आम आदमी को लोन मिलने में खासी दिक्कतें लेकिन कॉर्पोरेट जगत रहा है लूट
मुंबई: आम आदमी को कई औपचारिकताएं पूरी करने के बाद भी मामूली रकम का लोन
मुश्किल से ही मिलता है और कुछ हजार रुपये का लोन न चुका पाने के कारण मजदूर और
किसान आत्महत्या कर लेते हैं, लेकिन कॉर्पोरेट सेक्टर देश में 7.25 लाख करोड़ रुपये
का लोन चुका नहीं रहा और उसमें से एक बड़ा हिस्सा न चुकाकर हजम कर गया है। सरकार
यह जांच तक नहीं कर रही कि इसके लिए कौन दोषी है।
महाराष्ट्र स्टेट बैंक एंप्लॉयीज फेडरेशन (MSBEF) के महासचिव विश्वास
उत्गी के अनुसार, इतने सारे लोन का न चुकाने का कारण बैंक के टॉप ऑफिसर्स, कॉर्पोरेट सेक्टर
और पॉलिटिशंस का इस गोरखधंधे में शामिल होना है। उन्होंने इस कार्टेल की जांच
कराने और दोषियों को सजा देने की मांग की है। इसके लिए देशभर में गुरुवार को 'ऑल इंडिया डे'
मनाने
की घोषणा की गई है।
फेडरेशन का कहना है कि सरकार को नए बैंक लाइसेंस जारी नहीं करने चाहिए,
क्योंकि
इनमें से अधिकांश के आवेदन इन्हीं डिफाल्टरों ने किए हैं। फेडरेशन ने इस मामले में
उन 5000 बॉरोअर्स की जानकारी छापी है, जिन्होंने 1 करोड़ रुपये से
ऊपर का लोन नहीं चुकाया है।
NPA अब बढ़कर 2 लाख करोड़ रुपए
मुंबई प्रेस क्लब में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में विश्वास उत्गी ने बताया कि
बैंकों द्वारा अनेक उपाय करने के बावजूद डूबते कर्जों (NPA) का साइज बढ़ा है। 2008 में NPA केवल 39,000 करोड़ रुपये था,
जो
अब बढ़कर 2 लाख करोड़ रुपये हो गया है। उनका कहना था कि लोन या डेट रिस्ट्रक्चरिंग
भी एक तरह से एनपीए ही है।
उसे भी जोड़कर यह रकम 5.25 लाख करोड़ रुपये हो जाती है। रिस्ट्रक्चरिंग
में बॉरोअर को ब्याज की अदायगी से पूरी छूट या रियायत, लोन चुकाने की
मोहलत में छूट दी जाती है और कई बार कर्ज की मूल रकम को ही कम कर दिया जाता है। यह
हाल केवल सरकारी बैंकों का है।
विदेशी बैंक, सहकारी और प्राइवेट बैंक भी करतूत में पीछे नहीं है। इसमें उनका हिस्सा
करीब 2.50 लाख करोड़ रुपये का है। इस तरह कुल 7.25,000 करोड़ रुपये एनपीए
है।
क्या हो उपाय?
फेडरेशन का कहना है कि सरकार को नए बैंक लाइसेंस जारी नहीं करने चाहिए।
क्योंकि, इनमें से अधिकांश के आवेदन इन्हीं डिफॉल्टरों ने किए हैं। फेडरेशन ने इस
मामले में उन 5000 बॉरोअर्स की जानकारी छापी है, जिन्होंने 1 करोड़ रुपए से ऊपर
का लोन नहीं चुकाया है।
क्या हो रही हैं कोशिशें?
बैड लोंस की रिकवरी के लिए मिलकर कोशिशें की जा रही हैं। रेग्युलेटर,
पॉलिसी
मेकर्स, बैंक और बॉरोअर्स को एक साथ काम करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। लोन
प्रपोजलों की सख्ती से जांच की जा रही है, ताकि उनकी वसूली हो सके। उनका इवैल्युएशन
एक्सपर्ट्स करते हैं। सभी स्तर पर अकाउंटेबिलिटी तय की जा रही है।
-के.सी.
चक्रवर्ती, डेप्युटी गवर्नर, भारतीय रिजर्व बैंक
बैंक बढ़ते हुए एनपीए से काफी चिंतित हैं। इसकी वसूली के लिए वे भरसक
प्रयास कर रहे हैं। लेकिन हर बैंक के लिए एनपीए की समस्या अलग-अलग है और इसके लिए
उपाय भी अलग हैं। डिफॉल्टरों के फोटो पब्लिश कराने का कदम काफी कारगर हो रहा है।
हालांकि बॉरोअर्स ने इसका काफी विरोध किया।
-के.आर. कामथ, सीएमडी, पंजाब नैशनल बैंक
साभार
नवभारत टाइम्स | Dec 5, 2013, 10.12AM IST
नंदकिशोर भारतीय
http://navbharattimes.indiatimes.com/business/share-market/share-news/corporate-sector-is-not-paying-7-25-lakh-crore-loan-to-banks-npa-increased/articleshow/26887246.cms
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