Wednesday, August 8, 2012

मुंबई में म्हाडा के भूखंडों का घोटाला

माननीयों की मनमानी: एक और ज़मीन घोटाला
महाराष्ट्र में घोटालों का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा. माननीयों के कारनामों की फेहरिस्त कितनी लंबी है, इसका अंदाज लगा पाना मुश्किल है. ऐसा लगता है कि घोटालों के मामले में राज्य सरकार किसी भी सूरत में केंद्र सरकार से पीछे नहीं रहना चाहती है. आदर्श सोसाइटी घोटाले के बाद फिर एक बड़ा ज़मीन घोटाला सामने आया है, महाराष्ट्र गृह निर्माण महामंडल की ज़मीन को कौड़ियों के दाम पर नेताओं को बांटने का. जब म्हाडा ने अपनी जमीनों की स्थिति पर अंतरिम जांच कराई तो इस बंदरबांट का खुलासा हुआ. इसमें भी नेताओं ने अपने सामाजिक एवं शैक्षणिक संगठनों के नाम पर आसानी से ज़मीन हथिया ली, पर उस ज़मीन का सामाजिक कार्यों की बजाय व्यवसायिक इस्तेमाल किया जा रहा है. 

महत्वपूर्ण बात यह है कि आवासीय निर्माण के लिए आरक्षित म्हाडा की ज़मीन को नेताओं में बांटे जाने का कार्य उन्हीं माननीयों के मुख्यमंत्रित्व काल में हुआ, जिनका नाम पहले से ही आदर्श सोसाइटी घोटाले में बार-बार आ रहा है. यहां बात हो रही है पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान में केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख एवं सुशील शिंदे की. इन दोनों की जब राज्य में सरकार थी, तब आवासीय निर्माण के लिए म्हाडा की आरक्षित ज़मीनों को मुक्त हाथों से नेताओं की संस्थाओं को बांट दिया गया, जिनमें से कुछ ज़मीन तो अब निजी कंपनियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही है.

म्हाडा की ज़मीन सस्ते में देकर किया उपकृत
जिन नेताओं को म्हाडा की ज़मीन सस्ती दर पर देकर उपकृत किया गया, उनमें कांग्रेस विधायक मधुकर चव्हाण, कांग्रेस सांसद प्रिया दत्त, पूर्व श्रम मंत्री एवं राकांपा नेता नवाब मलिक, ग्राम्य विकास मंत्री एवं राकांपा नेता जयंत पाटिल और सपा नेता अबू आजमी आदि शामिल हैं. कांग्रेस के सुभाष चव्हाण, अजीत सावंत एवं समाजवादी पार्टी के नेता अबु आजमी की भागीदारी में जुहू में ज़मीन आवंटित की गई. प्रिया दत्त के नरगिस ट्रस्ट को अस्पताल के लिए ओशिवरा इलाके में 10 हज़ार वर्ग मीटर ज़मीन का आवंटन किया गया. 2007 के दिसंबर माह में रियायती दर पर इस ज़मीन की कीमत 21 करोड़ रुपये थी, पर ट्रस्ट के अनुनय-विनय पर कीमत घटाकर मात्र 11 करोड़ रुपये कर दी गई.

67 भूखंडों का मनमाना वितरण
मुंबई में आज लोगों को रहने के लिए घर नहीं मिल रहा है. आम लोगों को सस्ते में आवास उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने महाराष्ट्र गृह निर्माण महामंडल का गठन किया था, लेकिन महामंडल इस उद्देश्य को पूरा करने में नाकाम रहा है. आज म्हाडा द्वारा निर्मित घरों की कीमतें आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गई हैं. म्हाडा का कारोबार भी एक कॉरपोरेट कंपनी की तरह हो गया है. म्हाडा के 67 भूखंडों का मनमाने तरीके से वितरण किया गया, जिन्हें आम लोगों के लिए आवास निर्माण हेतु आरक्षित किया गया था. इन सभी भूखंडों की कीमत तो करोड़ों में है, पर इनका वितरण कौड़ियों के भाव किया गया.

म्हाडा की अंतरिम रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 20 हेक्टेयर ज़मीन 1999 से 2003 के मध्य नेताओं और उनकी संस्थाओं को सरकार की उप समिति के मार्फत बांट दी गई. मजेदार बात यह है कि यह सारा काम उन नेताओं की सरकार के कार्यकाल में किया गया, जिनका नाम बार-बार जमीन घोटालों में आता रहा है यानी विलासराव देशमुख और सुशील शिंदे की सरकार के दौरान म्हाडा की आरक्षित ज़मीन का बंटवारा सारे नियम-कायदों को ताख पर रखकर किया गया. इससे यह बात एक बार फिर साफ हो जाती है कि हमारे सत्ताधीश अपनी बिरादरी के लोगों को उपकृत करने में किसी कानून को आड़े नहीं आने देते हैं, फिर मामला चाहे आदर्श सोसाइटी का हो या लवासा लेक सिटी का. हां, आम आदमी द्वारा मेहनत से कमाई गई पूंजी से एक आशियाना बनाने में सारे नियम-कायदे आड़े आने लगते हैं, लेकिन नेता तो सरकार ही बन जाते हैं और शासन-प्रशासन उनके हाथों की कठपुतली बन जाता है.

सत्ताधीशों नेताओं की ज़मीनों की बंदरबांट
यह राज्य की जनता का दुर्भाग्य नहीं तो क्या है कि एक ओर ज़मीन के अभाव में म्हाडा घरों का निर्माण नहीं कर पा रहा है. लोगों को रहने के लिए एक छोटा सा मकान नहीं मिल पा रहा है. जो मकान म्हाडा द्वारा बनाए जाते हैं, उनकी कीमत भी इतनी अधिक हो गई है कि सामान्य आदमी उन्हें ले नहीं पा रहा है. वहीं हमारे सत्ताधीश और नेता ज़मीनों की बंदरबांट बड़े आराम से कर रहे हैं.

कौन कौन हैं हमाम में नंगे
जिन नेताओं को म्हाडा की ज़मीन सस्ती दर पर देकर उपकृत किया गया, उनमें कांग्रेस विधायक मधुकर चव्हाण, कांग्रेस सांसद प्रिया दत्त, पूर्व श्रम मंत्री एवं राकांपा नेता नवाब मलिक, ग्राम्य विकास मंत्री एवं राकांपा नेता जयंत पाटिल और सपा नेता अबू आजमी आदि शामिल हैं. 

  • कांग्रेस के सुभाष चव्हाण, अजीत सावंत एवं समाजवादी पार्टी के नेता अबु आजमी की भागीदारी में जुहू में ज़मीन आवंटित की गई.
  • प्रिया दत्त के नरगिस ट्रस्ट को अस्पताल के लिए ओशिवरा इलाके में 10 हज़ार वर्ग मीटर ज़मीन का आवंटन किया गया. 2007 के दिसंबर माह में रियायती दर पर इस ज़मीन की कीमत 21 करोड़ रुपये थी, पर ट्रस्ट के अनुनय-विनय पर कीमत घटाकर मात्र 11 करोड़ रुपये कर दी गई.
  • नवाब मलिक की बेगम और बहन की सदस्यता वाले रहबर फाउंडेशन को सस्ती दर पर म्हाडा की ज़मीन का आवंटन किया गया.
  • मधुकर चव्हाण के रायगढ़ मिलिट्री स्कूल को भी सस्ती दर पर ज़मीन दी गई.
  • जयंत पाटिल के कोरेगांवएजूकेशन सोसाइटी को सारे नियम-कायदों को ताख पर रखकर म्हाडा के भूखंड काआवंटन किया गया. मजे की बात यह है कि सरकार की उप समिति में नवाब मलिक औरजयंत पाटिल सदस्य थे तो चव्हाण महाराष्ट्र गृह निर्माण महामंडल के अध्यक्षथे. मतलब यह है कि आपस में साठगांठ करके इन नेताओं ने म्हाडा की ज़मीनों काबंटवारा कर लिया. यह जनता की आंखों में धूल झोंकना नहीं तो और क्या है?

मध्यप्रदेश मित्र चेरिटेबल ट्रस्ट को 6.32 हजार वर्ग मीटर भूखंड
एक अन्य मामले में मध्य प्रदेश मित्र चेरिटेबल ट्रस्ट को भी 6 हजार 32 वर्ग मीटर का भूखंड रियायती दर पर 40 लाख रुपये में गोरेगांव इलाके में दिए जाने का उल्लेख रिपोर्ट में किया गया है. मित्र चेरिटेबल ट्रस्ट को उक्त ज़मीन स्कूल और खेल के मैदान के लिए दी गई थी. मित्र चेरिटेबल ट्रस्ट ने उक्त ज़मीन को दो भागों में विभाजित करके एक भाग एक निजी कंपनी को किराए पर व्यवसायिक इस्तेमाल के लिए दे दिया है. मित्र चेरिटेबल ट्रस्ट ऐसा करके सालाना ढाई करोड़ रुपये का मुनाफा कमा रहा है. इस संदर्भ में मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की जा चुकी है, जो कि विचाराधीन है. सरकार की ज़मीन आवंटन नीति के नियमों के मुताबिक, रियल स्टेट डेवलपर को किसी भी सरकारी ज़मीन का आवंटन नहीं किया जा सकता है. इसके बावजूद म्हाडा की एक हज़ार वर्ग मीटर ज़मीन का आवंटन ब्ल्यू स्टार रियल्यटर्स को अंधेरी इलाके में किया गया. इसके साथ ही दिनशा टैपनैक्श बिल्डर को भी वर्सोवा में एक हज़ार वर्ग मीटर ज़मीन दी गई. इसी तरह सबसे अधिक 4 हेक्टेयर ज़मीन वर्सोवा में थ्री एम जिमखाना प्राइवेट लिमिटेड को मैग्रोव क्षेत्र से सटी हुई दी गई.

52 भूखंडों का आवंटन विलासराव ने किया
यह मामला उजागर होने के बाद पता चलता है कि राज्य सरकार ज़मीनों के बंटवारे के मामले में कितनी उदार है. उससे जिसकी निभ गई, उसे ज़मीन देने में वह कोई भी नियम-कानून आड़े नहीं आने देती है, फिर चाहे वह कोई हो, नेता हो, सामाजिक संस्था हो या बिल्डर हो या कोई और. सबको समान रूप से उपकृत करने की रीति-नीति सरकार ने ज़मीन देने के मामले में अपना रखी है, स़िर्फ शर्त यह है कि उसकी सरकार से निकटता हो. इसीलिए म्हाडा के 52 भूखंडों का आवंटन विलासराव देशमुख के मुख्यमंत्रित्व काल में किया गया. जब उनसे इस संदर्भ में पूछा गया तो उनका कहना था कि उन्हें कुछ याद नहीं है, यह मामला काफी पुराना है. वह म्हाडा के अध्यक्ष से कहेंगे कि रिपोर्ट की एक प्रति उन्हें भेजी जाए. यहां याद दिला दें कि विलासराव देशमुख ने तब भी यही कहा था, जब फिल्म निर्माता सुभाष घई के संस्थान को ज़मीन आवंटन करने का मामला सामने आया था. उस समय भी वह शुरुआत में यही कहकर बात को टालते रहे कि मामला बहुत पुराना है, उन्हें कुछ याद नहीं है, मगर बाद में उच्चतम न्यायालय ने भी नियम-कायदों को ताख पर रखकर सुभाष घई के संस्थान को ज़मीन आवंटित किए जाने के मामले में विलासराव देशमुख को पद का दुरुपयोग करने का दोषी करार दिया था. सुशील शिंदे तो अपनी मधुर मुस्कान बिखेर कर, बाजू बचाकर निकलने में ही अपनी भलाई समझते हैं, जबकि उनके मुख्यमंत्री रहते हुए म्हाडा के 15 भूखंडों का आवंटन किया गया, मगर वह अभी कुछ भी कहने के लिए तैयार नहीं हैं.

यह राज्य की जनता का दुर्भाग्य नहीं तो क्या है कि एक ओर ज़मीन के अभाव में म्हाडा घरों का निर्माण नहीं कर पा रहा है. लोगों को रहने के लिए एक छोटा सा मकान नहीं मिल पा रहा है. जो मकान म्हाडा द्वारा बनाए जाते हैं, उनकी कीमत भी इतनी अधिक हो गई है कि सामान्य आदमी उन्हें ले नहीं पा रहा है. वहीं हमारे सत्ताधीश और नेता ज़मीनों की बंदरबांट बड़े आराम से कर रहे हैं. नेताओं के संगठनों-संस्थाओं को बड़ी उदारता के साथ ज़मीनों का आवंटन किया जा रहा है. वहीं आम मुंबईकर अपने घर का सपना आंखों में पाले हुए वृद्धावस्था को प्राप्त हो जाता है, पर उसका वह सपना साकार नहीं हो पाता है. वह पूरी जिंदगी झोपड़पट्टी या फुटपाथ पर रहकर गुजारने के लिए मज़बूर रहता है.

इस रिपोर्ट के जरिए हुए खुलासे पर म्हाडा के अधिकारियों का कहना है कि जिन ज़मीनों पर नेताओं, उनकी संस्थाओं एवं अन्य लोगों का कब्जा है, उनकी अब ज़रूरत महसूस हो रही है. चूंकि म्हाडा निर्मित फ्लैटों की मांग बढ़ी है, इसके साथ ही ज़मीन की कमी को देखते हुए अब लगता है कि म्हाडा के मकानों के लिए निकाली गई लॉटरी की यह आखिरी खेप होगी. इसलिए नागरिकों की मांग को देखते हुए उक्त ज़मीन म्हाडा को वापस की जानी चाहिए. मगर क्या नेताओं के कब्जे से ज़मीन छुड़ाना आसान काम है?

नेता, बिल्डर या किसी प्रभावी संस्था का जिस सरकारी ज़मीन पर कब्जा हो जाता है, उसे वे आसानी से नहीं छोड़ते हैं. इसके लिए वे नीचे से ऊपर तक सारे राजनीतिक-कानूनी दांवपेंच लगा देते हैं. लिहाजा अदालती प्रक्रिया में सालों लग जाते हैं. फिर यह मामला तो सरकार के तहत किया गया है. वह भी इसमें अपना स्वार्थ देखेगी. इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार की उदासीनता और असहयोग के चलते, कानूनी लड़ाई लड़े जाने के बावजूद उक्त ज़मीन कई सालों तक म्हाडा को वापस नहीं मिलने वाली है और तब तक हजारों नागरिकों को अपना घर होने का सपना पूरा करने के लिए इंतजार करना पड़ेगा.

साभार
प्रवीण महाजन, चौथी दुनिया, June 14th, 2012
http://www.chauthiduniya.com/2012/06/misters-arbitrary-another-land-scam.html

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