“मेरा लक्ष्य है कि मैं 30, 40 गरीब बच्चों को साथ लाऊं और उनके साथ जिंदगी बिताऊं.” यह योजना उरुग्वे के राष्ट्रपति खोसे मुखिका की है. बेहद सरल व्यक्तित्व वाले राष्ट्रपति अब राजनीति को अलविदा कहने की तैयारी कर रहे हैं.
78 साल के खोसे मुखिका उरुग्वे के राष्ट्रपति हैं. कई मायनों में उनका देश दक्षिण अमेरिका के बेहतरीन देशों में है. शिक्षा, समाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिहाज से उरुग्वे अच्छा देश माना जाता है. राष्ट्रपति के पास भी दुनिया भर के कई नेताओं की तरह शानौ शौकत से रहने की संभावनाएं हैं. लेकिन इसके उलट मुखिका के व्यक्तित्व में सादगी का सौंदर्य है.
आपदा के बाद वो जब पीड़ितों से मिलने उनके घर जाते हैं तो जूते बाहर उतार देते हैं. अक्सर जूते उतारने के बाद लोग अपने राष्ट्रपति के फटे मोजे देखकर हैरान हो जाते हैं. घर के भीतर पहुंचकर मुखिका जमीन पर बिछे कालीन पर बैठ जाते हैं. रोते हुए पीड़ितों को गले लगा लेते हैं. इनके अलावा भी बहुत से ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से उन्हें दुनिया के सबसे विनम्र नेताओं में शुमार किया जाता है.
राजधानी मोटेंवीडियो के बाहर उनका छोटा सा मकान है. चारों ओर थोड़ा सा खेत है. मुखिका और उनकी पत्नी उस पर खेती करती हैं. घर का खर्च इसी से चलता है. राष्ट्रपति अपनी 90 फीसदी तनख्वाह सामाजिक कामों के लिए दान कर देते हैं. इसी घर में मुखिका का एक छोटा सा कमरा है, जिसमें वो अपना काम काज करते हैं. दफ्तर जाने के लिए उनके पास 1987 की पुरानी कार है.
2010 में राष्ट्रपति बनने वाले मुखिका इसी गाड़ी से रोज राष्ट्रपति कार्यालय जाते हैं, लेकिन अगले साल यह दौड़ भाग बंद होने जा रही है. 2014 के अंत में खोसे मुखिका राष्ट्रपति के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा कर लेंगे. कभी वामपंथी गुरिल्ला रहे मुखिका इसके बाद राजनीति को अलविदा कह देंगे और सामाजिक कार्यों में लग जाएंगे.
अपनी भावी योजनाओं के बारे में वह कहते हैं, “30 40 बच्चों की जिंदगी संवारना” उनका लक्ष्य है. मुखिका के अपने बच्चे नहीं हैं. ऐसे में उरुग्वे में उन्हें प्यार से ‘पेपे मुखिका’ कहा जाता है. राष्ट्रपति चाहते हैं कि वो अपनी पेंशन से इन बच्चों के लालन पालन और शिक्षा का खर्च उठाएं.
मुखिका को दुनिया का सबसे गरीब राष्ट्र प्रमुख कहा जाता है. क्यूबा की वामपंथी क्रांति से प्रेरित मुखिका 1970 के दशक में सशस्त्र संघर्ष का भी हिस्सा बने. छह बार उन्हें गोली भी मारी गई. मुखिका के 14 साल जेल में भी कटे. लेकिन इसके बावजूद पेपे मुखिका ने वापसी की. वह राजनीति में आए, 2009 में चुनाव जीते और अगले ही साल देश के राष्ट्रपति बने.
सौजन्य
Dec. 17 दुनियां, राजनीति
Written by: admin on December 17, 2013.
(सौजन्य: समाचार एजेंसी एएफपी)
Read more: http://mediadarbar.com/24645/big-story-of-a-poor-president/#ixzz2niEXn8yg
78 साल के खोसे मुखिका उरुग्वे के राष्ट्रपति हैं. कई मायनों में उनका देश दक्षिण अमेरिका के बेहतरीन देशों में है. शिक्षा, समाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिहाज से उरुग्वे अच्छा देश माना जाता है. राष्ट्रपति के पास भी दुनिया भर के कई नेताओं की तरह शानौ शौकत से रहने की संभावनाएं हैं. लेकिन इसके उलट मुखिका के व्यक्तित्व में सादगी का सौंदर्य है.
आपदा के बाद वो जब पीड़ितों से मिलने उनके घर जाते हैं तो जूते बाहर उतार देते हैं. अक्सर जूते उतारने के बाद लोग अपने राष्ट्रपति के फटे मोजे देखकर हैरान हो जाते हैं. घर के भीतर पहुंचकर मुखिका जमीन पर बिछे कालीन पर बैठ जाते हैं. रोते हुए पीड़ितों को गले लगा लेते हैं. इनके अलावा भी बहुत से ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से उन्हें दुनिया के सबसे विनम्र नेताओं में शुमार किया जाता है.
राजधानी मोटेंवीडियो के बाहर उनका छोटा सा मकान है. चारों ओर थोड़ा सा खेत है. मुखिका और उनकी पत्नी उस पर खेती करती हैं. घर का खर्च इसी से चलता है. राष्ट्रपति अपनी 90 फीसदी तनख्वाह सामाजिक कामों के लिए दान कर देते हैं. इसी घर में मुखिका का एक छोटा सा कमरा है, जिसमें वो अपना काम काज करते हैं. दफ्तर जाने के लिए उनके पास 1987 की पुरानी कार है.
2010 में राष्ट्रपति बनने वाले मुखिका इसी गाड़ी से रोज राष्ट्रपति कार्यालय जाते हैं, लेकिन अगले साल यह दौड़ भाग बंद होने जा रही है. 2014 के अंत में खोसे मुखिका राष्ट्रपति के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा कर लेंगे. कभी वामपंथी गुरिल्ला रहे मुखिका इसके बाद राजनीति को अलविदा कह देंगे और सामाजिक कार्यों में लग जाएंगे.
अपनी भावी योजनाओं के बारे में वह कहते हैं, “30 40 बच्चों की जिंदगी संवारना” उनका लक्ष्य है. मुखिका के अपने बच्चे नहीं हैं. ऐसे में उरुग्वे में उन्हें प्यार से ‘पेपे मुखिका’ कहा जाता है. राष्ट्रपति चाहते हैं कि वो अपनी पेंशन से इन बच्चों के लालन पालन और शिक्षा का खर्च उठाएं.
मुखिका को दुनिया का सबसे गरीब राष्ट्र प्रमुख कहा जाता है. क्यूबा की वामपंथी क्रांति से प्रेरित मुखिका 1970 के दशक में सशस्त्र संघर्ष का भी हिस्सा बने. छह बार उन्हें गोली भी मारी गई. मुखिका के 14 साल जेल में भी कटे. लेकिन इसके बावजूद पेपे मुखिका ने वापसी की. वह राजनीति में आए, 2009 में चुनाव जीते और अगले ही साल देश के राष्ट्रपति बने.
सौजन्य
Dec. 17 दुनियां, राजनीति
Written by: admin on December 17, 2013.
(सौजन्य: समाचार एजेंसी एएफपी)
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