छत्तीसगढ़ की ऊर्जा नगरी कोरबा में चारों ओर काले सोने का असीमित भंडार भरा
हुआ है जिसके चलते काला सोने यानि कोयले पर कोल व्यापारियों और कोल
माफियाओं की भी नज़र गड़ी ही रहती है। कोरबा जिले में भारत सरकार ने कोयले
पर भारतीय हक के दावेदारी के चलते ही एसईसीएल का निर्माण किया ताकि भारतीय
अर्थव्यवस्था को कोयले के द्वारा क्रय विक्रय से राजस्व की प्राप्ति होती
रहे। भारतीय सरकार को यह अंदेशा भी नहीं रहा होगा कि एसईसीएल के
उच्चाधिकारी देश के राजस्व में ही चपत लगाने लगेंगे और प्रतिदिन कई करोड़
का नुकसान पहुंचाने लगेंगे।
बताते चलें कि एसईसीएल कोरबा जिले में कोयला खान की बड़ी यूनिट है। हजारों लाखों लोगों की रोजी रोटी चलने का माध्यम भी। शासकीय उच्चाधिकारियों ने ही एक प्राइवेट कंपनी से हाथ मिला कर भारतीय सरकार को जबरदस्त तरीके से लूटना शुरू कर दिया है। यह लूट खसोट दस-बारह वर्षों से भी अधिक समय से लगातार और प्रतिदिन चल रही है। उच्चाधिकारियों की मिलीभगत से ही आज तक कोई, इस कंपनी की ओर आंख उठा कर भी नहीं देख पाया है।
कई बार जांच हुई जिसमें यह सत्य उजागर हुआ मगर राज्य सरकार और जांच एजेंसियां दोनों ही बौने साबित हो गए एसईसीएल के भ्रष्ट उच्चाधिकारियों और इन प्राइवेट कंपनियों के सामने। इसलिए राज्य सरकार से उम्मीद करना बेकार ही है। प्राइवेट कंपनियों पर एसईसीएल के उच्चाधिकारी की अधिक मेहरबानियां है। वैसे भी एसईसीएल जब खुद लुटने को तैयार बैठी है तो इसमें प्राइवेट कंपनी वाले की क्या गलती। क्योंकि प्राइवेट कंपनी को मौका दिया गया होगा तब ही तो उसने चौका मारा होगा।
एक हिसाब से देखा जाए तो असली गुनहगार तो एसईसीएल के बिकाऊ उच्चाधिकारी हैं। गौर करने वाली बात ये है कि अगर भारतीय सरकार अपने पर आ जाए तो एसईसीएल के उच्चाधिकारियों को और प्राइवेट कंपनियों को 24 घंटे में लाइन पर ला सकती है, मगर अफसोस यही है कि सभी ढिंढोरा पीटते हैं भ्रष्टाचार को समाप्त करने का मगर कोई भ्रष्टाचार से मुक्त होना नहीं चाहता है। ऊपर से लेकर नीचे तक सब भ्रष्टाचार की एक माला के ही मोती है और सभी एक ही धागे में गुधे हुए हैं भले सबकी बनावट व रंग अलग अलग है।
वर्ष 2003 में कांग्रेस पार्टी से तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी द्वारा एक आर्यन के द्वारा हिन्डालको को बेचे गए 4 लाख टन कोयले की जांच सीबीआई द्वारा कराने का आग्रह किया गया था। इसके लिए बकायदा पत्र लिखकर उन्होंने अपनी बात रखी थी, मगर जल्द ही कांग्रेस की उनकी सरकार चली गई। इस पर आज भी भूतपूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी अपनी बात रखते हैं और कार्यवाही न करने का पूरा जिम्मेदार रमन सरकार को बताते हैं।
कोरबा जिले में एसईसीएल और आर्यन के साथ मिलकर कोयले का ऐसा रोचक खेल खेला जाता है जो कि यकीनन कौतूहल का विषय है। वैसे काले सोने के खेल में करोड़ों रुपयों के वारे न्यारे होतें हैं, दरअसल इस खेल की पोलपट्टी तब खुली जब खनिज विभाग के अधिकारियों ने राजधानी रायपुर में चार ट्रकें पकड़ी थी। पकड़े जाने पर ट्रक चालकों ने खनिज विभाग के अधिकारी को बताया था कि इन ट्रकों में रिजेक्ट कोयला है मगर जब जांच की गई तब पता चला कि कोयला अच्छी गुणवत्ता वाला स्टीम कोयला है। खनिज विभाग के अधिकारियों ने ट्रकों को जब्त कर दिया था परंतु राजनीतिक दबाव के चलते मामले को रफा दफा कर दिया गया था।
इन सभी कंपनियों को जान लेते हैं -
साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) का परिचय :
साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड देश की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी है। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के कोयला भंडार दो राज्यों में फैले हुए हैं, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश। कोयला प्लांट के अलावा छत्तीसगढ़ राज्य में मध्य प्रदेश राज्य में कंपनी के 35 माइंस और 54 खानों के साथ कुल 89 खानों में कोयले का काम कर रही है। कोल इंडिया लिमिटेड से पट्टे के आधार पर पश्चिम बंगाल में दनकुनी कोयला परिसर (डीसीसी)। प्रभावी प्रशासनिक नियंत्रण और संचालन के लिए खानों को तीन कोलफील्ड्स में वर्गीकृत किया गया है।
13 ऑपरेटिंग क्षेत्रों के साथ
मध्य भारत कोलफील्ड्स (सीआईसी),
कोरबा कोलफील्ड्स और
मंड-रायगढ़ कोलफील्ड्स।
ए - मध्य भारत कोलफील्ड्स
चिरमिरी क्षेत्र
बैकुण्ठपुर क्षेत्र
बिश्रामपुर क्षेत्र
हसदेव एरिया
भटगांव क्षेत्र
जमुना और कोटमा क्षेत्र
सोहागपुर क्षेत्र
जोहिल्ला जोहिल्ला क्षेत्र
बी - कोरबा कोलफील्ड्स
कोरबा क्षेत्र
कुसमुण्डा क्षेत्र
दीपिका क्षेत्र
गेवरा क्षेत्र
सी - मंड-रायगढ़ कोलफील्ड्स
रायगढ़
जलकर कोयला संयंत्र परिसर
धनकुनी कोयला संयत्र, पश्चिम बंगाल।
आर्यन कोल बेनिफिकेशन (एसीबी) परिचय :
मेसर्स आर्यन के सन् 1998-99 में 12 एकड़ में वाशरी स्थापित करने हेतु दी गई थी। यह भूमि सीएमपीडीआई के अप्रूव्ड प्लान उपरोक्त भूमि ओवर बर्डन के लिए आरक्षित थी, इसके अलावा एसईसीएल की प्रगति नगर कालोनी इस वाशरी से सिर्फ 100 मीटर दूरी पर स्थित थी, जिसमें 700 परिवार रहते हैं। अतएव उपरोक्त कारणों से यह भूमि उपयुर्क्त नहीं थी किन्तु गेवरा-दीपिका खदान के बीच में स्थित होने से कोयले की हेराफेरी की दृष्टि से अत्यधिक उपयुर्क्त थी। अतएव सभी नियमों को ताक पर रखकर भूमि आवंटित कर दी गई।
एसटीसीएलआई से परिचय :
सर्वेस कोल इंडिया लिमिटेड (एसटीसीएलआई) कोल वाशरी का संचालन हैदराबाद के डॉक्टर मोहन राव द्वारा किया जाता है जो कि अप्रवासी भारतीय बताए जाते हैं।
रिजेक्ट कोयले की घटना पर नज़र डालते हैं :
दरअसल खनिज विभाग को सूचना प्राप्त हुई थी कि कोल वाशरी से 25 ट्रक कोयला लदाकर निकले हैं जिनमें रिजेक्ट कोयले के नाम पर उच्च गुणवत्ता वाला स्टीमकोयला लादा गया है। जिससे जिला खनिज अधिकारी महिपाल सिंह कंवर के नेतृत्व में सुबह तड़के पाली मुख्य मार्ग पर खनिज जांच नाके पर ट्रकों को रोका गया था, जिसमें 4 ट्रकें संदिग्ध पाई गई थी। ट्रक क्रमांक सीजी 10 ए 6211 (चालक फूलचंद), सीजी 10 ए 6212 (चालक महेश पाल), सीजी 10 ए 5551 (चालक दशरथ सिंह) और सीजी 10 ए 5559 (चालक शिवदास) पकड़ी गई थी। ट्रकों के चालकों ने बताया था कि रतिजा स्थित एसईसीएल कोल वाशरी से कोयला लादा गया था। सभी ट्रक दीपिका के निकट झाबर से संचालित वर्धमान रोड लाइसं की थी। सभी ट्रक मुनगाडीह स्थित खनिज विभाग के जांच नाके ले गए तथा सुरक्षा में खड़ा किया। चारों ट्रक चालकों का बयान भी लिया।
जांच के लिए रोके गए चारों ट्रकों और उसमें लदे कोयले की जब्ती के लिए पंचनामा तक बनाया गया था और चारों ट्रकों से सेम्पल लेकर बिलासपुर स्थित अधिकारिक प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा गया था, जिसकी पुष्टि खनिज अधिकारी ने की थी। जिन दोनों कोल वाशरियों से कोयले का परिवहन किया गया था उनको कारण बताओ नोटिस जारी कर जवाबतलब किया और जांच रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई करने की योजना थी।
विभाग ने जब्त किए कोयले का मूल्य अनुमानित 59 हज़ार से अधिक बताया था। प्रत्येक ट्रक में 25-25 टन कोयला लदा हुआ पाया गया था। इसमें यह भी ज्ञात हुआ था कि कोयला, एसईसीएल की कतिपय दीपिका खदानों से रिजेक्ट श्रेणी के नाम पर लिया गया था, इसलिए एसईसीएल की भूमिका इसमें संदिग्ध मानी गई थी।
ट्रक चालकों ने कहा था कि कुछ ट्रक बिलासपुर के परसदा में पहुंचाना था तथा कुछ ट्रकें महावीर कोल ट्रेडर्स, धरसींवा, रायपुर में पहुंचाना था। तथा नाके पर खनिज विभाग के पहुंचने से पहले ही 21 ट्रकें निकल चुकी थी और इसीलिए मात्र 4 ट्रकें ही पकड़ में आई थी। यह पहला मौका था जब कोल वाशरी से रिजेक्ट कोयले की आड़ में होने वाली अफरा तफरी पर खनिज विभाग ने कार्रवाई की थी जबकि ऐसी शिकायतें खनिज विभाग के पास बराबर मिलती थी और आज भी मिल रही है मगर कार्यवाही एक बार के बाद दोबारा कभी भी नहीं की गई।
काबिलेगौर है कि एसटीसीएलआई कोल वाशरी से रवाना हुई ट्रकों में 3 ट्रकों के चालक के पास मिले कागजातों में खनिज विभाग द्वारा कोल वाशरी को रिजेक्ट कोल के परिवहन हेतु जारी किए गए ट्रांजिट पास क्रमांक 426/54, 426/62, 426/72 व सभी 8 फरवरी 2007 और एसीबी कोल वाशरी से निकली ट्रक के चालक से मिले थे।
-नियमों के अनुसार शिकायत सही पाई जाती तो इस राशि के अलावा दंड भी अधिभारित किया जाता। मगर राजनीतिक दबाव व भ्रष्टाचार के चलते सेटिंग करके मामले को रफादफा कर दिया गया था। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि रिजेक्ट कोल के नाम पर खदानों से निकला कोयला रूपये 80/- प्रतिटन बेचा जाता है और वहीं धुला अथवा नंबर-1 के कोयले की कीमत 4 हजार रुपये प्रतिटन से भी अधिक है।
-रिजेक्ट कोयले के खेल में एमओयू का खुला उल्लंघन किया गया था। क्योंकि जानकारी के मुताबिक, एसीबी वाशरी के संचालन हेतु एसईसीएल तथा वाशरी प्रबंधन के मध्य जो एमओयू साइन हुआ था, उसकी शर्तों में यह साफतौर पर लिखा हुआ है कि "वाशरी वाश कोल तथा रिजेक्ट कोल को उसी पार्टी को आपूर्ति करेगी। वाशरी न तो वाश कोल और न ही रिजेक्ट कोल को किसी अन्य पार्टी को बेच सकती है। इस तरह से यह जो प्रकरण सामने आया, वह साफतौर पर यह बताता है कि एमओयू का वाशरी प्रबंधन द्वारा खुला उल्लंघन किया गया था। मगर इस उल्लंघन पर एसीबी और एसटीसीएलआई वाशरी के प्रबंधन ने इस पर कभी कुछ भी नहीं बोलते हैं।
एक नज़र महिपाल सिंह कंवर, जिला खनिज अधिकारी, कोरबा के बयान पर डालते हैं जिनमें उन्होंने बताया था कि वाशरी से भेजे जा रहे कोयले में रिजेक्ट कोयले की आड़ में अफरा तफरी की शिकायत मिली थी, जिस पर कार्रवाई की गई थी। जांच में प्रथम दृष्टया शिकायत तथ्यपूर्ण प्रतीत हुई थी। जांच हेतु सेम्पल की रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। वर्तमान में खान एवं खनिज अधिनियम की धारा 21 के तहत अवैध परिवहन का प्रकरण दर्ज किया गया था। कोयले से भरे ट्रक जब्त किए गए थे। एसीबी तथा एसटीबीएसईएस कोल वाशरी को शो काज नोटिस भी जारी किया गया था। मगर कार्यवाही इसके आगे नहीं बढ़ पाई। क्यों नहीं बढ़ पाई? इसका जवाब वो नहीं दे पाए। पर आप इतने समझदार तो होंगे ही कि जवाब खुद समझ जायेंगे।
साभार -
रायपुर
कोरबा 24 अक्टूबर 2015 (जावेद अख्तर).
http://www.khulasatv.com/2015/10/26_25.html#
बताते चलें कि एसईसीएल कोरबा जिले में कोयला खान की बड़ी यूनिट है। हजारों लाखों लोगों की रोजी रोटी चलने का माध्यम भी। शासकीय उच्चाधिकारियों ने ही एक प्राइवेट कंपनी से हाथ मिला कर भारतीय सरकार को जबरदस्त तरीके से लूटना शुरू कर दिया है। यह लूट खसोट दस-बारह वर्षों से भी अधिक समय से लगातार और प्रतिदिन चल रही है। उच्चाधिकारियों की मिलीभगत से ही आज तक कोई, इस कंपनी की ओर आंख उठा कर भी नहीं देख पाया है।
कई बार जांच हुई जिसमें यह सत्य उजागर हुआ मगर राज्य सरकार और जांच एजेंसियां दोनों ही बौने साबित हो गए एसईसीएल के भ्रष्ट उच्चाधिकारियों और इन प्राइवेट कंपनियों के सामने। इसलिए राज्य सरकार से उम्मीद करना बेकार ही है। प्राइवेट कंपनियों पर एसईसीएल के उच्चाधिकारी की अधिक मेहरबानियां है। वैसे भी एसईसीएल जब खुद लुटने को तैयार बैठी है तो इसमें प्राइवेट कंपनी वाले की क्या गलती। क्योंकि प्राइवेट कंपनी को मौका दिया गया होगा तब ही तो उसने चौका मारा होगा।
एक हिसाब से देखा जाए तो असली गुनहगार तो एसईसीएल के बिकाऊ उच्चाधिकारी हैं। गौर करने वाली बात ये है कि अगर भारतीय सरकार अपने पर आ जाए तो एसईसीएल के उच्चाधिकारियों को और प्राइवेट कंपनियों को 24 घंटे में लाइन पर ला सकती है, मगर अफसोस यही है कि सभी ढिंढोरा पीटते हैं भ्रष्टाचार को समाप्त करने का मगर कोई भ्रष्टाचार से मुक्त होना नहीं चाहता है। ऊपर से लेकर नीचे तक सब भ्रष्टाचार की एक माला के ही मोती है और सभी एक ही धागे में गुधे हुए हैं भले सबकी बनावट व रंग अलग अलग है।
वर्ष 2003 में कांग्रेस पार्टी से तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी द्वारा एक आर्यन के द्वारा हिन्डालको को बेचे गए 4 लाख टन कोयले की जांच सीबीआई द्वारा कराने का आग्रह किया गया था। इसके लिए बकायदा पत्र लिखकर उन्होंने अपनी बात रखी थी, मगर जल्द ही कांग्रेस की उनकी सरकार चली गई। इस पर आज भी भूतपूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी अपनी बात रखते हैं और कार्यवाही न करने का पूरा जिम्मेदार रमन सरकार को बताते हैं।
कोरबा जिले में एसईसीएल और आर्यन के साथ मिलकर कोयले का ऐसा रोचक खेल खेला जाता है जो कि यकीनन कौतूहल का विषय है। वैसे काले सोने के खेल में करोड़ों रुपयों के वारे न्यारे होतें हैं, दरअसल इस खेल की पोलपट्टी तब खुली जब खनिज विभाग के अधिकारियों ने राजधानी रायपुर में चार ट्रकें पकड़ी थी। पकड़े जाने पर ट्रक चालकों ने खनिज विभाग के अधिकारी को बताया था कि इन ट्रकों में रिजेक्ट कोयला है मगर जब जांच की गई तब पता चला कि कोयला अच्छी गुणवत्ता वाला स्टीम कोयला है। खनिज विभाग के अधिकारियों ने ट्रकों को जब्त कर दिया था परंतु राजनीतिक दबाव के चलते मामले को रफा दफा कर दिया गया था।
इन सभी कंपनियों को जान लेते हैं -
साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) का परिचय :
साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड देश की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी है। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के कोयला भंडार दो राज्यों में फैले हुए हैं, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश। कोयला प्लांट के अलावा छत्तीसगढ़ राज्य में मध्य प्रदेश राज्य में कंपनी के 35 माइंस और 54 खानों के साथ कुल 89 खानों में कोयले का काम कर रही है। कोल इंडिया लिमिटेड से पट्टे के आधार पर पश्चिम बंगाल में दनकुनी कोयला परिसर (डीसीसी)। प्रभावी प्रशासनिक नियंत्रण और संचालन के लिए खानों को तीन कोलफील्ड्स में वर्गीकृत किया गया है।
13 ऑपरेटिंग क्षेत्रों के साथ
मध्य भारत कोलफील्ड्स (सीआईसी),
कोरबा कोलफील्ड्स और
मंड-रायगढ़ कोलफील्ड्स।
ए - मध्य भारत कोलफील्ड्स
चिरमिरी क्षेत्र
बैकुण्ठपुर क्षेत्र
बिश्रामपुर क्षेत्र
हसदेव एरिया
भटगांव क्षेत्र
जमुना और कोटमा क्षेत्र
सोहागपुर क्षेत्र
जोहिल्ला जोहिल्ला क्षेत्र
बी - कोरबा कोलफील्ड्स
कोरबा क्षेत्र
कुसमुण्डा क्षेत्र
दीपिका क्षेत्र
गेवरा क्षेत्र
सी - मंड-रायगढ़ कोलफील्ड्स
रायगढ़
जलकर कोयला संयंत्र परिसर
धनकुनी कोयला संयत्र, पश्चिम बंगाल।
आर्यन कोल बेनिफिकेशन (एसीबी) परिचय :
मेसर्स आर्यन के सन् 1998-99 में 12 एकड़ में वाशरी स्थापित करने हेतु दी गई थी। यह भूमि सीएमपीडीआई के अप्रूव्ड प्लान उपरोक्त भूमि ओवर बर्डन के लिए आरक्षित थी, इसके अलावा एसईसीएल की प्रगति नगर कालोनी इस वाशरी से सिर्फ 100 मीटर दूरी पर स्थित थी, जिसमें 700 परिवार रहते हैं। अतएव उपरोक्त कारणों से यह भूमि उपयुर्क्त नहीं थी किन्तु गेवरा-दीपिका खदान के बीच में स्थित होने से कोयले की हेराफेरी की दृष्टि से अत्यधिक उपयुर्क्त थी। अतएव सभी नियमों को ताक पर रखकर भूमि आवंटित कर दी गई।
एसटीसीएलआई से परिचय :
सर्वेस कोल इंडिया लिमिटेड (एसटीसीएलआई) कोल वाशरी का संचालन हैदराबाद के डॉक्टर मोहन राव द्वारा किया जाता है जो कि अप्रवासी भारतीय बताए जाते हैं।
रिजेक्ट कोयले की घटना पर नज़र डालते हैं :
दरअसल खनिज विभाग को सूचना प्राप्त हुई थी कि कोल वाशरी से 25 ट्रक कोयला लदाकर निकले हैं जिनमें रिजेक्ट कोयले के नाम पर उच्च गुणवत्ता वाला स्टीमकोयला लादा गया है। जिससे जिला खनिज अधिकारी महिपाल सिंह कंवर के नेतृत्व में सुबह तड़के पाली मुख्य मार्ग पर खनिज जांच नाके पर ट्रकों को रोका गया था, जिसमें 4 ट्रकें संदिग्ध पाई गई थी। ट्रक क्रमांक सीजी 10 ए 6211 (चालक फूलचंद), सीजी 10 ए 6212 (चालक महेश पाल), सीजी 10 ए 5551 (चालक दशरथ सिंह) और सीजी 10 ए 5559 (चालक शिवदास) पकड़ी गई थी। ट्रकों के चालकों ने बताया था कि रतिजा स्थित एसईसीएल कोल वाशरी से कोयला लादा गया था। सभी ट्रक दीपिका के निकट झाबर से संचालित वर्धमान रोड लाइसं की थी। सभी ट्रक मुनगाडीह स्थित खनिज विभाग के जांच नाके ले गए तथा सुरक्षा में खड़ा किया। चारों ट्रक चालकों का बयान भी लिया।
जांच के लिए रोके गए चारों ट्रकों और उसमें लदे कोयले की जब्ती के लिए पंचनामा तक बनाया गया था और चारों ट्रकों से सेम्पल लेकर बिलासपुर स्थित अधिकारिक प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा गया था, जिसकी पुष्टि खनिज अधिकारी ने की थी। जिन दोनों कोल वाशरियों से कोयले का परिवहन किया गया था उनको कारण बताओ नोटिस जारी कर जवाबतलब किया और जांच रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई करने की योजना थी।
विभाग ने जब्त किए कोयले का मूल्य अनुमानित 59 हज़ार से अधिक बताया था। प्रत्येक ट्रक में 25-25 टन कोयला लदा हुआ पाया गया था। इसमें यह भी ज्ञात हुआ था कि कोयला, एसईसीएल की कतिपय दीपिका खदानों से रिजेक्ट श्रेणी के नाम पर लिया गया था, इसलिए एसईसीएल की भूमिका इसमें संदिग्ध मानी गई थी।
ट्रक चालकों ने कहा था कि कुछ ट्रक बिलासपुर के परसदा में पहुंचाना था तथा कुछ ट्रकें महावीर कोल ट्रेडर्स, धरसींवा, रायपुर में पहुंचाना था। तथा नाके पर खनिज विभाग के पहुंचने से पहले ही 21 ट्रकें निकल चुकी थी और इसीलिए मात्र 4 ट्रकें ही पकड़ में आई थी। यह पहला मौका था जब कोल वाशरी से रिजेक्ट कोयले की आड़ में होने वाली अफरा तफरी पर खनिज विभाग ने कार्रवाई की थी जबकि ऐसी शिकायतें खनिज विभाग के पास बराबर मिलती थी और आज भी मिल रही है मगर कार्यवाही एक बार के बाद दोबारा कभी भी नहीं की गई।
काबिलेगौर है कि एसटीसीएलआई कोल वाशरी से रवाना हुई ट्रकों में 3 ट्रकों के चालक के पास मिले कागजातों में खनिज विभाग द्वारा कोल वाशरी को रिजेक्ट कोल के परिवहन हेतु जारी किए गए ट्रांजिट पास क्रमांक 426/54, 426/62, 426/72 व सभी 8 फरवरी 2007 और एसीबी कोल वाशरी से निकली ट्रक के चालक से मिले थे।
-नियमों के अनुसार शिकायत सही पाई जाती तो इस राशि के अलावा दंड भी अधिभारित किया जाता। मगर राजनीतिक दबाव व भ्रष्टाचार के चलते सेटिंग करके मामले को रफादफा कर दिया गया था। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि रिजेक्ट कोल के नाम पर खदानों से निकला कोयला रूपये 80/- प्रतिटन बेचा जाता है और वहीं धुला अथवा नंबर-1 के कोयले की कीमत 4 हजार रुपये प्रतिटन से भी अधिक है।
-रिजेक्ट कोयले के खेल में एमओयू का खुला उल्लंघन किया गया था। क्योंकि जानकारी के मुताबिक, एसीबी वाशरी के संचालन हेतु एसईसीएल तथा वाशरी प्रबंधन के मध्य जो एमओयू साइन हुआ था, उसकी शर्तों में यह साफतौर पर लिखा हुआ है कि "वाशरी वाश कोल तथा रिजेक्ट कोल को उसी पार्टी को आपूर्ति करेगी। वाशरी न तो वाश कोल और न ही रिजेक्ट कोल को किसी अन्य पार्टी को बेच सकती है। इस तरह से यह जो प्रकरण सामने आया, वह साफतौर पर यह बताता है कि एमओयू का वाशरी प्रबंधन द्वारा खुला उल्लंघन किया गया था। मगर इस उल्लंघन पर एसीबी और एसटीसीएलआई वाशरी के प्रबंधन ने इस पर कभी कुछ भी नहीं बोलते हैं।
एक नज़र महिपाल सिंह कंवर, जिला खनिज अधिकारी, कोरबा के बयान पर डालते हैं जिनमें उन्होंने बताया था कि वाशरी से भेजे जा रहे कोयले में रिजेक्ट कोयले की आड़ में अफरा तफरी की शिकायत मिली थी, जिस पर कार्रवाई की गई थी। जांच में प्रथम दृष्टया शिकायत तथ्यपूर्ण प्रतीत हुई थी। जांच हेतु सेम्पल की रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। वर्तमान में खान एवं खनिज अधिनियम की धारा 21 के तहत अवैध परिवहन का प्रकरण दर्ज किया गया था। कोयले से भरे ट्रक जब्त किए गए थे। एसीबी तथा एसटीबीएसईएस कोल वाशरी को शो काज नोटिस भी जारी किया गया था। मगर कार्यवाही इसके आगे नहीं बढ़ पाई। क्यों नहीं बढ़ पाई? इसका जवाब वो नहीं दे पाए। पर आप इतने समझदार तो होंगे ही कि जवाब खुद समझ जायेंगे।
साभार -
रायपुर
कोरबा 24 अक्टूबर 2015 (जावेद अख्तर).
http://www.khulasatv.com/2015/10/26_25.html#
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