शारदा समूह द्वारा किये गये 20000 करोड़ रुपये के घोटाले में धोखाधड़ी के लिए सिर्फ वित्तीय नियामकों को दोषी नहीं माना जा सकता। वर्तमान समय में देश में अनेकानेक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ काम कर रही हैं, जिनमें से अधिकांश चिट-फंड का धंधा करती हैं और हालिया समय में उनपर निगरानी रखने में हमारी वित्तीय नियामक संस्थाएँ पूरी तरह असफल रही हैं।
जाहिरा तौर पर इस तरह की ठगी, सरकार की क्षमता एवं काबिलियत पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती हैं। इस सिक्के का दूसरा पहलू भी पूरी तरह से पाक-साफ नहीं है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो इस खेल में निवेशक भी उतने ही दोषी हैं, जितने कंपनियों के प्रर्वत्तक या मालिक। यह खेल सदियों से चल रहा है।आगे भी चलता रहेगा, क्योंकि हमारे देश में लालच का कोई इलाज नहीं है। वैसे इस बाबत लालच के साथ-साथ अषिक्षा, गरीबी, अंधविश्वास , भ्रष्टाचार आदि को भी महत्वपूर्ण कारण माना जा सकता है।
पड़ताल से जाहिर है शिक्षित एवं समझदार लोग कम ही इस तरह की कंपनियों के झांसे में आते हैं। अमूमन छोटे-मोटे स्तर पर कारोबार करने वाले या रिक्षा-ठेला चलाने वाले या फिर असंगठित क्षेत्र में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले जैसे लोग चिट-फंड चलाने वाली इस तरह की कंपनियों के एजेंटों के बहकावे में आकर या अधिक ब्याज के लालच में या फिर पैसों के दुगना होने के लालच में अपनी जिंदगी भर की कमाई एक झटके में लुटा देते हैं।
इस ठगी के खेल में परोक्ष रुप में बहुत सारे ऐसे लोग भी शामिल रहते हैं, जिन पर कभी कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। ऐसे लोगों को लगता है कि उनका इस तरह की धोखाधड़ी से कोई सरोकार नहीं है।
इसके बरक्स बता दें कि चिट-फंड का करोबार करने वाली तकरीबन सभी कंपनियाँ आम आदमी को बेवकूफ बनाने के लिए विज्ञापन का सहारा लेती हैं। विज्ञापन का प्रकाशन-प्रसारण प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के द्वारा होता है। इसमें श्रव्य माध्यम अर्थात रेडियो भी शामिल है।
नई जमाने की मीडिया यानि इंटरनेट भी इस मामले में अपनी महत्ती भूमिका निभा रहा है। यहाँ इस सवाल का उठना लाजिमी है कि क्या हम जान-बूझकर केवल अपने व्यवसायिक लाभ के लिए ठगी के कारोबार को बढ़ावा दे रहे हैं?
शारदा समूह के मामले में कंपनी के पर्वत्तकों ने बड़ी चालाकी से पूरी तैयारी के साथ आम लोगों को चूना लगाने का काम किया है। इनका ठगी का काला कारोबार विगत दो दशकों से पश्चिम बंगाल के साथ-साथ देश के कुछ दूसरे राज्यों में बेधड़क चल रहा था।
बीते तीन सालों से शारदा समूह का नाम सुर्खियों में था। इन वर्षों में इस समूह का कमोबेश पूरे देश बहुत तेजी से विस्तार हुआ। इतना ही नहीं सत्ता के गलियारों में भी इनकी धमक सुनाई देने लगी।
कंपनी के प्रमुख प्रर्वत्तकों यथा देबजानी मुखोपाध्याय, अरविंद सिंह, श्री सुदीप्तो सेन आदि में से शारदा समूह के चेयरमैन सुदीप्तो सेन अपने को महान धर्मगुरु राम कृष्ण परमहंस की पत्नी शारदा मणि मुखोपाध्याय का पुत्र बताते हैं। श्री सेन ने उनके नाम पर ही अपनी सभी कंपनियों का आरंभिक नाम शारदा और समूह का नाम शारदा समूह रखा। श्री सेन अच्छी तरह से जानते थे कि अनपढ़, गरीब एवं धर्मभीरु लोग माँ शारदा के नाम की वजह से स्वभाविक रुप से उनकी कंपनी में अपना पैसा निवेश करेंगे। शारदा नाम के साथ विष्वासघात करने से वे अपने इरादे में बहुत हद तक कामयाब भी रहे।
कालांतर में जैसे ही षारदा समूह के पास पूँजी इकट्ठाहुई,श्री सेन एवं उनके सहयोगी बांग्ला एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों को फाइनेंस करने लगे, जिससे उनकी पैठ फिल्मी कलाकारों के बीच हो गई। अखबार एवं टेलीविजन चैनलों पर वे फिल्मी कलाकारों के साथ आने लगे। फिल्म के प्रमोशन के लिए समूह के प्रर्वत्तक फिल्मी कलाकारों के साथ राज्य के हर कस्बा एवं तहसील का दौरा करते थे। इस वजह से शारदा समूह के ब्रांड वैल्यू में जबर्दस्त इजाफा हुआ। विदित हो कि आम लोगों के बीच फिल्मीकलाकारों की गतिविधियों का असर उनके जीवन में बहुत ही व्यापक होता है। वे अक्सर दैनिक क्रियाकलापों में उनकी नकल करते हैं।
अपने इस बिजनेस को आगे बढ़ाने एवं उसपर सच्चाई तथा विष्वास का मुल्लमा चढ़ाने के लिए शारदा समूह के प्रर्वत्तकों ने नेताओं, पत्रकारों, वकीलों, जजों एवं प्रशासन के नुमाइंदों से अपनी नजदीकियाँ बढ़ाई।
श्री सेन द्वारा सीबीआई को सौंपी गई 18 पन्नों के पत्र के मुताबिक तृणमूल के दो सांसद,असम सरकार के एक मंत्री, नरसिंहराव सरकार में मंत्री रहे मतंग सिंह, उनकी पत्नी मनोरंजना सिंह, चिदंबरम साहब की पत्नी नलिनी चिंदबरम आदि का संबंध किसी न किसी रुप में शारदा समूह के साथ रहा है।इस ठगी कांड में जिस तरह से रोज नया षगूफा छोड़ा जा रहा है, उससे लगता है कि यह आग इतनी जल्दी बुझने वाला नहीं है। मामले में नलिनी चिदंबरम का नाम उछलने से कहानी में सियासी रंग चढ़ने लगा है।
कहा जा रहा है कि सिर्फ पष्चिम बंगाल के 19 जिलों में इस समूह के एक लाख से ज्यादा एजेंट 368 शाखाओं के माध्यम से लोगों को मूर्ख बनाने के काम को बखूबी अंजाम दे रहे थे।
शारदा समूह का विस्तार केवल पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं है, वरन् इसके एजेंट उड़ीसा, झारखंड, असम, कर्नाटक, राजस्थान, तामिलनाडु आदि राज्यों में भी सक्रिय थे। इन राज्यों में 165 वैसी कंपनियाँ, जिसका नाम शारदा से शुरु होता है, कार्य कर कर रही थीं। गौरतलब है कि ये कंपनियाँ भी चिट-फंड का ही काम कर रही थीं।इनके एजेंट साइबर संसार के जरिये भी लोगों को अपने जाल में फंसाते थे।
इसमें दो मत नहीं है कि पहले की तरह इस मामले में भी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) अपना काम करने में असफल रहा है।
शारदा समूह में व्याप्त अनियमितता एवं उसके द्वारा की गई ठगी के परिप्रेक्ष्य में भारतीय रिजर्व बैंक, प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग आदि एजेंसियों को भी क्लीन चिट नहीं दिया जा सकता है। पुनश्च इस आलोक में यह भी सच है कि इस तरह की धोखाधड़ी के मामलों में अभी भी हमारे देश में स्पष्ट कानून का अभाव है, जिसके कारण अक्सर दोषी सजा पाने से बच जाते हैं।
पश्चिम बंगाल की सरकार ने शारदा चिट-फंड घोटाले की जाँच एसआईटी से करवाने का फैसला लिया है। वैसे जाँच के निहितार्थ से सभी अवगत हैं। पूरा एपिसोड चाहे जितना नकारात्मक हो, इस संबंध में एक सकारात्मक बात यह है कि इस ठगी ने लोगों के बीच जनजागरण करने का काम किया है। सरकार भी इस तरह की कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने के प्रति थोड़ी गंभीर हुई है। सरकारी एजेंसी गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय (एसएफआईओ) ने चिट-फंड की 57 कंपनियों के विरुद्ध जाँच करने का फैसला किया है।
देखा गया है कि विगत सालों में चिट-फंड कंपनियों ने आर्थिक, शैक्षिक एवं सामाजिक रुप से पिछड़े पूर्वोत्तर राज्यों को अपना निशाना बनाया है। इसलिए पूर्वोत्तर राज्यों के प्रमुखों ने चिट-फंड कंपनियों पर शिकंजा कसने के लिए केन्द्र सरकार एवं वित्तीय नियामक एजेंसियों से इस बाबत सख्त कदम उठाने का अनुरोध किया है।
बिहार के उप मुख्यमंत्री सुषील कुमार मोदी ने भी हाल ही में सेबी के प्रमुख यू.के.सिन्हा से मिलकर बिहार में फर्जी तरीके से कार्य करने वाले गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का अनुरोध किया है। इसी क्रम में पश्चिम बंगाल की सरकार ने विशेष सत्र बुलाकर निवेशकों की रक्षा के लिए ‘पश्चिम बंगाल वित्तीय संस्था में जमाकर्त्ता का हित संरक्षण विधेयक, 2013’ पास करवाने का फैसला लिया है।
मौजूदा समय में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के नाम पर चिट-फंड का धंधा करने वाली कंपनियों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है, जिसमें से अधिकांष कंपनियाँ पंजीकृत नहीं हैं। पंजीकरण के अभाव में इस तरह की कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने में पुलिस एवं कानून को अक्सर मुश्किल का सामना करना पड़ता है।
इस संबंध में ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि अधिकांश चिट-फंड कंपनियों का ठगी का तरीका शारदा समूह की तर्ज पर है, जिसपर लगाम लगाना विविध वित्तीय नियामक संस्थानों एवं सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।
जानकारों के अनुसार इस तरह की कंपनियों पर तभी नकेल कसा जा सकता है, जब हमारे देष में आर्थिक अपराध को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा जाये। इस संदर्भ में सबसे अहम पहलू यह है कि इस तरह से ठगी के षिकार लोगों का आमतौर पर पैसा वापस नहीं मिलता है।
कानून में व्याप्त कमियों/खामियों की वजह से हमारे देष में धोखाधड़ी करने वाले लोग आसानी से कानून के शिकंजे से बाहर निकल जाते हैं, जबकि ठगी का शिकार हुए कुछ लोग आर्थिक तंगी की वजह से आत्महत्या तक करने पर मजबूर हो जाते हैं। बावजूद इसके असल दोषियों के खिलाफ कभी भी हत्या का मुकदमा नहीं चलाया जाता।
साभार
सतीश सिंह
http://teznews.com/home/news/13881
जाहिरा तौर पर इस तरह की ठगी, सरकार की क्षमता एवं काबिलियत पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती हैं। इस सिक्के का दूसरा पहलू भी पूरी तरह से पाक-साफ नहीं है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो इस खेल में निवेशक भी उतने ही दोषी हैं, जितने कंपनियों के प्रर्वत्तक या मालिक। यह खेल सदियों से चल रहा है।आगे भी चलता रहेगा, क्योंकि हमारे देश में लालच का कोई इलाज नहीं है। वैसे इस बाबत लालच के साथ-साथ अषिक्षा, गरीबी, अंधविश्वास , भ्रष्टाचार आदि को भी महत्वपूर्ण कारण माना जा सकता है।
पड़ताल से जाहिर है शिक्षित एवं समझदार लोग कम ही इस तरह की कंपनियों के झांसे में आते हैं। अमूमन छोटे-मोटे स्तर पर कारोबार करने वाले या रिक्षा-ठेला चलाने वाले या फिर असंगठित क्षेत्र में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले जैसे लोग चिट-फंड चलाने वाली इस तरह की कंपनियों के एजेंटों के बहकावे में आकर या अधिक ब्याज के लालच में या फिर पैसों के दुगना होने के लालच में अपनी जिंदगी भर की कमाई एक झटके में लुटा देते हैं।
इस ठगी के खेल में परोक्ष रुप में बहुत सारे ऐसे लोग भी शामिल रहते हैं, जिन पर कभी कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। ऐसे लोगों को लगता है कि उनका इस तरह की धोखाधड़ी से कोई सरोकार नहीं है।
इसके बरक्स बता दें कि चिट-फंड का करोबार करने वाली तकरीबन सभी कंपनियाँ आम आदमी को बेवकूफ बनाने के लिए विज्ञापन का सहारा लेती हैं। विज्ञापन का प्रकाशन-प्रसारण प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के द्वारा होता है। इसमें श्रव्य माध्यम अर्थात रेडियो भी शामिल है।
नई जमाने की मीडिया यानि इंटरनेट भी इस मामले में अपनी महत्ती भूमिका निभा रहा है। यहाँ इस सवाल का उठना लाजिमी है कि क्या हम जान-बूझकर केवल अपने व्यवसायिक लाभ के लिए ठगी के कारोबार को बढ़ावा दे रहे हैं?
शारदा समूह के मामले में कंपनी के पर्वत्तकों ने बड़ी चालाकी से पूरी तैयारी के साथ आम लोगों को चूना लगाने का काम किया है। इनका ठगी का काला कारोबार विगत दो दशकों से पश्चिम बंगाल के साथ-साथ देश के कुछ दूसरे राज्यों में बेधड़क चल रहा था।
बीते तीन सालों से शारदा समूह का नाम सुर्खियों में था। इन वर्षों में इस समूह का कमोबेश पूरे देश बहुत तेजी से विस्तार हुआ। इतना ही नहीं सत्ता के गलियारों में भी इनकी धमक सुनाई देने लगी।
कंपनी के प्रमुख प्रर्वत्तकों यथा देबजानी मुखोपाध्याय, अरविंद सिंह, श्री सुदीप्तो सेन आदि में से शारदा समूह के चेयरमैन सुदीप्तो सेन अपने को महान धर्मगुरु राम कृष्ण परमहंस की पत्नी शारदा मणि मुखोपाध्याय का पुत्र बताते हैं। श्री सेन ने उनके नाम पर ही अपनी सभी कंपनियों का आरंभिक नाम शारदा और समूह का नाम शारदा समूह रखा। श्री सेन अच्छी तरह से जानते थे कि अनपढ़, गरीब एवं धर्मभीरु लोग माँ शारदा के नाम की वजह से स्वभाविक रुप से उनकी कंपनी में अपना पैसा निवेश करेंगे। शारदा नाम के साथ विष्वासघात करने से वे अपने इरादे में बहुत हद तक कामयाब भी रहे।
कालांतर में जैसे ही षारदा समूह के पास पूँजी इकट्ठाहुई,श्री सेन एवं उनके सहयोगी बांग्ला एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों को फाइनेंस करने लगे, जिससे उनकी पैठ फिल्मी कलाकारों के बीच हो गई। अखबार एवं टेलीविजन चैनलों पर वे फिल्मी कलाकारों के साथ आने लगे। फिल्म के प्रमोशन के लिए समूह के प्रर्वत्तक फिल्मी कलाकारों के साथ राज्य के हर कस्बा एवं तहसील का दौरा करते थे। इस वजह से शारदा समूह के ब्रांड वैल्यू में जबर्दस्त इजाफा हुआ। विदित हो कि आम लोगों के बीच फिल्मीकलाकारों की गतिविधियों का असर उनके जीवन में बहुत ही व्यापक होता है। वे अक्सर दैनिक क्रियाकलापों में उनकी नकल करते हैं।
अपने इस बिजनेस को आगे बढ़ाने एवं उसपर सच्चाई तथा विष्वास का मुल्लमा चढ़ाने के लिए शारदा समूह के प्रर्वत्तकों ने नेताओं, पत्रकारों, वकीलों, जजों एवं प्रशासन के नुमाइंदों से अपनी नजदीकियाँ बढ़ाई।
श्री सेन द्वारा सीबीआई को सौंपी गई 18 पन्नों के पत्र के मुताबिक तृणमूल के दो सांसद,असम सरकार के एक मंत्री, नरसिंहराव सरकार में मंत्री रहे मतंग सिंह, उनकी पत्नी मनोरंजना सिंह, चिदंबरम साहब की पत्नी नलिनी चिंदबरम आदि का संबंध किसी न किसी रुप में शारदा समूह के साथ रहा है।इस ठगी कांड में जिस तरह से रोज नया षगूफा छोड़ा जा रहा है, उससे लगता है कि यह आग इतनी जल्दी बुझने वाला नहीं है। मामले में नलिनी चिदंबरम का नाम उछलने से कहानी में सियासी रंग चढ़ने लगा है।
कहा जा रहा है कि सिर्फ पष्चिम बंगाल के 19 जिलों में इस समूह के एक लाख से ज्यादा एजेंट 368 शाखाओं के माध्यम से लोगों को मूर्ख बनाने के काम को बखूबी अंजाम दे रहे थे।
शारदा समूह का विस्तार केवल पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं है, वरन् इसके एजेंट उड़ीसा, झारखंड, असम, कर्नाटक, राजस्थान, तामिलनाडु आदि राज्यों में भी सक्रिय थे। इन राज्यों में 165 वैसी कंपनियाँ, जिसका नाम शारदा से शुरु होता है, कार्य कर कर रही थीं। गौरतलब है कि ये कंपनियाँ भी चिट-फंड का ही काम कर रही थीं।इनके एजेंट साइबर संसार के जरिये भी लोगों को अपने जाल में फंसाते थे।
इसमें दो मत नहीं है कि पहले की तरह इस मामले में भी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) अपना काम करने में असफल रहा है।
शारदा समूह में व्याप्त अनियमितता एवं उसके द्वारा की गई ठगी के परिप्रेक्ष्य में भारतीय रिजर्व बैंक, प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग आदि एजेंसियों को भी क्लीन चिट नहीं दिया जा सकता है। पुनश्च इस आलोक में यह भी सच है कि इस तरह की धोखाधड़ी के मामलों में अभी भी हमारे देश में स्पष्ट कानून का अभाव है, जिसके कारण अक्सर दोषी सजा पाने से बच जाते हैं।
पश्चिम बंगाल की सरकार ने शारदा चिट-फंड घोटाले की जाँच एसआईटी से करवाने का फैसला लिया है। वैसे जाँच के निहितार्थ से सभी अवगत हैं। पूरा एपिसोड चाहे जितना नकारात्मक हो, इस संबंध में एक सकारात्मक बात यह है कि इस ठगी ने लोगों के बीच जनजागरण करने का काम किया है। सरकार भी इस तरह की कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने के प्रति थोड़ी गंभीर हुई है। सरकारी एजेंसी गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय (एसएफआईओ) ने चिट-फंड की 57 कंपनियों के विरुद्ध जाँच करने का फैसला किया है।
देखा गया है कि विगत सालों में चिट-फंड कंपनियों ने आर्थिक, शैक्षिक एवं सामाजिक रुप से पिछड़े पूर्वोत्तर राज्यों को अपना निशाना बनाया है। इसलिए पूर्वोत्तर राज्यों के प्रमुखों ने चिट-फंड कंपनियों पर शिकंजा कसने के लिए केन्द्र सरकार एवं वित्तीय नियामक एजेंसियों से इस बाबत सख्त कदम उठाने का अनुरोध किया है।
बिहार के उप मुख्यमंत्री सुषील कुमार मोदी ने भी हाल ही में सेबी के प्रमुख यू.के.सिन्हा से मिलकर बिहार में फर्जी तरीके से कार्य करने वाले गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का अनुरोध किया है। इसी क्रम में पश्चिम बंगाल की सरकार ने विशेष सत्र बुलाकर निवेशकों की रक्षा के लिए ‘पश्चिम बंगाल वित्तीय संस्था में जमाकर्त्ता का हित संरक्षण विधेयक, 2013’ पास करवाने का फैसला लिया है।
मौजूदा समय में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के नाम पर चिट-फंड का धंधा करने वाली कंपनियों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है, जिसमें से अधिकांष कंपनियाँ पंजीकृत नहीं हैं। पंजीकरण के अभाव में इस तरह की कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने में पुलिस एवं कानून को अक्सर मुश्किल का सामना करना पड़ता है।
इस संबंध में ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि अधिकांश चिट-फंड कंपनियों का ठगी का तरीका शारदा समूह की तर्ज पर है, जिसपर लगाम लगाना विविध वित्तीय नियामक संस्थानों एवं सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।
जानकारों के अनुसार इस तरह की कंपनियों पर तभी नकेल कसा जा सकता है, जब हमारे देष में आर्थिक अपराध को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा जाये। इस संदर्भ में सबसे अहम पहलू यह है कि इस तरह से ठगी के षिकार लोगों का आमतौर पर पैसा वापस नहीं मिलता है।
कानून में व्याप्त कमियों/खामियों की वजह से हमारे देष में धोखाधड़ी करने वाले लोग आसानी से कानून के शिकंजे से बाहर निकल जाते हैं, जबकि ठगी का शिकार हुए कुछ लोग आर्थिक तंगी की वजह से आत्महत्या तक करने पर मजबूर हो जाते हैं। बावजूद इसके असल दोषियों के खिलाफ कभी भी हत्या का मुकदमा नहीं चलाया जाता।
साभार
सतीश सिंह
http://teznews.com/home/news/13881
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