखिल हो चुका है, आपकी याचिका का मुख्य उद्देश्य पूरा हो गया है अब आगे की कार्यवाही संबंधित सुनवाई अदालत में होगी। इतना कह कर कोर्ट ने मामले का निपटारा कर दिया।
पहली गिरफ्तारी (संजीव सक्सेना)
इस मामले में सबसे पहले संजीव सक्सेना को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। बता दें संजीव सक्सेना की समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमर सिंह का सबसे नजदीकी कलीग था। काफी समय बीतने बात जब कोई गिरफ्तारी न हो सकी तो सुप्रीम कोर्ट ने 15 जुलाई को दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई। जिसके बाद हरकत में आई दिल्ली पुलिस ने संजीव सक्सेना को गिरफ्तार किया था।
दूसरी गिरफ्तारी (सुहैल हिंदुस्तानी)
दूसरी गिरफ्तारी के रूप में दिल्ली पुलिस ने सुहैल हिंदुस्तारी को गिरफ्तार किया। बिचौलिए की भूमिका निभाने वाला सुहैल हिन्दुस्तानी ने खुद को भारतीय जनता युवा मोर्चा का पूर्व सदस्य बताया। गिरफ्तारी के बाद सुहैल हिदुस्तानी ने पूछताछ में क्राइम ब्रांच के सामने ढेरों खुलासे किए थे। सुहैल ने आरोप लगाया था इस मामले में अमर सिंह, रेवती रमन सिंह और अहमद पटेल ने अहम भूमिका निभाई थी। सुहैल के संपर्क में कांगे्रसी नेता = सुहैल का यह भी कहना था कि इस कांड में 12 से 15 कांग्रेसी नेता थे जो उस दौरान संपर्क में थे। उनमें से कुछ प्रधानमंत्री के करीबी भी थे।
कुलस्ते, भगोरा भी तिहाड़ में
''भाजपा के दो पूर्व सांसदों महावीर भगोरा व फग्गन सिंह कुलस्ते को मंगलवार को गिरफ्तार कर 19 सितंबर तक न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। इन सभी पर 2008 के वोट के लिए नोट मामले में कथित रूप से लिप्त होने का आरोप है। इन्हें तिहाड़ जेल नंबर 3 में पहुंचा दिया गया जहां झारखंड के नेता मधु कौडा बंद हैं। इनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आपराधिक साजिश) की धारा-120 (बी) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-12 के तहत कार्रवाई की गई है।
जांच की आंच - निष्पक्ष नहीं दिल्ली पुलिस
जांच एजेंसियां और पुलिस बिना अदालतों की फटकार के बिना अपना काम सही ढंग से नहीं होता। यह इसी बात से साबित हो जाता है कि तीन साल बीतने के बाद भी दिल्ली पुलिस निठल्ली बन तमाशा देखती रही। कारण जो भी रहा हो लेकिन साफ जाहिर होता है कि दिल्ली पुलिस निष्पक्षता से कोसों दूर है। शायद सांप की तरह कुंडली मारे बैठी दिल्ली पुलिस पर सत्ताधारी पार्टी या प्रभावशाली और पैसों वालों का प्रभाव चलता है। रही बात गुनाहगारों पर हाथ डालने की तो इस मामले में ऐसे लोग भी फंसते नजर आ रहे थे जो खुद चिल्ला-चिल्लाकर मामले को तूल देते हुए दिखे। यहां यह सवाल उठता है कि जो काम फटकार खाने के बाद, मात्र 24 से 72 घंटों मे कर दिया गया वह पिछले 3 सालों में क्यों नहीं किया गया था, इस अपराधपूर्ण लापरवाही के लिए कौन-कौन जिम्मेदार है। क्या दिल्ली पुलिस ने सबूतों को छिपाकर रखा था या फिर सिर्फ कोर्ट के डर से उसने गिरफ्तारियां कीं थी।
लापरवाही या साजिशन कार्रवाई
यह तो सभी जानते हैं कि उस वक्त सरकार खतरे में थी और भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी के करीबी माने जाने वाले सुधीन्द्र कुलकर्णी तक जांच की आंच पहुंच सकती थी, इसी के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल भी लपेटे में आ सकते थे, इसलिए दिल्ली पुलिस दबाव में थी और उसने मामले को ठंडे बस्ते मे डाले रखा था। अब इसे दिल्ली पुलिस की लापरवाही कहें या साजिसन कार्रवाई, पर एक बात साफ हो चुकी है कि दिल्ली पुलिस पर सत्ताधारी पार्टी का पूरा दबाव है।
भ्रष्ट दलदल में कांग्रेस
कांग्रेस भ्रष्टाचारी दलदल के कीचड़ में पूरी तरह सनी हुई है। वरना कांग्रेस ने जांच में दिलचस्पी क्यों नहीं दिखाई? कांग्रेस कितनी भ्रष्ट और तानाशाह है इसी बात से दिख जाता है जब भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन पर बैठे बाबा रामदेव और उनके समर्थकों पर हमला करवा दिया। और तो और कांग्रेसी नेता सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को भ्रष्ट कहने से भी बाज नहीं आए।
ऐसी चली थी पुलिस कार्रवाई
संसद में सरकार बचाने के लिए सांसदों को करोड़ों में खरीदने के सनसनीखेज कैश फॉर वोट प्रकरण में आश्चर्यजनक रूप से किसी नेता को शामिल नहीं पाया गया। जबकि इसमें अमर सिंह और अहमद पटेल के नाम आ रहे थे। दिल्ली पुलिस ने दावा किया था कि उसके पास देश के इस सबसे बड़े राजनीतिक घोटाले में जिम्मेदार ठहराने के लिए किसी भी नेता के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है। साथ में ही जांच में पुलिस को कोई सबूत नहीं मिला है कि सुहैल हिंदुस्तानी का किसी राजनेता ने संपर्क हुआ था। गत् 5 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने 'बेमन से जांच पर दिल्ली पुलिस को कस कर फटकार लगाई थी और उससे जांच को तार्किक परिणति तक ले जाने एवं तीन हफ्तों में अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था। न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति आरएम लोढा की खंडपीठ ने इस पर अफसोस जताया था कि 'सबसे घटिया किस्म के एक बिचौलिए को संसदीय कार्यवाही को पटरी से उतारने की इजाजत दी गई। खंडपीठ ने 2008 के इस घोटाले में किसी भी राजनीतिक नेता का हाथ नहीं होने का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस की प्राथमिक रिपोर्ट के अध्ययन के बाद कहा था, 'यह आपका (दिल्ली पुलिस) बेमन का प्रयास है।
चालीस दिन की मोहलत
अदालत की फटकार के बाद नींद से जागी दिल्ली पुलिस ने अदालत से 40 दिन की मोहलत मांगी। इस पर अदालत ने आग्रह ठुकराते हुए कहा था कि वह तीन हफ्तों के अंदर अपनी अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दे।
आखिरकार लंबे अर्से के बाद कार्रवाई हुई और पुलिस ने सुहैल हिंदुस्तानी और संजीव सक्सेना को गिरफ्तार किया। साथ ही सांसद अमर सिंह, अशोक अर्गल और रेवती रमण सिंह से पूछताछ कर अपनी रिपोर्ट एक मुहरबंद लिफाफे में दाखिल की। यही नहीं अमर सिंह और अशोक अर्गल समेत 5 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है।
अमर से पूछे गए थे 12 सवाल
गिरफ्तारी से पहले जांच के दौरान दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की टीम ने कैश फॉर वोट मामले में सांसद अमर सिंह से 12 सवाल किए थे। लेकिन बड़ी ही चालाकी से अमर से उनका जवाब दिया था।
1. अमर सिंह से फोन नंबर के संबंध में की गई पूछताछ?
2. किस बैंक से पैसे निकाले गए?
3. इन खातों में कहां से ये पैसे आए?
4. सक्सेना कौन है?
5. क्या जिस कार को पैसे ले जाने के लिए इस्तेमाल किया गया वो आपका है?
6. ड्राइवर संजय और उसका मोबाइल नंबर क्या है?
7. गुरुजी और मिस्टर गुप्ता का क्या रोल है?
8. उनके इस कांड में संलिप्तता कि आपको कैसे जानकारी है?
9. इन दोनों को आप कैसे जानते हैं?
10. कैश फॉर वोट कांड वाले दिन आप कहां थे?
11. क्या आप उन बीजेपी सांसदों से मिले हैं जिन्हें पैसे का ऑफर दिया गया था?
12. क्या आपने सक्सेना का उनसे परिचय कराया था?
मुलायम का राजनीतिक दांवपेच
जब 'नोट के बदले वोट मामले में अमर सिंह फंसे हुए थे उस वक्त शायद मुलायम सिंह को अपनी दोस्ती याद आई थी। तभी एक झटके में उन्होंने कह डाला था अमर सिंह बेकसूर हैं। दिल्ली पुलिस द्वारा अमर से इस मामले में पूछताछ करना अन्याय है और वह अमर सिंह की इस मामले में मदद करेंगे ताकि वे इस इस संकट से बाहर आ सकें। हालांकि अब उनकी गिरफ्तारी के बाद मुलायम का दिखना तो दूर, उनका कोई बयान भी नहीं आया। क्या अब भी मुलायम, अमर को निर्दोष मानते हैं।
आपकों बता दें जिस समय अमर सिंह पर पुलिस का शिकंजा कस रहा था उस वक्त मुलायम उनके हिमायती बनकर खड़े हुए थे। यह उनकी दरियादिली थी या राजनीतिक दांवपेंच। फिलहाल जानकारों का कहना था कि सपा सुप्रीमो चाहते थे कि अमर सिंह फिर उनकी पार्टी में आ जाएं। लिहाजा उन्होंने अमर का पक्ष लिया था।
सपा सुप्रीमो यह कहते नहीं थक रहे थे कि अमर सिंह के साथ जो कुछ भी किया जा रहा है वह अन्याय है और यह अमर सिंह और रेवती रमण को परेशान करने की साजिश है।
अमर के एहसान याद करे कांग्रेस
कांग्रेस शायद अमर सिंह के अहसानों को भूल चुकी थी, तभी तो मुलायम सिंह ने अमर के उन एहसानों की याद दिलाई थी जब उन्होंने वर्ष 2008 में विश्वास मत के दौरान कांग्रेस की मदद की थी।
सच जानता हूं मैं
मुलायम सिंह ने यह भी कहा था कि मुझे सच पता है ओर वह यह है कि अमर सिंह भाजपा सांसदों को घूस देने में शामिल नहीं हैं। हम लोगों ने कांग्रेस के पक्ष में वोट देकर कांग्रेस की सिर्फ मदद की थी। क्या हम लोग सरकार में शामिल हुए? क्या रेवती सिंह और अमर सिंह मंत्री बन गए? अगर पैसों का लेनदेन होता तो मुझे इस बारे में जरुर पता होता।
इनकी नजर में
बीजेपी प्रवक्ता राजीव प्रताव रूडी:अमर सिंह की गिरफ्तारी हो गई लेकिन उन लोगों का क्या जिन्हें इससे फायदा हुआ। इससे फायदा हुआ यूपीए सरकार को, मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की सरकार को। उनकी भूमिका की भी जांच की जानी चाहिए। 'अमर सिंह को जिस जगह होना चाहिए वो वहीं पहुंच गए हैं
सपा प्रवक्ता मोहन सिंह:
असली दोषी जेल से बाहर हैं। ये मामले की लीपापोती हो रही है। पुलिस उन लोगों का पता लगाए जिन्होंने अमर को इस काम के लिए तैयार किया। तीन करोड़ रुपये दिए गए थे लेकिन एक करोड़ ही सामने आए। बाकी के दो करोड़ रुपये कहां गए। जिसने जैसा किया है वो वैसा फल पाएगा। लेकिन ये कौन सा तरीका है कि सरकार चलाने वाले सारे लोग ईमानदार हैं और सरकार के बाहर के सभी लोग बेईमान।
सीपीआई नेता गुरुदास दासगुप्ता:
अमर सिंह अपनी सही जगह पहुंच गए हैं। कैश फोर वोट कांड का फायदा सरकार ने उठाया। प्रधानमंत्री को इस पर सफाई देनी चाहिए। अमर सिंह को आगे करने वाला कौन था। उनको भी जेल भेजना चाहिए।
आरोपी सांसद और बीजेपी नेता अशोक अर्गल:
दिल्ली पुलिस तीन साल से कहां थी? सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद ही ये कार्यवाही हुई। हम कोर्ट और कानून का सम्मान करते हैं। लेकिन कांग्रेस को क्यों छोड़ा जा रहा है? क्या सांसदों की खरीद-फरोख्त नहीं होती? कोई मुफ्त में दल बदलता है क्या? क्या जेएमएम के सांसद नहीं खरीदे गए? जिसने मामले का खुलासा किया उन्हें जेल भेजा जा रहा है और जिन्होंने फायदा उठाया उन्हें क्लीन चिट मिल गई।
सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम:
कैश फोर वोट कांड में अमर सिंह ने मुख्य भूमिका निभाई थी। उम्मीद है कि कानून के हाथ आखिरी दोषी तक पहुंचेंगे। उम्मीद है कि अमर सिंह सच्चाई बयान करेंगे। कोर्ट को इस केस की पूरी जांच पर नजर रखनी होगी वर्ना जांच में कुछ भी सामने नहीं आ पाएगा।
कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी:
कैश फोर वोट कांड की जांच कोर्ट की निगरानी में हो रही है। पुलिस जांच में जो तथ्य सामने आए उसी के आधार पर चार्जशीट दायर की गई है। कांग्रेस के पास कोर्ट की निगरानी में हो रही जांच पर टिप्पणी करने का कोई कारण नहीं है।
संसदीय कार्यमंत्री पवन बंसल:
पीएम हर मसले पर जवाब नहीं देंगे। कोई भी रिकॉर्ड उठाकर देख सकता है कि यूपीए को संसद में मतविभाजन के दौरान वोटों की जरूरत नहीं थी। उसके पास पहले से ही बहुमत था।
साभार
अरुण पटेल विद्रोही, बुधवार, 7 सितम्बर 2011
http://hadtal.blogspot.in/2011/09/blog-post_07.html
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